हिंदुओं में रक्षाबंधन पर्व भाई और बहन के मध्य बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर रक्षा बंधन पर्व की शुरुआत माता लक्ष्मी द्वारा राजा बलि को रक्षा सूत्र बांध कर किया गया था।
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्री हरि वामन अवतार में राजा बलि से त्रिलोक लेने धरती पर आये। राजा बलि का यज्ञ चल रहा था, यज्ञ के बाद बारी दान देने की आयी। राजा बलि सभी ब्राह्मणों को दान देने लगे। उनकी दृष्टि भगवान वामन पर पड़ी उन्होंने कहा ब्राह्मण देव दान मांगिये। वामन भगवान ने कहा कि आप मुझे दान नहीं दे पाएंगे।
दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि से कहा कि यह साक्षात विष्णु हैं, इन्हें दान का वचन मत दो। बलि ने गुरु शुक्राचार्य की बात नहीं सुनी, उन्होंने कहा कि यदि यह विष्णु हैं तो हमसे सर्वस्य मांगेगे तो मैं उन्हें सर्वस्य दूंगा।
भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। दो पग में त्रिलोक नाप लिया अब तीसरा पैर कहाँ रखें? राजा बलि ने कहा कि हे ब्राह्मण, श्रेष्ठ तीसरा पग मेरे मस्तक पर रखिये। फिर क्या था भक्त ने भगवान को जीत लिया।
वामन भगवान ने बलि से कहा राजन वर मांगो तुम मेरे प्रिय भक्त प्रहलाद के पोते और विरोचन के पुत्र हो। मैं तुम्हें त्रिलोक का अधिपति बना सकता हूँ, वर मांगो!
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वां मनुबध्नामि, रक्षंमाचल माचल ॥
बलि ने कहा मैं आपको प्रतिदिन देखना चाहता हूँ, आप मेरे रक्षक बनिये। भगवान बलि के यहाँ दरबान बन गये। भगवान का वात्सल्य भक्त पर देखिये, कितनी सहजता से प्रभु सारे कार्य छोड़ कर बलि के बंधक बन गये।
कई दिन बीतने पर माता लक्ष्मी बहुत परेशान हुईं, भगवान बैकुंठ लोक छोड़ कर कहा गये? माता ने ध्यान किया, प्रभु पाताल लोक में राजा बलि की सुरक्षा में दरबान बने खड़े थे। माता लक्ष्मी बलि के पास पहुँची। बलि से कहा भैया! बहन दो तरह की होती हैं, एक सहोदर और दूसरी प्रेम के कारण। मैं आप की आज से प्रेम वाली बहन हुई। मैं इस रिश्ते को मजबूत करने के लिए आपको रक्षा सूत्र बांधती हूँ। भैया, आपको मेरी सुरक्षा का वचन देना होगा। बलि ने कहा ठीक है बहन! मैं आपकी किस प्रकार रक्षा करूँ?
माता लक्ष्मी ने सबसे पहले भगवान वामन की ओर संकेत करते हुए कहा कि ये मेरे स्वामी हैं, इन्हें अपने प्रेम के बंधन से मुक्त करिये। राजा बलि ने बहन की इच्छा पूर्ण की। यहीं से भारतीय संस्कृति में रक्षाबंधन की शुरुआत हुई। भाई बहन के प्रेम का त्यौहार। सनातन भारतीय संस्कृति में बहुत विविधताएँ हैं, सब के लिए कुछ न कुछ है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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अत्यंत सुंदर प्रसंग है। आपने बड़े कम शब्दों में सुंदर वर्णन किया है।
धन्यवाद जी🙏