महाभारत का एक प्रसंग :
कर्ण कौरवों का सेनापति था और अर्जुन के साथ उसका घनघोर युद्ध जारी था। तभी कर्ण के रथ का एक पहिया जमीन में फंस गया।
उसे बाहर निकलने के लिए कर्ण रथ के नीचे उतरा और अर्जुन को उपदेश देने लगा – “कायर पुरुष जैसे व्यवहार मत करो, शूरवीर निहत्थों पर प्रहार नहीं किया करते। धर्म युद्ध के नियम तो तुम जानते ही हो। तुम पराक्रमी भी हो। बस मुझे रथ का यह पहिया बाहर निकलने का समय दो। मैं तुमसे या श्री कृष्ण से भयभीत नहीं हूँ, लेकिन तुमने क्षत्रीय कुल में जन्म लिया है, श्रेष्ठ वंश के पुत्र हो। हे अर्जुन! थोड़ी देर ठहरो।”
अर्जुन का मन रुकने को हुआ परन्तु भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को ठहरने नहीं दिया, उन्होंने कर्ण को जो उत्तर दिया वो नित्य स्मरणीय हैं।
उन्होंने कहा ”नीच व्यक्तियों को संकट के समय ही धर्म की याद आती है।” तब धर्म की याद नहीं आयी :
1. द्रौपदी का चीर हरण करते हुए,
2. जुए के कपटी खेल के समय,
3. द्रौपदी को भरी सभा में जांघ पर बैठने का आदेश देते समय,
4. भीम को सर्प दंश करवाते समय,
5. बारह वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद लौटे पांडवों को उनका राज्य वापिस न करते समय,
6. 16 वर्ष की आयु के अकेले अभिमन्यु को अनेक महारथियों द्वारा घेरकर मृत्यु मुख में डालते समय,
7. लाक्षागृह में पांडवों को एक साथ जला कर मारने का षड्यंत्र रचते समय,
तब तुम्हारा धर्म कहाँ गया था?
श्री कृष्ण के प्रत्येक प्रश्न के अंत में मार्मिक प्रश्न “क्व ते धर्मस्तदा गतः” पूछा गया।
इस प्रश्न से कर्ण का मन विच्छिन्न हो गया।
श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा – “पार्थ! देखते क्या हो, चलाओ बाण, इस व्यक्ति को धर्म की चर्चा करने का भी कोई अधिकार नहीं है।”