अफगानिस्तान में जिस तरह से तालिबान ने सत्ता हड़प की है उससे कई प्रश्न आतंकवाद के साथ – साथ अमेरिका, चीन, सयुक्त राष्ट्र संघ, रूस और भारत पर उठे हैं।
अपने – अपने स्वार्थ के लिए आतंकवाद को 20 सालों बाद पुनः सत्तासीन किया गया है। यही आतंकवाद का तुष्टिकरण है। जिस तरह सीरिया में ISIS को रोका गया तो वहीं अफगानिस्तान में तालिबान को आबाद किया गया।
अफगानिस्तान में दो तरह की सोच है, दक्षिण अफगानिस्तान जिसकी सीमा पाकिस्तान से लगती है। तालिबान भी वही का है, वह कट्टरपंथी और मजहबी सोच वाले हैं, इनका प्यार पाकिस्तान है। इसके विपरीत उत्तरी अफगानिस्तान जो कि उदारवादी हैं जिनका झुकाव भारत की ओर अधिक है।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के मुल्क छोड़ने के बाद उपराष्ट्रपति सालेह ने स्वयं को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया। कजाक मूल अफगानी के बाद यह पंजशीर का शेर है जिसने तालिबान के खिलाफ संघर्ष का रास्ता चुना है क्योंकि उन्हें पता है कि पिछली बार भी पंजशीर तालिबान से स्वतंत्र रहा है और इस बार भी रहेगा।
भारत की विदेश नीति कैसे पिछड़ रही है, खासकर अपने पड़ोसी देश के मामले में। मालदीव, श्रीलंका, बंलादेश, नेपाल और ईरान में जिस चीज के निर्माण का टेंडर भारत को मिला था वह अब चीन के पास है। ईरान का चाहबहार पोर्ट इसका ताज़ा उदाहरण है।
समस्या यह है कि हमें यह पता करना है कि हमारी सामरिक और विदेश नीति में चूक कहाँ रह जा रही है? कहीं न कहीं हमारी पूरी विदेश नीति का आधार अंग्रेजी नीति है। हम राम, कृष्ण, चाणक्य और विक्रमादित्य की नीतियों को भुला बैठे हैं। जिसका अनुसरण कर भारत के राजाओं ने भारत का डंका विश्व भर बजाया था। आज का आलम यह है कि हमें नेपाल, बंगलादेश, मालदीव जैसे छोटे देश आंख दिखा रहे हैं।
श्री राम विश्व के ऐसे अकेले राजा रहे हैं जिन्होंने सेना पर शून्य निवेश करके दिग्विजयी रावण को पराजित किया। भगवान कृष्ण ने जब देखा कि पड़ोसी राज्य एक महायुद्ध करने जा रहा है तो वह सारे कार्य छोड़ कर युद्ध का हिस्सा बन गये। रणछोड़ दास, राजधानी परिवर्तन सब अपनी सामरिक नीतियों के लिए किया। उनके पास विश्व का सबसे सशक्त हथियार शारंग और सुदर्शन था फिर भी आमजन की कैजुअलटी न हो इसके लिए सारे प्रयास करते थे। पड़ोसी जब युद्ध में हो, अराजकता के बीच हो तो किस नीति का अनुसरण करना चाहिए, यह युद्धभूमि में दुर्योधन के मरने पर अपने बड़े भाई बलराम जी बताते हैं।
भारत पर विचार करिये, जिस समय अफगानिस्तान पर तालिबानी अराजकता चल रही थी उस समय भारतीय संसद OBC आरक्षण विधेयक पास कर रही थी और भारतीय जनता मुफ्त राशन की लाइन में खड़ी थी।
कितनी बड़ी अदूरदर्शिता का परिचय दिया गया। जब अफगानिस्तान में कुछ नहीं किया तो POK पर अधिकार करने का सुअवसर क्यों छोड़ दिया? तब तो पाकिस्तान की सेना और आतंकवादी दोनों का ध्यान अफगानिस्तान पर था। चीन पीछे से तालिबान के मामले को संभाल रहा था और अमेरिका भाग रहा था कोई कुछ न बोल पाता, पूरा POK हमारा होता। किन्तु आप ओबीसी बिल में मस्त थे।
भारत कैसे भूल गया कि उसकी सीमा पर चीन और अमेरिका ने आतंकवाद रूपी बबूल के पेड़ लगा दिए हैं, जब यह विस्तार करेगा तो वह भारत की सीमा का अतिक्रमण कैसे नहीं करेंगा?
एक नारी की रक्षा के लिए राम और कृष्ण ने रावण और दुर्योधन के वंश उजाड़ दिये। आपने क्या किया? अफगानिस्तान के बाजार में बेबस महिलाएं बेची जाएँगी।
अमेरिका से कुछ सीखिए, 9/11 का बदला लेने अफगानिस्तान आया, मुल्लाउमर और लादेन को मारा, अब आतंकवादियों को हथियारों की सप्लाई करेगा। अपने हित को साधा और आपके पड़ोस में आतंकवाद की नई फैक्ट्री लगा कर चला गया।
स्वयं की रक्षा के लिए स्वयं खड़े होइये, अमेरिका या पश्चिम की बैसाखी को छोड़िये। चाणक्य के ‘शठे शाठ्यम समाचरेत्’ नीति का अनुसरण कब करेंगे। वीरों और कुटिनीतिज्ञों की भूमि पर साहस की कमी की वजह से भारत जैसा देश किंपुरुष की स्थिति में पहुँच गया।
इसका कारण है लोकतंत्र, आरक्षण, मुफ्त वाली योजनाएं। हमारे पास विश्व जीतने को पड़ा है, जैसे ही आपके घोड़े चतुर्दिक अभियान करते, आप के लोगों के रोजगार की कमी न रहती। मैकाले बुद्धि अपने को ही सर्प की तरह खा रही है, वीरों को बिना अवसर दिये पराजित कर दिया गया।
पानीपत के तृतीय युद्ध 1761 में जब मराठों की भारत के किसी राजाओं ने मदद नहीं की तो उनके कैम्प में रसद नहीं पहुँची, सैनिक भूखों मरने लगे, उन्होंने सदाशिव राव से कहा श्रीमंत हमें भूख से न मरने दें, हम युद्ध में मरना चाहते हैं। यह उन वीरों की भूमि है। पेट में अन्न नहीं है फिर भी शौर्य की गाथा लिखना चाहते हैं।
भारत के हाथ से एक – एक करके मुट्ठी बालू की तरह मित्र देश खिसकते जा रहे हैं। अमेरिका, रूस, नेपाल, म्यामांर, लंका, मालदीव, ईरान आदि।
भारत सबसे पहले अंग्रेजी लोकतंत्र को खत्म करें। यह लोकतंत्र लोगों की जगह जाति, वर्ग और अयोग्य को संरक्षण देती है। संसद ध्वनि मति से आरक्षण और नेताओं के वेतन को पास करती है। सामरिक नीति पर सबूत मांगती है। आतंकवादियों के लिए कोर्ट खुल जाती है। जब तक ऐसे लोकतंत्र का खात्मा न होगा, यह देश नपुंसक बना रहेगा।
भारत का बहुसंख्यक मुसलमान तालिबानी शासन से खुश हैं, मुस्लिम औरतें भी खुश हैं। शरिया कानून जो लागू हो रहा है, उनके हिसाब से भागने वाले लोग सच्चे मुसलमान नहीं हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, आतंकवाद की फैक्टी देवबंद और मुस्लिम नेताओं का भी यही मानना है। मुस्लिम विचारधारा के वफादार लोग उसके लिए मायने नहीं रखते हैं। आतंकवाद का समर्थन बताता है कि भारत में इनको को बसा कर कितनी बड़ी चूक भारत ने की है।
बोलने और पहनने की आजादी की बात करने वाली रिपोर्टर हिजाब में रिपोर्टिंग कर रही है। स्त्री की सुरक्षा और अधिकार की बात करने वाले कम्युनिस्ट इस समय दास कैपिटल का कैप्सूल लिए मदहोश हैं। फिलीस्तीन पर वह फिर होश में आयेंगे।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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