आदि शंकराचार्य द्वारा अखाड़ों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य था धर्म की सुरक्षा के लिए एक स्थायी सेना तैयार करना, जिसमे नागा साधु तत्पर थे। इनको चार मुख्य पीठों के शंकराचर्यों के द्वारा निर्देशित किया जाता था। नागा साधु को हठयोग के साथ हथियार चलाने का भी प्रशिक्षण प्राप्त होता था।
नागा साधुओं की नियुक्ति मंदिर की सुरक्षा में रहती रहती थी, जैसे अयोध्या राम मंदिर, मथुरा कृष्ण मंदिर, काशी विश्वेश्वर मंदिर, पुरी जगन्नाथ मंदिर आदि पर वाह्य आक्रमण होने पर त्वरित सुरक्षाबल के रूप में नागा साधु जूझ पड़ते थे।
मुस्लिम शासकों से धर्म के लिए लड़ने के लिए नागा साधु आज भी प्रसिद्ध हैं। काशी के बगल में एक गांव है, जहाँ अब मेला लगता है, मेला के पीछे कहानी यह है कि जब मुस्लिम आक्रमणकारियों ने उस गांव को लूटना चाहा तब नागा साधुओं की टोली कई दिनों तक लड़ी वह भी जब तक पूरी तरह से मार नहीं दिए गये।
अंग्रेजों के खिलाफ 1763 – 1773 के बीच प्रथम विद्रोह का बिगुल भवानी गिरि के नेतृत्व में दसनामी अखाड़े के सन्यासियों द्वारा फूंका गया। अंग्रेजों की नीतियों से किसान, शिल्पी, जमीदार आदि परेशान तो थे वही तीर्थों पर रोक लगा दी गई। शिल्पियों, बुनकरों को अग्रिम रकम दे कर उनके हाथ अंग्रेजों ने काट दिए जिससे भारत की अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी।
भयंकर अकाल पड़ा, गांव के गांव उजड़ गये, मैदान मृत मनुष्यों की हड्डियों से भर गये। बंगाल सूबे के एक तिहाई लोग मारे गये। बहुत से लोग जीवित रहने के लिए मुर्दा खाने पर विवश हुये। भयानक संक्रामक बीमारी छोटी माता, बड़ी माता के रूप में फैली। तुम कहते हो अंग्रेज़ों ने भारत का विकास किया। अरे, मिट्टी के माधव कोई सात समंदर पार करके तुम्हे लूटने ही आयेगा, न कि विकास करने।
साधु और संत समाज अपने लोगों के लिए शास्त्र छोड़ शस्त्र उठा लिए। दसनामी अखाड़े ने धर्म और संस्कृति को बचाने के लिए एकजुट होकर लगभग 50 हजार की सेना इकट्ठा करके अंग्रेजों पर हमला किया। “आनंदमठ” नामक पुस्तक ने संन्यासी विद्रोह का वर्णन किया है, पुस्तक का स्पष्ट कहना है कि तब सन्यासियों का नारा था वंदेमातरम, यही आगे चलकर राष्ट्रगीत बना। जिसके लिए लाखों हिंदू योद्धा बलिबेदी पर चढ़े।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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