प्रकृति परिवर्तन का नाम है। मनुष्य परिवर्तन को लेकर सदा आतुर रहता है। आइये इस लेख में २०५० के भयानक परिवर्तन को देखें।
अब तक लोग गांव से शहर जाते थे, किन्तु अब शहर गांव में आ गया है वह भी अपनी बुराइयों के साथ। गांव के शुरुआत में ही किराने के साथ-साथ शराब, मांस और भोजन की दुकानें खुल गयी हैं। एक नया मजहब अम्बेडकर भीम बन चुका है। मुस्लिमों की तादाद ३६ फीसदी हो गयी है। जगह-जगह हिन्दू मार खा रहा है।
सरकारें चुनाव के पश्चात लोगों को सोने के लॉकेट और स्कूटी लकी ड्रा से दे रही हैं। शाकाहारी भोजन की विविधता में कमी है और मांसाहारी भोजन की भरमार है।
गौरैया और उसकी तरह के अन्य पक्षी कंक्रीट के घर और 8G मोबाइल के होने से लुप्त हो चुकी हैं और अब पुस्तकों में ही मिलती हैं। गाय सड़क पर या डेरी में मिलती हैं। मनुष्य के मनुष्यत्व में कमी आयी है, वह मनुष्य कम भौतिक ईकाई अधिक नजर आता है। पूजा भी प्रॉक्सी तरीके से करवाता है। जबकि खाना, पीना, भोजन, भजन और मैथुन में प्रॉक्सी नहीं होता।
सबसे बड़ा परिवर्तन मनुष्य के सम्बन्धों में है। ओल्ड-एज होम कम होने से वृद्ध माता-पिता की स्थिति बहुत दयनीय हो चुकी है। नारियाँ अब न भोजन बनाती हैं और न ही बच्चे पालती हैं, यह दोनों कार्य पुरुष करते हैं। माताएं बच्चों को अपना दूध नहीं पिलाती, उनका कहना है इससे फीगर खराब हो जाता है।
विवाह नामक संस्था जिसे सनातन हिन्दू धर्म ने विश्व को दिया था, वह व्यवस्था भारत में ही छिन्न-भिन्न हो चुकी है। कलिकाल बेहाल किये है। स्त्री नित नये पुरुष को तो पुरुष नित नई स्त्री को खोज रहे हैं। एक स्त्री न एक पुरुष के लिए है न ही पुरुष एक नारी के लिए।
जात-कुजात, स्त्री-पुरुष सब नचनियां हैं। जिसे नाचना नहीं आता वह डांस क्लास ले रहा है।