होली–रसराज महोत्सव

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होलिका मंत्र –

असृक्पाभयसंत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव॥  
– बृहन्नारदीय पुराण १२४.७८

फाल्गुन की पूर्णिमा में होलिका पूजन (असुर राक्षस विनाशात्मक पर्व) किया जाता है, लकड़ियाँ, गोइठे (उपले) आदि एकत्रित करके राक्षस नाशक मंत्रों को पढ़ते हुए उसमें विधिपूर्वक आग लगा दें। अग्नि की परिक्रमा करें, गाने-बजाने के साथ उत्सव मनाएं। होलिका नामक राक्षसी प्रह्लाद को डराती थी, इसलिए लोग गाना-बजाना करते हुए लकड़ी आदि से उसे इस प्रकार जलाते हैं। किसी के मत में यह ‘संवत्सर-दाह’ कहलाता है तो किसी के मत में ‘कामदाह’।

होलिका प्रज्ज्वलन काल निर्णय – प्रतिपदा तथा भद्रा से युक्त होलिका प्रज्ज्वलन शकुनशास्त्र के अनुसार वर्षभर सम्पूर्ण राष्ट्र को चिन्ता ज्वाला से जलाता है। इसलिए चतुर्दशी से विद्ध, भद्रा विहीना पूर्णिमा का प्रदोषकाल ही होलिका प्रज्ज्वलन काल माना गया है। 

होलिका को ‘संवत्सर दाह’ कहा गया है, इसका स्रोत ब्राह्मण ग्रंथों में मिलता है – “मुखं वा एततसम्वत्सररूप – यत् फाल्गुनी पौर्णमासी अर्थात फाल्गुनी पूर्णिमा को सम्वत्सरप्रारंभ की रात्रि मानी गई है, जो पृथ्वी के लिए अत्यंत पुण्य भाग्यशालिनी तिथि है। इसी रात्रि से ऋतुराज वसन्त का जन्म महोत्सव आरंभ होता है, वसन्त उत्तरायण का देवकाल माना गया है, जिसमें अग्निदेव प्रमुख देवदेवताओं का प्राधान्य है।

होलिका को ‘कामदाह’ भी कहा गया है। वसन्त ऋतु मनोज कामदेवता की क्रीड़ा स्थली है, इसलिए जो ज्ञान अग्नि में अपने काममय शुक्र, मानस विकारों की आहुति देने में असमर्थ होते हैं, उन्हें अपने वाग अग्नि में (गाने बजाने) तथा रस-राग-रञ्जन वसन्तोल्लास महोत्सव में इस उद्वेग को आहुत कर देना चाहिए।

होलिका चौराहे पर ही क्यों जलायी जाती है? अग्नि प्रतीक रूप होलिका देवी के रोपण के लिए उपयुक्त स्थान चतुष्पथ माना गया है, क्योंकि यह रुद्राग्नि का स्थान है। पहले के समय में शमी वृक्ष की शाखा को चौराहे के बीच में सम्मानपूर्वक पूजन करके रोपण किया जाता था। शमी को साक्षात अग्नि माना गया है।

पौराणिक आख्यान – होलिका दहन की एक कथा भविष्य पुराण में भी मिलती है, महाराज युधिष्ठिर भगवान कृष्ण से पूछते हैं कि फाल्गुन पूर्णिमा को होली क्यों जलायी जाती है, बच्चों के अनाप-शनाप शोर करने का कारण क्या है? अडाडा किसे कहते हैं, उसे शीतोष्ण क्यों कहते हैं?

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – पार्थ! सत्ययुग में रघु नाम के एक शूरवीर प्रियवादी सर्वगुण सम्पन्न दानी राजा थे। उन्होंने समस्त पृथ्वी को जीतकर सभी राजाओं को अपने वश में करके पुत्र की भाँति प्रजा का लालन-पालन किया। उनके राज्य में कभी दुर्भिक्ष नहीं हुआ और न किसी की अकाल मृत्यु हुई। अधर्म में किसी की रुचि नहीं थी। पर एक दिन नगर के लोग राजद्वार पर सहसा एकत्र होकर त्राहि-त्राहिपुकारने लगे। राजा ने इस तरह भयभीत लोगों से कारण पूछा। उन लोगों ने कहा कि ‘महाराज! ढोंढा (अन्यत्र ढुण्ढा) नाम की एक राक्षसी प्रतिदिन हमारे बालकों को कष्ट देती है और उसपर किसी मन्त्र-तन्त्र, ओषधि आदि का प्रभाव भी नहीं पड़ता, उसका किसी भी प्रकार निवारण नहीं हो पा रहा है।’

नगरवासियों का यह वचन सुनकर विस्मित राजा ने राज्य पुरोहित महर्षि वसिष्ठ मुनि से उस राक्षसी के विषय में पूछा। तब उन्होंने राजा से कहा – राजन्! माली नाम का एक दैत्य है, उसी की एक पुत्री है, जिसका नाम है ढोंढा। उसने बहुत समय तक उग्र तपस्या करके शिवजी को प्रसन्न किया। उन्होंने उससे वरदान माँगने को कहा।इसपर ढोंढा ने यह वरदान माँगा कि प्रभो! देवता, दैत्य, मनुष्य आदि मुझे न मार सकें तथा अस्त्र-शस्त्र आदि से भी मेरा वध न हो, साथ ही दिन में, रात्रि में, शीतकाल, उष्णकाल तथा वर्षाकाल में, भीतर अथवा बाहर कहीं भी मुझे किसी से भय न हो।इसपर भगवान् शंकर ने तथास्तुकहकर यह भी कहा कि तुम्हें उन्मत्त बालकों से भय होगा।वही ढोंढा नाम की कामरूपिणी राक्षसी नित्य बालकों को और प्रजा को पीड़ा देती है। अडाडामन्त्र का उच्चारण करने पर वह ढोंढा शान्त हो जाती है। इसलिये उसको अडाडा भी कहते हैं। यही उस राक्षसी ढोंढा का चरित्र है।

अब मैं उससे पीछा छुड़ाने का उपाय बता रहा हूँ। राजन्! आज फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को सभी लोगों को निडर होकर क्रीडा करनी चाहिये और नाचना, गाना तथा हँसना चाहिये। बालक लकड़ियों के बने हुए तलवार लेकर वीर सैनिकों की भाँति हर्ष से युद्ध के लिये उत्सुक हो दौड़ते हुए निकल पड़ें और आनन्द मनायें। सूखी लकड़ी, उपले, सूखी पत्तियाँ आदि अधिक-से-अधिक एक स्थान पर इकट्ठा कर उस ढेर में रक्षोघ्न मन्त्रों से अग्नि लगाकर उसमें हवन कर हँसकर ताली बजाना चाहिये। उस जलते हुए ढेर की तीन बार परिक्रमा कर बच्चे, बूढ़े सभी आनन्ददायक विनोदपूर्ण वार्तालाप करें और प्रसन्न रहें। इस प्रकार रक्षा मन्त्रों से, हवन करने से, कोलाहल करने से तथा बालकों द्वारा तलवार के प्रहार के भय से उस दुष्ट राक्षसी का निवारण हो जाता है।

वसिष्ठजी का यह वचन सुनकर राजा रघु ने सम्पूर्ण राज्य में लोगों से इसी प्रकार उत्सव करने को कहा और स्वयं भी उसमें सहयोग किया, जिससे वह राक्षसी विनष्ट हो गयी। उसी दिन से इस लोक में ढोंढा का उत्सव प्रसिद्ध हुआ और अडाडा की परम्परा चली। ब्राह्मणों द्वारा सभी दुष्टों और सभी रोगों को शान्त करने वाला वसोर्धारा-होम इस दिन किया जाता है, इसलिये इसको होलिका भी कहा जाता है।

सब तिथियों का सार एवं परम आनन्द देने वाली यह फाल्गुन की पूर्णिमा तिथि है। इस दिन रात्रि को बालकों की विशेषरूप से रक्षा करनी चाहिये। गोबर से लिपे-पुते घर के आँगन में बहुत से खड्गहस्त बालक बुलाने चाहिये और घर में रक्षित बालकों को काष्ठ निर्मित खड्ग से स्पर्श कराना चाहिये। हँसना, गाना, बजाना, नाचना आदि करके उत्सव के बाद गुड़ और बढ़िया पकवान देकर बालकों को विसर्जित करना चाहिये। इस विधि से ढोंढा का दोष अवश्य शान्त हो जाता है।

महाराज युधिष्ठिर ने पूछा – भगवन्! दूसरे दिन चैत्र मास से वसन्त ऋतु का आगमन होता है, उस दिन क्या करना चाहिये?

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – महाराज! होली के दूसरे दिन प्रतिपदा में प्रातःकाल उठकर आवश्यक नित्यक्रिया से निवृत्त हो पितरों और देवताओं के लिये तर्पण-पूजन करना चाहिये और सभी दोषों की शान्ति के लिये होलिका की विभूति की वन्दना कर उसे अपने शरीर में लगाना चाहिये। घर के आँगन को गोबर से लीपकर उसमें एक चौकोर मण्डल बनाये और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत करे। उस पर एक पीठ रखे। पीठ पर सुवर्ण सहित पल्लवों से समन्वित कलश स्थापित करे। उसी पीठ पर श्वेत चन्दन भी स्थापित करना चाहिये। सौभाग्यवती स्त्री को सुन्दर वस्त्र, आभूषण पहनकर दही, दूध, अक्षत, गन्ध, पुष्प, वसोर्धारा आदि से उस श्रीखण्ड की पूजा करनी चाहिये। फिर आम्रमञ्जरी सहित उस चन्दन का प्राशन करना चाहिये। इससे आयु की वृद्धि, आरोग्य की प्राप्ति तथा समस्त कामनाएँ सफल होती हैं। भोजन के समय पहले दिन का पकवान थोड़ा-सा खाकर इच्छानुसार भोजन करना चाहिये। इस विधि से जो फाल्गुनोत्सव मनाता है, उसके सभी मनोरथ अनायास ही सिद्ध हो जाते हैं। आधि- व्याधि सभी का विनाश हो जाता है और वह पुत्र, पौत्र, धन-धान्य से पूर्ण हो जाता है। यह परम पवित्र, विजयदायिनी पूर्णिमा सब विघ्नों को दूर करने वाली है तथा सब तिथियों में उत्तम है।

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Asit Rai
Rai A.
15 days ago

Great Article… So much new information..

Last edited 15 days ago by Asit Rai

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