हम बगैर समाज सुधारे राजनीति के सुधार की बात कैसे कर सकते है? समाज भी तब सुधरे जब व्यक्ति में चरित्र का निर्माण हो। लाभ भगवान से चाहिये विधि अंग्रेजी?
भारत के लोगों के चरित्र निर्माण में ही भ्रांतियां डाल दी गई। मन भारतीय है मुखौटा अंग्रेज, परिणाम देख सकते है। नारी आधार से भोग्य की वस्तु बन गई। मनुष्य वेकार, रद्दी रह गया।
माता पिता संत्रास है। वेबस चाटुकारिता चरण चुम्बन कोरा आदर्श बन गया।
जातीय अहंकार मानवता से कही दूर ले गया है। बंधुता, तप, त्याग जैसे आदर्श दूसरे युग के लगते है। ज्ञान, विज्ञान, संस्कार, संस्कृति सब पुराने खयालात है, अश्लीलता आधुनिक विचारधारा का स्वरूप ले रही है। दूसरे व्यक्ति के कामों में टांग देना सभ्यता बनता जा रहा है।
जब समाज और विश्व एकला चलो की धुन रमाये है बुद्धिजीवी घोंघे की खोल से निकलना नहीं चाहता है। व्यक्ति, समाज, देश और सीमा कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता है।
अपने ज्ञान और धर्म का बेजा प्रदर्शन नारी के चिल्लाने में सुख की अनुभूति करने वाले पुरुषरूपी दानव ने युद्ध के बाद युद्ध कर सामान्य लोगो के भाग्य को अपने में भाग्य के मकड़जाल में समेट कर राज्य पिपासा को शांत करता है। व्यक्तियों की उन्नति तरह तरह की विचारधारा में डूबती चली जाती है। अभी प्रश्न बाकी है दोस्त मुझे और मेरे मन को कौन चला रहा है?
मेरा एहसास और अनुभव कहता है मैं अपने से नहीं चल पा रहा हूं टॉर्च कोई और कर मन न चाहते हुये विवश है उस रपटीली राहों में विवश गाड़ी चलाने को।
मैं हार रहा हूं कि जीत, कोई आवाज नहीं आ रही है। शरीर मरी हुई आत्मा का घर बन गया। जीवन का उल्लास, हर्ष सब बनावटी हो गये है। अकेले और अंधेरे से आज भी बहुत डर लगता है।
रोना तो चाहता हूं मगर ये आँसू साथ नहीं दे रहे हैं। पानी का समुद्र अभी भाँप बन ऊपर मंडरा रहा है, बारिश आने में कुछ दिन अभी बाकी है।
हम करते कुछ है करना कुछ और चाहते है, जो बना है उससे बहुत गुस्सा है। आशाओं के द्वीप कुहासे ले गये। अब केवल मैं इस निर्जन दुनिया में भ्रमण करता हूं लोग मेरे ऊपर से जाते है मैं नहीं रोक पा रहा हूँ। मैं बहुत विवश और लाचार हो गया हूँ, सत्य के अमूर्त को मूर्त बनाने की सोच वर्षो से है लेकिन औजार नहीं मिल रहे है। अब तो लगता है मैं बीमार हूँ डॉक्टर कहता है तुम्हे कुछ नहीं हुआ है। धीरे ही सही मेरी सांसे वायु की मित्र बनती जा रही है। धरती अपना शरीर मांग रही है।
यदि इन्हें इनकी चीजे लौटा भी दूँ तो क्या ये मेरा “मैं” दे पाएंगे? मुझे अपनी सुधि होते ही ये ब्रह्माण्ड साफ हो सकता है।