इसरो के मिशन चंद्रयान-३ के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलता पूर्वक उतरने के स्थल को “शिवशक्ति” नाम दिया गया है। वही चंद्रयान-२ के क्रैश स्थल को “तिरंगा” नाम दिया गया। मजेदार बात यह है कि यू० पी० ए० सरकार (२००८) में चंद्रयान-१ के चंद्रमा पर उतरने के स्थल का नाम पहले से “जवाहर प्वाइंट” रख दिया गया था।
अब कांग्रेसी और सेक्युलर कह रहे हैं कि साहब बहुत जुलुम हो गया, यह शिवशक्ति नाम तो साम्प्रदायिक है इसका नाम एकता प्वाइंट, जवाहर, इंदिरा, राजीव, सोनिया प्वाइंट या बाबर, औरंगज़ेब भी हो सकता था। फिर यह “शिवशक्ति” क्यों रखा गया। यह संविधान का खुला विरोध है। कट्टरपंथी चिचा कह रहे हैं ‘चांद, तारे सूरज चाहे जहाँ जाओ लेकिन यह याद रखना कि मेरे अल्लाह ताला ने ये सूरज, चांद, तारे न बनाते तो तुम कहाँ जाते?’
ऐसे ही बढ़िया – बढ़िया विचार भारत के तथाकथित विचारक रख रहे हैं। इस समय जब विश्व के लिए भारत ने स्वर्णिम व ऐतिहासिक वैज्ञानिक सफलता हासिल की है, उस पर भी खेमेबंदी की राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं।
शिव का अर्थ है ‘कल्याणकारी’ और शक्ति का अर्थ ‘ऊर्जा’ या Power से है किंतु अफसोस हमें भारत की संस्कृति नहीं पता है। पता भी कैसे हो कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर का कहना है उन्हें ‘मैकाले का पुत्र कहलाने में गर्व है।‘ यहाँ स्मरण रहे कि शिव भारत की आत्मा है।
भारतीय समाज का पार्टीगत आधार पर विभाजित होना बहुत शोचनीय विषय है। इतिहास को सेक्युलर बनाना हो या लुटेरों को निरपेक्ष शासक के रूप में प्रस्तुत करना, यह सभी भारतीय मन को मानसिक गुलामी में जकड़ कर सत्ता को यथावत बनाये रखने का प्रयास रहा है।
भगवान श्रीराम और उनकी जन्मभूमि भारतीय समाज के पुनरुत्थान बिन्दु बन गये। अब भारत अपने अतीत में झांक कर वर्तमान पर चलते हुए अपने ज्ञान-विज्ञान भरे मस्तिष्क पर बल देने लगा है। जैसे इसरो के प्रमुख सोमनाथ ने कहा कि ‘चंद्रयान की प्रेरणा उन्हें वेदों से मिली है।’