आखिरकार मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड नहीं माना, रामन्दिर पर सुप्रिमकोर्ट के फैसले पर रिव्यू याचिका दाखिल कर ही दिया।
मुस्लिमों को विवाद पसंद है, उन्हें अब्दुल कलाम से कोई मतलब नहीं लेकिन बाबर पसंद है। वह सुन्नी है जो सुन के हुआ। इतिहास कहता है, कितने ही मंदिरों को मस्जिद बनाया गया है जबकि मुसलमान कहता है कि इसे मेरे बाबर, औरंगजेब या कुतुब ने बनाया।
तुम्हारी गंगा, तुम्हारी जमुना, तुम्हारी संस्कृति जहाँ वो कपटी भाई बनता है और चारा तुम्हें बनाता है। तुम अब भी जाति की, सत्ता की, अहंकार की लालच में हो क्योंकि तुम सेकुलर जो हो। तुम्हारे जम्बूदीप से कितने देश निकलते चले गये लेकिन तुम अभी भी उदार बनें हो।
यदि मुस्लमान भाई है या भाई होता तो सोचो ईरान, अफगानिस्तान, मालदीव, पाकिस्तान, बांग्लादेश क्यों अलग होते गये? लेकिन तुम अब भी मीम – भीम कर रहे हो, बामपंथी या सेकुलर बन मजारों पर चादर चढ़ा रहे हो, पादरी से प्रेत भगवा रहे हो। तुम्हें अपने भगवान पर विश्वास नहीं, तुम कायर बन अपनी माता की छाती में कृतध्नता की कटार घोपते हो।
प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है और वह उसी के अनुसार चलता है। जिसने तुम्हें लोकतंत्र का रास्ता दिखाया वह स्वयं राजतंत्र बनाये हुये है लेकिन तुम्हारी चाल खिचड़ी हो गयी है जिसे ‘सब धान बाइस पसेरी’ ही दिखता है।
वेद, मंदिर, कर्मकांड सब तुम्हें जाग्रत करने के लिये है और तुम हो कि कभी इस पात में और कभी उस पात में बैठते हो, भ्रमित हो कि आखिर सच क्या है? सच को जानने के लिए तुम्हे यह जानना होगा कि तुम क्या हो? सनातन मार्ग है, सनातन लोग हैं फिर भी तुम्हें सनातनी नहीं दिखता। भारत भी तभी तक ईसाईयों के लिए इंडिया और मुस्लिमों के लिए दारुल हर्ब है जब तक हिंदू बहुसंख्यक है। तुम लोकतंत्र का खेल खेलना, पहले दुश्मन बाहर से आते थे अब भारत में ही हाइब्रिड बन रहे हैं।
अब हिंदू हुआ सेकुलर “न कोई टंटा न कोई झंझट, चढ़ेगी चादर सलीब पे”। अरे, विश्व मानव की प्रैक्टिस जो कर रहा है। फिर क्या है? जय बोलो विक्टोरिया माई की, अल्लाह,की और ईसू देउता की।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
***