मित्र से बात हो रही थी, वे किसी कथावाचक गुरु का गुणगान कर रहे थे।
बोले : महाराज जी को सुनते हैं तब आत्मा तृप्त हो जाती है। ऐसा लगता है कि सशरीर स्वर्ग में पहुँच जाते हैं।
मैंने पुछा : महाराज जी ने क्या-क्या सीखाया?
मित्र बोले : वे जो कुछ भी बताते हैं, वह जीवन का सूत्र ही होता है। बड़ी शिक्षाप्रद बातें बताते हैं।
मैं : ये तो ठीक है, लेकिन ऐसी एक बात बताइये जिसे आपने सीखा हो? जिसे अपने जीवन में अपनाया हो।
मित्र ने महाराज जी की बताई हुई कई अच्छी – अच्छी बातें बताईं लेकिन एक ऐसी बात न बता सके जिसे उन्होंने अपने जीवन में वास्तव में उतारा हो।
यह समस्या आज बहुत से लोगों के साथ है, उन्हें लगता है कि महापुरुषों को सुन लेने या, दर्शन कर लेने या आशीर्वाद ले लेने से ही सब कुछ मिल जाता है। किन्तु ऐसा नहीं है, गुरु या संत की वाणी ‘घुट्टी’ के समान है। उसे देखने – सुनने से नहीं बल्कि सटकने – निगलने से लाभ मिलता है। देखना – सुनना तो भोग का विषय है।
भगवान आदि शङ्कराचार्य “विवेक चूड़ामणि” में समझाते हैं कि जब तक आपने उस ‘घुट्टी’ को पीया नहीं है, तब तक वह सबकुछ भोग का ही विषय माना जायेगा।
वीणाया रूपसौन्दर्यं तन्त्रीवादनसौष्ठवम्।
विवेक चूड़ामणि – ५९-६०
प्रजारञ्जनमात्रं तन्न साम्राज्याय कल्पते॥
वाग्वैखरी शब्दझरी शास्त्रव्याख्यानकौशलम्।
वैदुष्यं विदुषां तद्वद्भुक्तये न तु मुक्तये॥
जिस प्रकार वीणा का रूप – लावण्य तथा तन्त्री को बजाने का सुंदर ढंग मनुष्यों के मनोरंजन का ही कारण होता है, उससे कुछ साम्राज्य प्राप्ति नहीं हो जाती; उसी प्रकार विद्वानों की वाणी की कुशलता, शब्दों की धारावाहिकता, शास्त्र व्याख्यान की कुशलता और विद्वता भोग का ही कारण हो सकता है, मोक्ष का नहीं।
गुरु तटस्थ रूप से ही शिष्य को ईश्वर का मार्ग बताते हैं, स्वयं लेकर नहीं जाते। यह विवेकवान शिष्य की विद्वता पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार से गुरु की बात को समझ कर उससे शिक्षा लेता है। आचार्य शङ्कर भी यही कहते हैं कि गुरु भी केवल तटस्थरूप से ही ब्रह्म का बोध कराते हैं, यह विद्वान शिष्य के ऊपर है कि वह अपनी ईश्वरानुगृहीत बुद्धि से अनुभव कर इस संसार – सागर से पार हो जाये।
इसके लिए आवश्यक है कि जिसे आपने गुरु माना है, उनकी शिक्षा को आत्मसात अवश्य करें, अपने जीवन में उतारें अन्यथा सभी कुछ मात्र भोग का ही विषय बन कर रह जायेगा। वास्तविक शिक्षा वही है जिसे आपने अपने जीवन में उतारा हो। जिन अच्छी बातों की जानकारी हो या जिन अच्छी बातों को आप जानते हों, उससे कोई लाभ नहीं है जैसे औषधि को रखने, देखने या जानने से कोई लाभ नहीं, लाभ तभी है जब आप उसका सेवन करें।