मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की महिमा क्या है, कम से कम वह सभी जान गये हैं जो अभी पानी पी-पी कर पूछ रहे थे कि मंदिर बना की नहीं, कब बनेगा या हमें मंदिर की नहीं बड़े संस्थानों की जरूरत है जिससे रोजगार का सृजन हो।
मंदिर का भारत की GDP में 3.7 प्रतिशत योगदान है। मंदिर की जगह अस्पताल की वकालत करने वाले को यह भी नहीं पता होगा। हिन्दू धर्म में पूर्वकाल से मंदिर अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार के साथ ही अनाथालय, हॉस्पिटल और स्कूलों का संचालन करते रहे हैं।
इस समय भारत के सभी बड़े मंदिरों के चढ़ावे पर राज्य सरकार का कब्जा है। चढ़ावे से हर वर्ष एक दो हॉस्पिटल और स्कूल खुल सकते हैं। राजस्थान के नाथ द्वारा मंदिर के चढ़ावे पर विधानसभा में प्रश्न करने पर उत्तर मिला कि इस धन का प्रयोग सरकार शौचालय बनवाने, सफाई और लोक कल्याण के कार्यों में करती है।
अयोध्या में अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रति वर्ष 75 करोड़ श्रद्धालु देश-विदेश से पहुँचेंगे। लगभग 50 हजार करोड़ का व्यापार होगा और इससे लगभग 10 लाख लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा।
भगवान राम और श्रीरामजन्मभूमि मंदिर या अन्य मंदिर के विरोध के पीछे कारण है भारत की संस्कृति का विरोध कर विधर्मी पाश्चात्य संस्कृति और बर्बर अरबों की संस्कृति को बढ़ावा देना। कमोबेश केरल के मॉडल को आगे रख कर।
पाश्चात्य सभ्यता को सबसे बड़ा खतरा सनातन संस्कृति से रहा है, उसके लिए अंग्रेजों ने भारतीयों को नौकरी देकर नौकर बना लिया। भारत का पूरा अर्थ तंत्र उनके कब्जे में पहले से था जिससे उन्होंने समाज को नियंत्रित कर धर्म को ही पर्दे की ओट में करके सतीप्रथा, देवदासी, बहुविवाह, जात-पात आदि का दुष्प्रचार किया। तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था के समर्थन के आधार पर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि सनातन हिन्दू धर्म में उंच-नीच और भेद-भाव है। आदि ग्रंथ वेद सांप्रदायिक हैं, यह असमानता का पोषण करते हैं, पशु हिंसा से भरे हैं।
भारत में यह प्रचलित रहा है कि खेत में हल चलाते किसान से यदि आप देश-दुनिया, समाज और धर्म के विषय में कुछ पूछते हैं तो हो सकता है कि वह जबाव न दे। किंतु उससे राम के विषय में पूछने पर वह कहता है आइये बैठिए जल ग्रहण करिये, वह बैल को सुस्ताने को छोड़ राम-चर्चा करने लगता था।
राम या मंदिर पर जो व्यवहार भारत की सेक्युलर राजनीति ने किया है वह बाबर और औरंगज़ेब के द्वारा किये गये कुकृत्य से कहीं कम नहीं है। आक्रांताओं ने शरीर को आहत किया, इसने आत्मा को ही वेध डाला है। हिन्दू जनमानस में बहुत छटपटाहट, व्याकुलता, तिलमिलाहट और क्रोध था लेकिन उसके पास उस समय वैसा नेता नहीं था।
नेता जातियों की सीढ़ी पर चढ़कर सत्ता की साँप सीढ़ी खेलते रहे हैं। कितनी राजनीतिक पार्टियां अभी भी धोखे में रखीं हैं, संस्कृति में छेद कर रही हैं। आज के परिस्थिति में वह राम की आलोचना कैसे करें, ऐसे में वह मंदिर स्थापना और विग्रह की प्रतिष्ठा का नियम बता रहे हैं।
नेता और राजनीतिक पार्टियां सावधान रहें जिन्हें श्रीराम अब भी नहीं दिख रहे हैं वह यह समझ लें कि आने वाले समय में वह भी वीपी सिंह और उनकी पार्टी की तरह ही बनने जा रहे हैं।
आप नेता हैं, ठीक है लेकिन जिस पात्र में खाया जाता है उसमें छेद नहीं किया जाता है, कुत्ता भी अपने बैठने के स्थान को साफ कर लेता है। (संकेत)
राम-द्रोह में इतने निमग्न न हो जाइए कि अपनी धरती से गिरना पड़े। आप घर से बाहर निकल कर आँख से देखिए, कानों से सुनिए राम, जयश्रीराम, सियाराम और राजा रामचन्द्र की ध्वनि सुनाई देगी, आप भी अपने पाप धो लेना। आप राम-राज का धोबी न बनना बल्कि केवट बन जाना।