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ईश्वर की लीला का अर्थ है – ईश्वर की रहस्यपूर्ण क्रीड़ा!

जब कोई संघटना मानव बुद्धि के परे घटित होती है तो उसे ईश्वरीय लीला कहते हैं। महापुरुषों अथवा अवतार के चरित्र भी लीला कहे जाते हैं, जैसे रामलीला, कृष्णलीला आदि।

“लीयमलातीति लाली” –  ‘ली’ का अर्थ है जोड़ना, मिलाना, पाना या लीन होना। ‘ला’ का अर्थ है देना-लेना। दोनों का संयुक्त अर्थ है – लीन होने को अंगीकार करना।

वेदान्त सूत्र के अनुसार “लोकस्तु लीला कैवल्यम्” अर्थात यह लोक केवल (ईश्वरीय) लीला के लिए है, कैवल्य का अर्थ है मुक्ति या मोक्ष। अतः यह ईश्वरीय लीला व मनुष्यों के मोक्ष के लिए है।

ईश्वर की दृष्टि से लीला एक क्रीड़ा है, विलास है परन्तु मनुष्य की दृष्टि से मोक्ष का एक साधन या मार्ग है, क्योंकि जो लोक ईश्वर का लीला क्षेत्र है वही मनुष्यों का कर्म क्षेत्र है। इसी कारण से भगवान्‌ या अवतार का प्रत्येक क्रिया-कलाप भक्तों के लिए लीला है, तथा विधि-निषेध के बंधनों से परे है।

श्रीरामचन्द्र मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, श्रीकृष्णचन्द्र लीला पुरुषोत्तम हैं। और दोनों साक्षात परात्पर परब्रह्म हैं।   

भगवान् श्रीकृष्ण की रहस्य-लीला प्रकृति से परे है। वे जिस समय प्रकृति के साथ खेलने लगते हैं, उस समय दूसरे लोग भी उनकी लीला का अनुभव करते हैं।

सर्गस्थित्यप्यया यत्र रजः सत्त्वतमोगुणैः।
लैवं द्विविधा तस्य वास्तवी व्यावहारिकी।।

– श्रीमद्भागवतमाहात्म्यम्

प्रकृति के साथ होने वाली लीला में ही रजोगुण, सत्त्वगुण और तमोगुण के द्वारा सृष्टि, स्थिति और प्रलय की प्रतीति होती है। इस प्रकार यह निश्चय होता है कि भगवान्‌ की लीला दो प्रकार की है – एक वास्तवी और दूसरी व्यावहारिकी

वास्तवी तत्स्वसंवेद्या जीवानां व्यावहारिकी।
आद्यांविना द्वितीया न द्वितीया नाद्यगा क्वचित्।।
– श्रीमद्भागवतमाहात्म्यम्

जिस प्रकार भगवान्‌ प्रकट होकर भी अप्रकट, और अप्रकट होकर भी प्रकट हैं, वैसे ही परमेश्वर की लीला और प्रीति भी व्यक्त और अव्यक्त है।

वास्तवी लीला स्वसंवेद्य है – उसे स्वयं भगवान् और उनके रसिक भक्तजन ही जानते हैं। जीवों के सामने जो लीला होती है, वह व्यावहारिकी लीला है। वास्तवी लीला के बिना व्यावहारिकी लीला नहीं हो सकती; परन्तु व्यावहारिकी लीला का वास्तविक लीला के राज्य में कभी प्रवेश नहीं हो सकता। यह पृथ्वी और स्वर्ग आदि लोक व्यावहारिकी लीला के अन्तर्गत हैं।

इसी पृथ्वी पर यह मथुरामण्डल है। यहीं वह व्रजभूमि है, जिसमें भगवान् की वह वास्तवी रहस्य-लीला गुप्तरूप से होती रहती है। वह कभी-कभी प्रेमपूर्ण हृदयवाले रसिक भक्तों को सब ओर दिखाई देने लगती है। कभी अट्ठाईसवें द्वापर के अन्त में जब भगवान् की रहस्य-लीला के अधिकारी भक्तजन यहाँ एकत्र होते हैं, जैसा कि इस समय भी कुछ काल पहले हुए थे, उस समय भगवान् अपने अन्तरंग प्रेमियों के साथ अवतार लेते हैं। उनके अवतार का यह प्रयोजन होता है कि रहस्य-लीला के अधिकारी भक्तजन भी अन्तरंग परिकरों के साथ सम्मिलित होकर लीला-रस का आस्वादन कर सकें। इस प्रकार जब भगवान् अवतार ग्रहण करते हैं, उस समय भगवान्‌ के अभिमत प्रेमी देवता और ऋषि आदि भी सब ओर अवतार लेते हैं।

भगवान्‌ श्रीकृष्ण का जो अवतार हुआ था, उसमें भगवान् अपने सभी प्रेमियों की अभिलाषाएँ पूर्ण करके अन्तर्धान हो चुके हैं। इससे यह निश्चय हुआ कि यहाँ पहले तीन प्रकार के भक्तजन उपस्थित थे; इसमें सन्देह नहीं है।

१. उन तीनों में प्रथम तो उनकी श्रेणी है, जो भगवान्‌ के नित्य ‘अन्तरंग’ पार्षद हैं- जिनका भगवान् से कभी वियोग होता ही नहीं है।

२. दूसरे वे हैं, जो एकमात्र भगवान्‌ को पाने की इच्छा रखते हैं – उनकी अन्तरंग-लीला में अपना प्रवेश चाहते हैं।

३. तीसरी श्रेणी में देवता आदि हैं। इनमें से जो देवता आदि के अंश से अवतीर्ण हुए थे, उन्हें भगवान् ने व्रजभूमि से हटाकर पहले ही द्वारका पहुँचा दिया था।

फिर भगवान् ने ब्राह्मण के श्राप से उत्पन्न मूसल को निमित्त बनाकर यदुकुल में अवतीर्ण देवताओं को स्वर्ग में भेज दिया और पुनः अपने-अपने अधिकार पर स्थापित कर दिया। तथा जिन्हें एकमात्र भगवान्‌ को ही पाने की इच्छा थी, उन्हें प्रेमानन्द स्वरूप बनाकर श्रीकृष्ण ने सदा के लिये अपने नित्य अन्तरंग पार्षदों में सम्मिलित कर लिया। जो नित्य पार्षद हैं, वे यद्यपि यहाँ गुप्तरूप से होने वाली नित्य-लीला में सदा ही रहते हैं, परन्तु जो उनके दर्शन के अधिकारी नहीं हैं, ऐसे पुरुषों के लिये वे भी अदृश्य हो गये हैं। जो लोग व्यावहारिक लीला में स्थित हैं, वे नित्य-लीला का दर्शन पाने के अधिकारी नहीं हैं।

हरि-लीला अत्यंत अद्भुत है, अद्भुत वह ऐसी है कि नितांत लौकिक और वैषयिक प्रतीत होती है, परन्तु वस्तुतः वह पारलौकिक और पवित्र है। पात्र के अनुसार यह लौकिक जनों को भिन्न-भिन्न रूप में दिखाई देती है।

अमल अनूप रूप हरि लीला, स्वाति बिन्दु जल जैसे।
भगवतरसिक विषमता नाहीं, पात्र-भेद   गुण   तैसे।।

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A Rai
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7 months ago

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