दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के ठिकानों पर छापा हो या सोनिया गांधी और संजय राउत पर CBI द्वारा एफआइआर हो, विपक्ष के दो ही बोल हैं। एक, सत्ता पक्ष के लोगों पर छापा क्यों नहीं पड़ रही है, वह कौन से दूध के धुले हैं। दूसरा यह कि राजनीतिक विद्वेष के तहत ऐसी कार्यवाही हो रही है।
अभी तक की राजनीति में एक बना बनाया नियम था – ‘तुम भी लूटो हम भी लूटें, न तुम मेरे पर कार्यवाही करो, न मैं तुम पर’। जाति के नाम पर राजनीति कर मेरा और तुम्हारा परिवार मौज करे।
यह विचारणीय और नैतिकता का विषय है कि जब किसी चोर या भू-माफिया पर सरकार बुल्डोजर चलाये या कोई अन्य कार्यवाही करे तो इसकी सराहना होनी चाहिए। तुम भी अपनी बारी का इंतजार करो जब सत्ता में आना तो आज के सत्तासीन, जो दूध का धुले नहीं हैं, उनपर कार्यवाही करना। इस बात का जनता को इंतजार रहेगा। लेकिन अभी भू-माफिया, गुंडे आदि में जाति और धर्म की खोज न करिये।
नेता बन जाने पर, किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं हो सकती है – संविधान में ऐसा कोई वर्णन भी नहीं है। लेकिन भ्रष्ट नेता लोकतंत्र की दुहाई दे रहा है। २०१० में दिल्ली में हुए कामनवेल्थ गेम्स में वैश्विक स्तर का अद्भुत रंगारंग कार्यक्रम हुआ था, जिसके लिए अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी और तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की बहुत सराहना हुई। किन्तु जल्द ही कामनवेल्थ २०१० की वैश्विक स्तर की व्यवस्था विवादों में आ गयी और घोटालों के आरोप लगे जिसका लाभ केजरीवाल ने उठाया लेकिन अब तक दोषियों को कोई सजा न मिली। लगता है पिछले दरवाजे से समझौता हो गया।
चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव को पद छोड़ना पड़ा था, उसमें लालू प्रसाद ने कहा था कि गाय चारा खाती है तब दूध देती है। लालू ने चारा खाया तो राबड़ी दिया, राबड़ी उस समय मुख्यमंत्री बनी थीं।
२००८ में आईएएस अधिकारी के मर्डर केस में शिबू सोरेन को दिल्ली हाईकोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई। शिबू सोरेन ने रांची की एक जनसभा में रोत हुए कहा कि दिकू (उच्च वर्ग) लोग नहीं चाहते हैं कि एक अदिवासी का लड़का आपके अधिकारों की मांग दिल्ली में उठाये।
नेता के भ्रष्ट्राचार पर जातीय कलेवर डाल दिया जाता है। उसे उसके जातीय स्वभिमान, यहाँ तक कि उसे जातीय नायक (हीरो) के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। उसके जाति वाले कहते हैं – ‘क्या कोई यही अकेले घोटाला किये है, वह सभी नेता करते हैं। हमारे नेता पर राजनीति विद्वेष के तहत कार्यवाही हो रही है।’
जातियां राजनीति का बीमा रही हैं, इसे उभार कर राजधानियों की सांप – सीढ़ी खेली जाती रही है। इसी के तहत उनपर कोई कार्यवाही नहीं होती है। भ्रष्ट्राचारी नेताओं का मानना है – क्योंकि वह नेता है इसलिए उसे इस बात का आरक्षण मिला है कि वह किसी कानून के दायरे में नहीं आता। उसकी सम्पत्ति में चाहे १००० करोड़ का इजाफा हो, कोई सुनवाई नहीं होगी। मुलायम सिंह का लोकपाल विधेयक पर संसद में यह कहना था कि ‘यह वह विधेयक है जिसमें हम नेताओं को थाने में दरोगा के सामने लाकर खड़ा कर देगा।’
भारतीय राजनीति में चाल, चरित्र और चेहरे वाले लोगों की जगह चुनाव जिताऊ लोगों ने ले लिया है। राजनीति धक्का – मुक्की वाली हो गयी है। नेता स्वयं को अच्छा और दूसरे को भ्रष्ट कहता रहा है। किंतु किसी पर कोई कदाचार लागू नहीं होता। पहले मुकदमा नहीं होता है, मीडिया ट्रायल आदि के बाद यदि हो भी गया तो वह राजनीतिक द्वेष ही कहा जायेगा। जातीय और धार्मिक रंग दिया जायेगा, प्रमाण आपके सामने है।
राजनीति आज के समय में सबसे बड़ा व्यापार बन गयी है और नेता व्यापारी! उन्हें जिससे पैसा मिले उसी के प्रति आस्था और उसी की नीति। सेवा की ये जगह धन – सत्ता के जोर के लिए इकट्ठा हो रहे लोग हैं। यही जनता का और देश का भविष्य निर्मित करेंगे और देश का विकास मुफ्त की रेवड़ी के बल पर करेंगे।
१९४४ में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विन्सटन चर्चिल ने कहा था – ‘यह जो गांधी टोपी लगाए नेता देश, स्वतंत्रता और ईमानदारी की बात कर रहे हैं, एक दिन भारत के लोग इनसे त्रस्त हो जायेंगे। यह हवा पर भी टैक्स लगाएंगे।’ आज स्थिति चर्चिल के व्यक्तव्य वाली ही बनती जा रही है।
नेहरू जी के जामाता और इंदिरा जी के शौहर फ़िरोज गांधी के ट्रक घोटाले से शुरू होकर यह ताबूत, चारा, टेलीकॉम, कामनवेल्थ आदि से होते हुए अब आबकारी नीति तक धड़ल्ले से चल रहा है। नेता कहता है कि ‘बदनाम होंगे तब भी तो नाम होगा।’