सनातन, सनातनी और हिन्दू कहना बिल्कुल उसी तरह जैसे रामचन्द्र, कृष्णचन्द्र या साम्ब सदा शिवाय कहिये या शिव। सबसे मुख्य चीज उत्तर से लेकर दक्षिण तक हिन्दू धर्म, हिन्दू शास्त्र, हिन्दू मंदिर और ब्राह्मण राजनीति के केंद्र में आने का प्रमुख कारण भारतीय जनता पार्टी की केंद्र से लेकर कई राज्यों में सरकार है।
परिवारवादी, कुनबावादी और भ्रष्टाचारी परेशान हैं। सत्ता बिना हिंदुओं को तोड़े नहीं मिल सकती है और इसी कारण जातिवाद पर सियार रुदन फिर जातीय जनगणना के हिमायती बनना आदि इत्यादि।
राजनीति में धर्म के उन्मूलन की बात धार्मिक अंकुश को खत्म कर स्वयं को भगवान बना लेने की टेढ़ी चाल है। इसे चीन के शी जिनपिंग से समझा जा सकता है।
आप कहते हो मैं कोई धर्म नहीं मानता हूँ, मैं सेक्युलर और कम्युनिस्ट हूँ फिर होगा यह कि आप सेक्युलर और कम्युनिस्ट बनने के लिए कुछ नियमों का पालन अनिवार्य रूप से करेंगे। यहाँ आप धर्म का निषेध करके निषेधात्मक धर्म को स्वीकार कर लेते हैं।
साधारण बात है सत्ता, प्रभुता और अधिकार पाया वर्ग उसका समर्थक रहता है। जिसे सत्ता, प्रभुता नहीं मिली है, वह उसी का पुरजोर विरोध करता है। यह धर्म विरोध से ज्यादा सत्ता न मिलने की खिसियाहट है। उदयनिधि स्टॅलिन, स्वामीप्रसाद मौर्य, तेजस्वी, राहुल या अन्य कोई हो, कुल मिलाकर सब की एक सत्ता की हसरत है। उन्हें धर्म और शास्त्र से कही अधिक स्वयं के चरित्र को देखना चाहिए।
भारत में अधर्मी भी मरा-मरा कह कर राम-राम कहने लगता है बस इसे मूर्ख राजनीतिक अपनी दुकान चलाने के लिए न प्रयोग करें, तभी अच्छा है। धर्मग्रंथ कहते हैं कि नेता नीति और चरित्र से बनते हैं। गाली देकर, गंदगी फैला कर, जातिवादी, पूर्वाग्रही, देश विरोध में लिप्त होकर नेता मत बनिये। इससे न आप का भला हो पायेगा न देश का।
‘राम-राम’ रटिये मन का मैल धुल जायेगा। हो सकता है तुम भी मनुज बन जाओगे। वरना इस जन्म में तुम बकरी काटो, अगले जन्म में बकरी तुम्हें काटे।
एकदम सटीक और सत्य 💐
आप का लेख समयानुसार इतना सटीक विश्लेषण है इसके लिए आपको साधुवाद 🙏🏻