बचपन की साइकिल

spot_img

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

बचपन ऐसा होता है जो मौज-मस्ती, खेल-कूद से भरपूर रहता है। जब मन किया हँस लिए, थोड़ा कुछ हुआ रो लिए। एक-एक त्योहार को बढ़िया से सेलिब्रेट करते हैं। यह जीवन का सबसे मजेदार समय होता है।

इसमें मकान, दुकान, भूमि, पत्नी, बच्चे, समाज यहाँ तक कि किसी के मरने-जीने की चिंता भी नहीं रहती है। खेलो-खाओ स्कूल जाओ। हम जब छोटे थे, तब यही सब मेरे साथ भी हुआ था। घर जब पूजा होती थी, पूजा से ज्यादा उसमें गणेश जी की आरती का इंतजार रहता था। किंचित यह सभी बच्चों के साथ रहता है.. जय गणेश देवा… यही याद रहता था जोर-जोर गाते थे। यह आरती बहुत सहज में रट जाती थी।

इसके अलावा एक और मेगा सेलिब्रेशन तब होता था जब घर में हमारे लिए साइकिल आती थी। मन करता कि जितनी भी जानी पहचानी जगहें हैं, सब जगह साइकिल लेकर जाएँ। घर के सारे काम इसी से कर डालें।

बालपन उसकी उमंग, उसकी सोच अपनी ही अल्हड़ता में चलते हैं। मेरे लिए साइकिल आने की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी।

मेरे लिए साइकिल तब आई जब कक्षा 9 में पढ़ने के लिए गांव से बाहर जाना हुआ। बचपन के एक और सबसे प्रिय पात्र मामा होते हैं। क्योंकि वह भी बचपन की कुछ हठों को पूरा करते हैं।

मेरे मामा मुझसे बोले थे कि तुम जब दूर पढ़ने जाना तब मुझसे साइकिल ले लेना। यह अपने काम की चीज थी इसलिए याद थी। एडमिशन होने के बाद जब साफ हो गया कि रोज गांव से दूर स्कूल जाना है। तब बारी आई मामा को साइकिल दिलाने वाले वचन याद दिलाने की थी।

मामा मेरे गांव से कुछ ही किलोमीटर दूर प्राइमरी स्कूल में टीचर थे। सीधे उनके स्कूल पहुँच गये, उन्हें उनके वादे को पूरा करने को सुधि दिलाने के लिए।

आशा थी, आज ही मामा से साइकिल लेकर आऊंगा। मामा ने मुझसे मजाक किया कि वह कब कहे थे साइकिल दिलाने को? फिर क्या था रो धोकर घर भाग आये। मां से बताए मामा बहुत झूठे हैं, अपनी बात से बदल गये।

सपना टूटा था, कुछ उदासी थी। हमारे समय में बचपन का एक सपना ही नई साइकिल का मिलना होता था। थोड़ी देर बाद घर में कोई बोला धनंजय! तुम्हारे मामा तुम्हारे लिए साइकिल लेकर आये हैं। जो साइकिल देखी …. खुशी कितने दरवाजे तोड़ दे। आज लगा कि मामा से बढ़कर कोई नहीं होता है।

साइकिल मिलने के बाद ऐसा लग रहा था कि कहाँ-कहाँ इससे चले जाय। रात में साइकिल को ही लेकर ख्याल लिए देर से सोये और जल्दी उठकर साइकिल के पास पहुँच गये। थोड़ा दूर दौड़ा के ले आये।

सुबह स्कूल साइकिल लेकर गये, मन इतना हर्षित था कि शब्दों में नहीं समा रहा है। लग रहा था कि इस समय धरती पर सबसे भाग्यशाली मैं हूं।

बचपन की कुछ चीजें बहुत उत्साहित और आनंदित करती हैं उसमें एक साइकिल होती थी। अब के बच्चों के लिए कुछ और हो सकती है यथा मोबाइल, विडियो गेम, गाड़ी आदि-आदि।

न जाने कब और कैसे हम बड़े हो जाते हैं। कितने ही विकार हमारे मन में आ जाते हैं। कुछ आये न आये अहंकार पहले ही मन में स्थापित हो जाता है, घर बना लेता है। हम बचपन को नहीं, बल्कि जीवन का सबसे आंनदित समय बिता देते हैं, जब एक-एक मिनट सिर्फ मेरा अपने लिए खर्च होता है। बड़े होने पर हमें अपने लिए समय नहीं मिलता है। दूसरों के लिए जीते-जीते हम स्वयं को भूल बैठते हैं। खुशियां स्वरूप बदल देती हैं। हम देखने लगते हैं उसने मेरा सम्मान किया कि नहीं।

बीते बचपन को याद करते हैं कि जब एक टॉफी, एक पैकेट बिस्किट, थोड़ी जलेबी, थोड़ी मिठाई, चंद गुब्बारे, कंचे या गेंद में ही कितने खुश रहते थे वह खुशी आज बड़े घर, गाड़ी या किसी भू-संपत्ति में न मिली।

बचपन का खोना, हमारी वास्तविकता का खोना है। बड़े होकर हम छलछन्दी, मक्कार और अहंकारी हो जाते हैं। अपने ही प्रियजनों से मुकदमा लड़ते हैं, उन्हें नीचा दिखाना चाहते हैं। लोभ और लालच जवानी का सत्यानाश कर दे रही है। ऐसा लगता है कि क्या लोगे.. मेरा बचपन लौटने के लिये? लगता है कि काश एक बार फिर बचपन मिल जाता…. मैं बच्चा बन जाता।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
Disclaimer: The opinions expressed in this article are the author’s own and do not reflect the views of the संभाषण Team. The author also bears the responsibility for the image/images used.

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

कुछ लोकप्रिय लेख

कुछ रोचक लेख