महर्षि वाल्मीकिकृत आनन्द रामायण में ऐसे मन्त्र दिए गए हैं जिनका जप किया जा सकता है और प्रीतिपूर्वक वाद्ययंत्रों के साथ कीर्तन भी किया जा सकता है। इन मन्त्रों का जप करते समय न्यास आदि करने की आवश्यकता नहीं रहती।
यदि भक्तिपूर्वक निम्नलिखित मंत्रों का जप भी किया जाए तो क्षण-भर में जप करने वाले के सारे पातक जल जाते हैं। ये मंत्र हैं :
१. “दशरथनन्दन मेघश्याम रविकुलमण्डन राजाराम”
२. “राम जय राम जय राम राम जय राम”
३. “राजीवलोचन मेघश्याम सीतारञ्जन राजाराम”
४. “श्री राम जय राम जय जय राम” – इस मन्त्र को २१ बार जपने वाला मनुष्य करोड़ों ब्रह्महत्या के पातक नष्ट कर देता है। यह त्रयोदशाक्षर राममंत्र बड़ा कल्याणदायक है। इसलिए बार-बार इस मन्त्र का जप और प्रीतिपूर्वक कीर्तन करना चाहिए। यह सभी सिद्धियों को देने वाला है।
५. “सीतारञ्जन मेघश्याम कौसल्यासुत राजाराम”
६. “रविवरकुलजातं वंदे सुरभूसुरगीतम्”
७. “कौसल्यासुत राम सीतारञ्जन मेघश्याम”
८. “दशरथनन्दन मेघश्याम सीतारञ्जन राजाराम”
९. “वन्दे रघुवीरं सीताकांतं रणधीरम्”
१०. “जय राम जय राम जय जय राम” – चतुर्दशाक्षर यह मन्त्र महापातकों का नाश करने वाला है, इसका कीर्तन करना चाहिए।
११. “भज सीतारामं मानस भज राजारामम्”
१२. “रावणमर्दन राम राघव वालीमर्दन राम”
१३. “श्रीसीतारामं मानस भज राजारामम्”
१४. “श्रीसीतारामं वन्दे रामं जय रामम्”
१५. “मां पाह्यतिदीनं राघव त्वत्पदयुगलीनम्”
१६. “जय जय रघुवर”
१७. “त्वं मां पालय सीताराम”
१८. “सीताराम जय”
१९. “श्रीसीताराम”
२०. “श्रीराम”
२१. “राम”
२२. “रां” – इस मन्त्र का केवल जप होता है, कीर्तन नहीं।
२३. “राम जय सीताराम राघव”
२४. “दशरथनन्दन रघुकुलभूषण कौसल्याविश्राम पंकजलोचन राम” – यह सभी पातकों को नष्ट करने वाला मन्त्र है।
२५. “सीताराम जय राघव राम” – यह मन्त्र सब प्रकार की कामनायें देने वाला है।
२६. “पञ्चवटीस्थित राम जय जय दशरथनन्दन राम”
२७. “दशरथसुत बालं वन्दे रामं घननीलम्” – यह अतिशय पुण्यवर्धनकारी मन्त्र है।
२८. “कोदण्डखण्डन दशशिरमर्दन कौसल्यासुत राम सीतारंजन राजाराम”
२९. “कोदण्डभंजन रावणमर्दन कौसल्याविश्राम सीतारंजन राजाराम”
३०. “कोदण्डखण्डन वालीताडन लंकादाहन पाषाणतरण रावणमर्दन रविकुलभूषण कौसल्याविश्राम सीतारंजन राजाराम” – यह मन्त्र सभी राममंत्रों से श्रेष्ठ है और बड़े-बड़े पातक नष्ट कर देता है।
कहा गया है कि बुद्धिमान कवियों को इसी प्रकार विविध भाषाओं में प्रबंधों (काव्य) की रचना करनी चाहिए, ऐसे मंत्रों की रचना में कोई दोष नहीं होता अपितु ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं। मन्त्र, प्रबंध, काव्य, स्तुति, कीर्तन ये सब प्राचीन हों या अपनी ओर से नए बनाए गए हों, उनका कीर्तन करना चाहिए। किसी भी प्रकार से प्रभु राम का स्मरण करना जरूरी है, क्योंकि प्रभु का ध्यान करने से सारी पापराशि जलकर भस्म हो जाती है। दम्भ से, भक्ति से, निष्काम या सकाम जिस किसी तरह भी रामनाम का कीर्तन करे, ऐसा करने से सब पाप जल जाते हैं। भगवान राम में प्रीति रखने वाला मनुष्य चाहे मूर्ख ही हो, किन्तु यदि वह अपनी टूटी-फूटी भाषा में भगवान का गुण गाता है तो उससे भगवान प्रसन्न होते हैं।
रामो गेयश्चिंतनीयोऽत्र रामः स्तव्यो रामः सेवानीयोऽत्र रामः।
ध्येयो रामो वंदनीयोऽत्र रामो दर्श्यो रामः सर्वभूतान्तरेषु।।
सदा श्रीराम का गुण गायें, उनका स्मरण करें, सेवा करें, ध्यान करें, और संसार के प्रत्येक प्राणी में भगवान की अलौकिक ज्योति का दर्शन करें।