मनुष्य अन्य जीवों की अपेक्षा चेतना के सर्वोच्च स्तर पर रहता है किंतु जब उसकी चेतना की तुलना मानवीय चेतना से होती है तो वह चेतना के आरंभिक बिन्दु तक ही रहता है। मानवीय चेतना का विकास मैकाले की शिक्षा पद्धति से संभव है?
इसका उत्तर मैकाले की शिक्षा प्रणाली में ही है। मनुष्य के भौतिक विकास तक वह पहुँचता है परंतु आध्यात्मिक विकास का दूर-दूर तक उसका रिश्ता नहीं दिखाई देता।
मनुष्य एक आध्यात्मिक प्राणी है, वह अपने साथ ही दूसरे मनुष्य का भी आध्यात्मिक विकास चाहता है। मनुष्य के वृहत डाइमेंशन की खुल के चर्चा वेद और उपनिषद करते हैं। मनुष्य के आध्यात्मिक गुण का विचार आखिर इतना उपयोगी क्यों है? मनुष्य जब तक जीवित है, उसमें शाश्वत क्रियाएं होती रहती हैं। ऐसे में वह आध्यात्मिक विकास नहीं करेगा, निश्चित ही वह अन्य जीव के साथ दूसरे मनुष्य का भी शोषण करने लगेगा।
भारतीय ज्ञान विधा, भारतीय दर्शन मनुष्य के चेतना के विस्तार पर जोर देते हैं। मनुष्यता के विकास से शांति संभव है, नहीं तो विश्व भर में मार काट मची है। एक देश दूसरे देश को पड़ोस में नहीं देखना चाहता है। इतनी हिंसा क्यों है? इसका कारण क्या है?
सनातन हिन्दू धर्म ८४ लाख योनियाँ मानता है। मनुष्य योनि छोड़ कर अन्य कुछ ही प्राणी हैं, जिसमें चेतना का कुछ विस्तार हुआ है। पता नहीं कब से मांस खाने का प्रचलन शुरू हो गया। हिंसा की प्रवृत्ति व्यक्ति के साथ-साथ उसके समाज में भी हिंसा को जन्म देती है, वह हिंसा हमें सम्पूर्ण जगत में व्याप्त दिखाई देती है। आप को लगेगा भोजन में मांस खाना कहाँ से बुराई है। आप इसी तर्क के साथ जोर जबरदस्ती करते हैं। आप के भोजन की जो हिंसा है, वही आप में परिलक्षित हो रही है।
आप अपने को जेंटलमैन कैसे कह सकते हैं? जो अभी थोड़ी देर पहले बकरी, मछली, कुत्ता, बिल्ली या चिड़िया आदि को भोजन के रूप में बड़े स्वाद से खाया है। यदि हम अन्य प्राणियों पर दया करें, तब तो हमारा मन करुणा से भर सकता है। यह प्रयोग हम करके देख सकते हैं।
दया, करुणा, प्रेम, क्षमा को स्वयं जन्म दिए बिना विश्व में शांति और समता नहीं लाया जा सकता।