कश्मीर का विलय भारत में स्वतंत्रता के बाद 26 अक्टूबर 1947 में हुआ। यह धरती का सबसे खूबसूरत स्थान है, इसे स्वर्गजैसा कहा जाता है। महाराज हरिसिंह के समय इसकी सीमा पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन और तिब्बत से लगती थी। विलय के पश्चात भारत के शासन की कमी या वोट की मजबूरी ने इसके टुकडे कर दिये।
गिलगित, बल्तिस्तान और मुज्जफराबाद पाकिस्तान के पास, अक्साई चिन को पाकिस्तान ने चीन को दे दिया। आज 72 साल से कश्मीर शांति की तलाश कर रहा है।
जब कश्मीर का भारत मे विलय हुआ उस समय धारा 370 और 35 A का उपबन्ध क्यों किया गया? 35 A के तहत कश्मीर की लड़की या लड़का किसी पाकिस्तानी से विवाह करे तो उसे कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी। वही भारतीय पुरुष से करे तो नागरिकता स्वयं ही खत्म हो जायेगी। ये आसमानी कानून भारत मे ही है इसे कांग्रेस पार्टी और नेहरू ने किस लिये स्वीकार कर लिया?
इसके पीछे सेकुलरिज्म का रोना रोया गया लेकिन मूल में था भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण करके वोट में तब्दील करना जिससे सत्ता सालों साल बनी रहे। जिसमें उन्हें सफलता भी मिली। 370 के साथ 35 A को छुपाया गया इसे परिशिष्ट में शामिल किया गया। संविधान में हुये संसोधन हमें संविधान की पुस्तक में मिल जाते है किंतु 35 A कही नहीं मिलता है। आज 35 A के विषय में न्यायपालिका मौन है और ज्यादातर वकील और नेताओं को इसके विषय में पता ही नहीं है।
जम्मू कश्मीर को भारत में शामिल करने के लिए गोपालस्वामी आयंगर ने धारा 306 A का प्रारूप पेश किया, यही बाद में 370 बनी। जिससें जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग विशेष अधिकार मिले। 1951 में राज्य संविधान सभा को 370 दे दिया गया।
विचारणीय विषय है कि राज्य संविधान का कार्य 1956 में पूरा हुआ 26 जनवरी 1957 को लागू जरूर किया गया लेकिन 1947 से ही लागू क्यों मान लिया गया। विदेश, रक्षा, और संचार को छोड़ कर भारत सरकार को जम्मू कश्मीर विधान सभा से अनुमति लेनी होगी। जब राजा हरिसिंह ने बिना शर्त भारत मे विलय किया था, तब नेहरू को विशेष उपबन्ध और शेख अब्दुल्ला से प्रेम क्यों दिखाना पड़ा? वही शेख अब्दुल्ला जिसे हरि सिंह पर तरहीज दी गई और जल्द ही भ्रम टूटा जब देश विरोधी गतिविधियों के कारण 1953 शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री के पद से हटा कर जेल भेज दिया गया।
धारा 370 के कारण संविधान का अनुच्छेद 356, 360, CAG और सूचना अधिकार कानून लागू नही है। पंचायत को कोई अधिकार नहीं, राष्ट्र ध्वज, राष्ट्र चिन्ह का अपमान करने का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट का आदेश मान्य नहीं अलग झंडा, दोहरी नागरिकता, महिलाओं पर शरिया जैसा मध्यकालीन कानून लागू हैं।
एक कश्मीरी भारत में कहीं जमीन खरीद सकता है, नौकरी पा सकता है किंतु सैनिक जो उसी कश्मीर में शहीद हो रहे हैं, उन्हें भी जमीन खरीदने और बसने का अधिकार घाटी में नहीं है। इसी धारा का विरोध करते हुये जनसंघ के नेता श्यामाप्रसाद मुखर्जी नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे कर जम्मू कश्मीर विरोध करने गये शेख अब्दुल्ला की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करवा कर जेल में ही मरवा दिया। फिर भी नेहरू सरकार मौन रही। शेख अब्दुल्ला की मांगे मानती रही।
अब 35 A को देखते हैं, यह राष्ट्रपति के आदेश से और नेहरू के विशेष प्रयास से 14 मई 1954 में लागू किया गया। इसके तहत जम्मू कश्मीर विधानसभा को यह अधिकार होगा कि वह लोगों की स्थायी नागरिकता की परिभाषा तय कर सके। उन्हें चिन्हित करके विभिन्न विशेषाधिकार दे। यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर के लाखों हिन्दू और सिक्खों को शरणार्थी मान कर हाशिये पर धकेल देने का अधिकार दिया।
1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से आकर जम्मू में बसे 5764 परिवारों में लगभग 80 फीसदी दलित हैं। यशपाल भारती ऐसे ही परिवार से आते हैं और कहते हैं कि हमारी चौथी पीढ़ी पिछले 72 साल से यहाँ रह रही है। आज भी यहाँ होने वाले पंचायत से लेकर विधानसभा के चुनाव में वोट देने का अधिकार नहीं है। न ही सरकारी नौकरी, न ही सरकारी स्कूल में दाखिले का ही अधिकार है। हम यहाँ शरणार्थी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। कोई भी हमारे मानवाधिकार की बात नहीं करता है, अलबत्ता पत्थर फेंकने वालों के मानवाधिकारों की बात होती है।
इनसे बुरी हालत तो वाल्मीकि समुदाय की है। 1957 में कैबिनेट की मंजूरी के बाद पंजाब से सफाई के काम के लिए 200 परिवारों को बसाया गया जो अब हजारों परिवार हो चुके हैं। 60 सालों में कोई नागरिक अधिकार नहीं है। उन्हें सिर्फ सफाई कर्मचारी की नौकरी मिल सकती है जिसकी तनख्वाह 2500 रुपये मात्र है। भारत में दलितों की बात करने वाली कितनी पार्टियां या कहे तो BJP और शिवसेना को छोड़ कोई नहीं बोलना चाहता क्योकि मुस्लिम वोटर नाराज हो जायेगा।
भारत कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान से चार युद्ध 1947, 65, 71 और 1999 में कारगिल और दो सर्जिकल स्ट्राइक 2016 और 2018 में कर चुका है। कितना पाकिस्तान का स्टेट प्रायोजित आतंकवाद से अपने लोगों को खो चुका है। ताशकंद, शिमला जैसे बेनतीजा समझौता। आगरा लाहौर डायलॉग, कश्मीरियत, जम्हूरियत इंसानियत क्या नहीं किया। फिर भी ‘सौ दिन चले अढ़ाई कोस’ की कहावत चरितार्थ रही है।
कश्मीर मसले का एक ही हल है जो हू जिंताओ ने चीन में तिब्बत और शिनझियांग में वहाँ के लोगों को अल्पसंख्यक बना कर समस्या खत्म कर दी। भारत में भी याद रखनी चाहिए कि ‘हिन्दू घटा कि देश बाटा’। घाटी में समान नागरिक संहिता लागू कर मुस्लिम को अल्पसंख्यक बना दीजिये तुरंत समस्या खत्म हो जायेगी। नहीं तो 72 साल बीत गये अभी कितने और 72 साल बीत जायेंगे।
इंदिरा शेख समझौते के बाद 1975 में शेख अब्दुल्ला को फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन जल्द ही भारत विरोधी गतिविधियों के वजह से 1977 में हटा दिया गया। 1984 में अब्दुल्ला के दामाद गुलाम मोहम्मद शाह ने कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाई। 1986 में वह सरकार गिर गई।
मार्च 1986 में जगमोहन को राज्यपाल बना कर राजीव सरकार ने भेजा। जगमोहन कर्मठ प्रशानिक अधिकारी थे। उन्हें कश्मीर की स्थिति का बहुत अच्छे से पता था। उन्होंने पृथकतावादी और देश विरोधियों से कड़ाई से निपटा। 1987 में फारुख अब्दुल्ला ने जगमोहन की कार्यप्रणाली से डर कर कि कहीं कश्मीर मुद्दा ही सुलझ न जाये इस्तीफा दे दिया।
जगमोहन को राजीव सरकार ने नवम्बर में हटा लिया। यही वह समय था जब घाटी में आतंकियों का भय फिर से व्याप्त हो गया हुर्रियत, जैश- ए – मोहम्मद ने स्वतंत्र कश्मीर का राग अलापा। कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार बढ़े बलात्कार, हत्या अंततः घाटी छोड़ने को विवश किया गया।
स्थिति को नियंत्रित करने के लिए वी पी सिंह ने एक बार फिर से जगमोहन को जनवरी 1990 में राज्यपाल बनाया। उन्होंने घाटी में सघन तलाशी अभियान चलाया जिसमें गोला, बारूद, बंदूकें बरामद हुई। पृथकतावादी नेताओं को गिरफ्तार करके कश्मीर से बाहर भेजा गया। जगमोहन के कौशल ने एक बार फिर घाटी में नियंत्रण स्थापित किया। लेकिन हजरतबल मस्जिद जहाँ मुहम्मद के दाढ़ी का बाल रखा गया है, के चोरी का आरोप लगा कर फिर दंगा शुरू हो गया। फिर से जगमोहन को वापस बुला लिया गया जो केंद्र सरकार की राजनीतिक भूल थी।
कश्मीर घाटी से 3 लाख पंडितों को जबरन भगाया गया, हजार से ज्यादा मार दिये गये या बलात्कार किया गया। यहाँ तक कि हिंदुओं की मदद करने के कारण 150 मुस्लिम पड़ोसियों की भी नृशंस हत्या की गई।
भारतीय राजनीति सेकुलर का चोंगा ओढ़ सिर्फ तमाशबीन बनी रही। कश्मीरी पंडित अपने ही मुल्क और लोकतांत्रिक देश में शरणार्थी बन गया। कोई नेता उनका हाल पूछने तक कैम्प में नहीं गया।
जम्मू कश्मीर में पंडित, दलित हिन्दू के लिये जगह नहीं है लेकिन रोहिंग्या मुसलमानों के लिए जगह है। यहाँ इनकी तादाद 98000 हो चुकी है। यह देश लोकतांत्रिक और सेकुलर है। रोहिंग्या की समस्या पर एक बार नेता फिर मौन है।
मोदी का दुबारा सत्ता में आने से जनाकांक्षाओं को बल मिला है कि वह मजबूत नेता हैं, हिंदुओ के साथ हुये अन्याय को दूर करके समान नागरिक संहिता लागू करेंगे। धारा 370 और 35 A को खत्म किया जायेगा। कश्मीर में भी सुशासन का राज कायम होगा। तुष्टिकरण को 72 साल हो चुके हैं, अब अपने देश के नागरिक विश्व की सबसे खूबसूरत जगह देख पाये। कश्मीर में टेरीरिज्म का खात्मा और टूरिज्म का विस्तार हो।