भारत का मानुस अपनी असफलता और बुराई का दोष भाग्य और ईश्वर को देता है समाज की बुराई का श्रेय ब्राह्मण को। आज जो पुत्र पैदा हुआ, जो नौकरी मिली, जिसको लोग कहते है ईश्वर कि कृपा, भाग्य की वजह से हुआ है। किन्तु जो पुत्र पैदा हुआ वह नौ महीने पहले माता पिता के कर्म थे, जो नौकरी मिली है वह पूर्व में अथक परिश्रम का परिणाम है।
गरीब, गुरबा, पिछड़ा, दलित, उपेक्षित, अल्पसंख्यक की बात गाँव शहर बुद्धिजीवी से होते हुए विधानसभा और संसद तक गुंजायमान है। इन सब कारण के पीछे ब्राह्मण, सवर्ण है ऐसा बताया जाता है। देश जो 750 साल गुलाम रहा है तराइन के मैदान मे पृथ्वीराज की पराजय ने भारत की संस्कृति को ही बदल दिया। सत्ता गोरी, मामलुक, खिलजी, सैयद, तुगलक, अफगान, मुगल और अंग्रेजों से होते हुए नेताओं तक आई। ब्राह्मण जो वैज्ञानिक हुआ करता था उसने अपनी सारी ऊर्जा पराधीनता से मुक्त होने में लगा दी (पराधीन सपनउ सुख नाहीं)। भारत के मुक्ति यज्ञ में मंगल पांडेय जिन्होंने 1857 की क्रांति का विगुल फूंका था जिसमे लक्ष्मी बाई, पेशवा नाना साहब से होते हुये तिलक, रानाडे, सुरेंद्र नाथ बनर्जी, दास, गांधी के गुरु गोखले, नेहरू, पंत आजाद, सान्याल ने मरते दम तक देश के लिये जिये। 71 वर्ष आजादी के 86 वर्ष आरक्षण के बाद लोग ऊपर क्यों नहीं उठ पा रहे। लोग अपने को पिछड़ा बता आरक्षण की मांग कर रहे है। दोषी ब्राह्मण है कि लोग पिछड़े रहने में ही मजा ले रहा है। भारत के वे लोग जिन्हें बुराई मुस्लिम शासकों और अंग्रेजों में नहीं दिखी तब वह समस्या को जान भी नही पायेगा। भारत आये विदेशी यात्री मेगस्थनीज, फाह्यान, ह्वेनसांग, अलबरूनी, इब्नबतूता, अब्दुल, मार्कोपोलो, निकोलकॉन्टि, नूनीज, बारबोसा, बर्नियर, विल्सन, विलियम जोन्स तथा भारत मे जन्मे अमीर खुसरो, अबुल फजल भारत के ब्राह्मणों के ज्ञान विज्ञान की खूब प्रशंसा की है। वही कृतघ्न लोग गाली दे रहें है जो अपनो को ही नहीं जाना वो सपने क्या जानेगा। मुसलमान और अंग्रेजों के फैलाये गये भ्रम ने आखिरकार काले अंग्रेजों को जन्म दे दिया। ब्राह्मण के कार्यो को ब्राम्हणवाद कह के दुष्प्रचारित किया। अपने लोग अपनो के सामने ला खड़ा किया। बाकी कसर नेताओं ने पूरी कर दी। आरक्षण और दलित एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं मानेंगे। तो राममंदिर पर उसके फैसले का इंतजार क्यों हो रहा है। संविधान सुधार से हल किया जा सकता है।
भारत कहते ही जेहन में एक नाम उभरता है ब्राह्मण जो आज चरणबद्ध तरीके से किनारे किया जा रहा है। जिसने अपने रक्त से देश को सींचा, जिसने मुस्लिम, अंग्रेजों के आगे घुटने नहीं टेके उन्हें आज का समाज और राजनीतिक व्यवस्था घुटने टिकाने को विवश कर रही है। जिस देश में योग्यता का सम्मान नही होगा वहा भ्रष्टाचार, हिंसा, अपराध का बोलबाला होगा। युगांडा के तानाशाह ईदीअमीन ने देश की समस्या का कारण एशियाई लोगों को ठहराया, यही यहाँ का प्रशासनिक वर्ग भी था और उन्हें देश निकले का फरमान सुनाया जिसमे 70 फीसदी भारतीय थे।इनके जाते ही देश चरमरा गया आठ साल बाद उन्हें फिर से वापस बुलाया गया। शांति की स्थापना के लिये। देश को गति देने के लिए।
इस समय देख सकते है देश के सबसे बड़े नेता अम्बेडकर बन गये है वह भी दिन दूर नहीं जब राष्ट्रपिता की उपाधि गांधी से लेकर इन्हें दी जायेगी। कुछ लोग कह रहे है सुभाष चंद्र बोस नाम अम्बेडकर का लेना चाहते थे गलती से गांधी निकल गया था। स्वतंत्रता की प्रमुख जंग तो अम्बेडकर ने लड़ी थी।
ब्राह्मण नामक जो जाति है इसे भी भूख लगती है इसके भी बच्चे है जिसके लिए रोजी रोजगार चाहिये। आज वह संगठित नहीं उसकी मांगे मौन है नेतृत्वविहीन है वोटो की तादाद कम है, क्या सम्मान से जीने नही दिया जायेगा। उसने कहाँ सोचा था जिनके लिये वह लड़ रहा है आने वाले दिनों ये उसे ही कटघरे में खड़ा कर देंगे। सारा दोष ब्राह्मण का, सारा समाधान आरक्षण से पर लोग ये नही देख रहे आरक्षण रोजगार नहीं देगा। रोजगार जो सरकारों के पास है नहीं। आरक्षण वह तीर है जिससे नेता कुर्सी साध रहा है। ब्राह्मण जो अपनो से प्रतिरोध नहीं करता है। वह पूरे विश्व को परिवार मानता है सब के सुखी होने की कामना करता है। किन्तु आप है कि वैमनस्य बनाये हुये है।ब्राह्मण की बातें कोई नहीं कहता है उसके योगदान को अनदेखा किया जा रहा है। वैसे भी यह वह जाति है जो अधिकार की नहीं कर्त्तव्य की बात करती है। परिवर्तन प्रेम से क्रान्ति खून से आती है मैं इतिहास देखता हूं।
शेष अगेले भाग भारत का ब्राह्मण -2 (विश्व को ब्राह्मणों ने क्या दिया?) में ..
Bilkul satyakaha apne
Bahut hi khubsurt post sari ki sari bate sachh khi h apne very good .