बा वफ़ा चरागों ने न की होती
रौशनी रौशन कभी न होती
शमा से कोई तो पूछो
आंधियों ने दिए हैं कितने जख्म
बेचारी जल भी कहाँ पाती
ग़र मंजूर ए खुदा न होता
***
ख़ैर है ख़ुदा की रहमत बख्श दी उसने
शब ए गम में भी एक खुशी है
कि वो महफूज़ है कहीं भी
वर्ना जिस्म मेरा बेजान भी न होता
***
राज ए रंग ए हिना राज ही रह जाती
वो अहसान फरामोश ग़र न होती
कोई नासमझ तिवारी शायर भी न होता
***
Written by — सत्येन्द्र तिवारी