नशा एक ऐसी बुराई है जिसका असर व्यक्ति के साथ – साथ परिवार और देश पर भी पड़ता है। एक सरकारी आंकड़े के अनुसार 70 – 75% भारतीय किसी न किसी रूप में नशा करते हैं। इस समय संगठित और गैर संगठित अपराध के पीछे नशीली वस्तुओं की बहुत बड़ी भूमिका है।
भारत के 25% राज्य और 60% युवा नशे की गिरफ्त में हैं। नशे के रूप में लोग शराब, सिगरेट, गुटका, गांजा, ब्राउन शुगर, कोकीन, स्मैक आदि मादक पदार्थो का सेवन करते हैं, जो स्वास्थ्य के साथ सामाजिक और आर्थिक दोनों लिहाज से ठीक नहीं है। नशे के आदी व्यक्ति को समाज हेय दृष्टि से देखता है।
कोकीन, चरस या अफीम लोगों में उत्तेजना बढ़ाने का काम करती हैं जिससे समाज में अपराध बढ़ता है। भारत में प्रतिदिन 12 करोड़ सिगरेट फूंकी जा रही है, जिससे 600 करोड़ रुपयों का धुआं उड़ रहा है। शराब, सिगरेट, गुटका का जिस तरह सड़क से लेकर टेलीविजन पर प्रचार हो रहा है, युवा बहुत तेजी से इसकी ओर आकर्षित होती हैं और जल्द ही इस बुराई में फस जाते हैं।
अमेरिका के बाद भारत की लड़कियां विश्व में दूसरे नम्बर पर हैं जो सिगरेट फूकती हैं। भारत में पिछले कुछ वर्षों में नशीली दवाओं की तस्करी में 5 गुना इजाफा हुआ है। एक सरकारी आंकड़े के अनुसार भारत मे ₹ 181 अरब की नशीली दवाओं की तस्करी हुई है। पंजाब अकेले 22 करोड़ रुपये के ड्रग्स का प्रयोग कर रहा है, जो युवाओं के लिए भयावह स्थिति है।
पंजाब में नशे के बढ़ते अवैध कारोबार में मंत्रियों और अधिकारियों की भी संलिप्तता है। पिछली सरकार नशे में ही स्वाहा हो गयी, वहीं नई सरकार में नशा करने वाली की संख्या और अवैध नशीली दवाओं की तस्करी में वृद्धि हुई है।
प्राचीन काल से मदिरा को आसुरी वृत्ति माना जाता रहा है, प्राचीन समय में हिंदू राजा घोषणा करता था कि उसके राज्य में शराबी और मदिरालय दोनों नहीं हैं। किंतु आज शराब को सामाजिक स्वीकार्यता मिलती जा रही है। फिल्मों में बार – बार अभिनेता और अभिनेत्रियों द्वारा प्रयोग की जा रही शराब और सिगरेट और शहर से लेकर गांव तक खुलती देशी और विदेशी शराब की दुकाने, युवाओं को बहुत जल्दी आकर्षित कर लेती हैं।
गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करने वाले, जिनके घर में दो जून की रोटी भी नसीब नहीं है उनमें 37% लोग नशे के आदी हैं।
मनोचिकित्सको का कहना है कि युवाओं में नशे के बढ़ते चलन के पीछे बदलती जीवनशैली, पारिवारिक दबाव, पारिवारिक कलह, एकाकी जीवन और इंटरनेट का अत्यधिक उपयोग आदि मुख्य कारण हैं। आजादी के बाद शराब की खपत में 75 गुना वृद्धि हुई है।
नशे के बढ़ते कारोबार जिसकी गिरफ्त में तेजी से फंसते लोग, सरकारी या सामाजिक निष्क्रिय चेतना, सरकार के राजस्व के मुख्य स्रोत में शामिल होना, फैशन के चलन में शराब को स्वीकार करना, युवाओं को बहकने और भविष्य बर्बाद होने की राह दे रहा है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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