पिछले दिनों दो तरह की नारियों पर खूब चटकारे लेकर चर्चा हुई, पहली एस० डी० एम० ज्योति मौर्य और दूसरी सीमा हैदर। दोनों मामलों में अपने विवाहित पति को छोड़ कर नए साथी की तलाश में एक ने पाकिस्तान छोड़ा और एक ने परिवार।
इसमें में दो तरह की चर्चा है, पहली दोनों ने अपने पतियों को धोखा देकर गलत किया है। दूसरी नारी हैं, इन्हें भी जीवनसाथी बराबर बदलने और नए जीवनसाथी बनाने का हक है।
विवाह नामक संस्था का अर्थ स्त्री-विषयक और पुरुष-विषयक जिज्ञासा को शांत करना अर्थात काम की शांति और संतान को वैधानिक रूप देते हुए उसके अधिकार की प्राप्ति मात्र रह गई है। महत्वपूर्ण बात यह है कितने पति और कितने पत्नी की अदला-बदली होगी। दो लोगों की इच्छा को प्रेम कहा जा सकता है परंतु इस तरह के प्रेम की संस्कृति से समाज की सुरक्षा कैसे होगी। स्टेटस और भूख के लिए बार-बार विवाह को कौन सा समाज कैसे स्वीकार कर सकता है?
स्त्री विमर्श बार-बार केंद्र में आ जाता है। नारी का मानना है कि उस पर विमर्श का सिर्फ उसे ही अधिकार है, यह पुरुष क्यों चर्चा के लिए चिल्लाता है। पुरुष के भागीदार होने का कारण है कि वह स्त्री से पैदा होता है उसकी माता, बहन और पत्नी भी स्त्री ही है। जब भी किसी देश पर दूसरे देश ने आक्रमण किया उसने नारी के साथ बर्बरता इसीलिए की जिससे वहां रहने वाले अधिक दुखी और क्रुद्ध हों।
नारी पर तीसरा विमर्श मणिपुर, बंगाल, केरल, अजमेर और कश्मीर की विगत स्थितियों को देखते हुए है जिसमें दो समुदाय की वैमनस्यता का शिकार निरपराध नारी हो रही है। समुदाय की कटुता का शिकार बनती है नारी। नारी से पैदा होकर नारी का शिकार कैसे कर सकता है पुरुष? किंचित नारी अपने पुत्र को स्वयं और स्त्रियों का सम्मान करना नहीं सिखा सकी।
दीप सिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतंग।
भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसंग॥
अर्थात युवती स्त्रियों का शरीर दीपक की लौ के समान है, हे मन! तू उसका पतिंगा न बन। काम और मद को छोड़कर श्री रामचंद्रजी का भजन कर और सदा सत्संग कर!