राजनीतिक आपाधापी के बीच आइये पांच राज्यों के चुनाव में सबसे बड़े राजनीतिक सूबे उत्तर प्रदेश की चर्चा करते हैं। कोई पूछ रहा है UP में का बा? दूसरा जबाब दे रहा है UP में सब बा।
अब देखा जाय कि राजनीतिक सरगर्मियों के बीच पार्टियों में क्या चल रहा है। विपक्षी पार्टी सपा का कहना है कि 10 मार्च को आ रहे हैं अखिलेश। किन्तु कैसे आयेंगे, यह समाजवादी पार्टी को भी नहीं पता है। सपा अपनी पुरानी सवारी यादव-मुस्लिम के सहारे नबाबों के शहर के नबाब बनने की फिराक में है।
सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा जिस पर रोजगार नहीं देने से लेकर कोविड के सही प्रबंधन न करने का दोष और पुलिस की गुंडागर्दी का दोष मढ़ा जा रहा है। उसी पार्टी के जनप्रतिनिधियों के कहना है कि पार्टी उनकी जगह ब्यूरोक्रेसी का प्रयोग कर रही है जबकि जनता जनप्रतिनिधि से अपेक्षा कर रही है। सांड से परेशान किसान, जिसे MSP पर अनाज देने के लिए क्रय केंद्र पर ₹ 200/- क्विंटल देना पड़ रहा है।
राशन वितरण में घोटाला, ग्राम्य प्रधान द्वारा कार्य योजना में झोल, आदि आदि। फिर भी BJP को विश्वास है कि सबका साथ जरुर मिलेगा।
बात BSP की, नारा है ‘क्यू पड़े हो चक्कर में कोई नहीं है टक्कर में’। BJP के हिंदुत्व की आंधी में उसका कोर वोटर जैसे पहले ही संभावना थी BJP में शिफ्ट हो गया है। माया को भी पता नहीं है कि उनकी कितनी माया बची है।
अब रह गयी पुरानी पार्टी कांग्रेस, जिसकी गत है बेगानी की शादी में अब्दुल्ला दीवाना। अब देखिए न लड़की हैं तो कैसे लड़ सकती है? कांग्रेस की भूमि UP से लगभग खत्म हो चुकी है। राहुल, प्रियंका, सोनिया की अपील जनता को रास नहीं आ रही है। ऊपर से BJP ने दुष्प्रचार कर दिया है कि यह एंटी हिन्दू है, आतंकवादियों के लिए रात में कोर्ट का दरवाजा खुलवा सकती है।
कुल मिला कर अब बचे क्षेत्रीय दल, जिनकी एक ही हसरत है कि किसी बड़ी नाव में बैठ कर विधानसभा की सीढ़ी चढ़ जाएँ। इनके बल का कारण है इनके सजातीय वोट बैंक।
UP के चुनाव में एक मुद्दा कभी भी चल जाता है दलित, पिछड़ा अल्पसंख्यक, सवर्ण, अवर्ण।
कुल मिलाकर चुनाव मजेदार है, सब की आशा 10 मार्च तक जीवित है फिर भी EVM का पुनः बलात्कार होना ही है। कुछ साल पहले दिल्ली के एक कैंटीन चलाने वाले के पास 555 प्लाट निकले थे, अब लखनऊ के एक अदने से क्लर्क की जोरू के नाम 20 प्लाट मिले हैं। भाऊ ये लोकतंत्र है, ईमानदारी की दुहाई है, बेईमानी का जमाना है। घूस ले कर फंसा है, चुनावी चंदा देकर बच जा।
भ्रष्टाचारी चंद सिक्के फेंक कर लोकतंत्र का दामाद बन जायेगा और आप वोटर, मोदी का फोटो लगे झोले में राशन की लाइन में अंगूठा लगा कर अपनी बारी का इंतजार करेंगे। हे वोटर! वोट जरूर देना। एक वोट ही ये वाला लोकतंत्र है।
सबसे बढ़कर अभी जो चल रहा है वह दलबदलुओं का टिकट जैसे लपालप कटा वैसे ही पिछड़ों, दलितों और आरक्षण का रोना प्रारंभ। यह डेमोक्रेसी है, जहाँ सब जायज है।