मूर्ति पूजा को लेकर बड़ी चर्चा और वाद – विवाद होता है और होता रहा है, उसका एक प्रमुख कारण है, मुसलमानों द्वारा बुतसिनक अर्थात मूर्ति तोड़ने वाला की उपाधि, जिसमें गजनवी, बख्तियार, खिलजी, बाबर प्रसिद्ध हैं।
अब प्रश्न वही है जब मूर्तिपूजा नहीं मानते तो मजार किसके लिए है? क्यों लोग अजमेर शरीफ, देवा शरीफ, औलिया की दरगाह, शेख सलीम चिश्ती की और अन्य पीरों की दरगाह पर चादर चढ़ाने जाते हैं?
सुन्नी कहते हैं यह कुफ्र है इसे वह नहीं करते हैं इसको शिया, अहमदिया और कुर्द करते हैं। इन लोगों का भी आरोप है कि इन्होंने बढ़ाया है।
لَا إِلٰهَ إِلَّا الله مُحَمَّدٌ رَسُولُ الله
ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुन रसूलुल्लाह
अर्थात, अल्लाह एक है मुहम्मद उसके रसूल है। फिर भी मूर्ति पूजा, काबे में चादर चढ़ाना मजार और दरगाहों पर।
ईसाई तो बाकायदा चर्च में कैंडल जला का ईसा की और मरियम की पूजा करते हैं। होली वाटर के नाम पर एक दूसरे को जूठन पिलाते हैं। दूसरे ये भूत प्रेत झाड़ने के केंद्र भी हैं। यहाँ ताबीज़, यंत्र धड़ल्ले से बिकते हैं। समान्य लोग चमत्कार और लाभ की आशा से कही भी पहुँच जाते हैं। रही मूर्ति पूजा की बात तो जो चर्च में फोटो लगे हैं या घर में काबे की फोटो टँगी है उस पर मल उत्सर्जन क्या कोई कर पायेगा?
इसे एक कहानी से समझते हैं।
एक बार एक दरगाह पर एक मुस्लिम व्यापारी अपने पीर यानी खादिम से मिलने गया और अपने व्यापार की दुर्दशा को बताया। पीर ने उसे एक गधा दिया कहा ले जाओ इसकी सेवा करो।
व्यक्ति गधे को लेकर रास्ते मे कुछ दूर गया था कि गधा मर गया। फिर वह अकेले ही गड्ढा खोद कर उसे दफना दिया। बहुत थक जाने की वजह से कुछ देर वही बैठा रहा है।
तभी उधर से एक आदमी निकला उस व्यक्ति को कब्र के पास बैठे देखा तो मन में कोई मन्नत मांग ली संयोग से मुराद तुरंत पूरी हो गई। वह भी जल्दी से चढ़ावा और गाजे बाजे के साथ गधे की कब्र पर पहुँच गया।
वह व्यक्ति जिसका गधा था वह जाने वाला ही था तभी उस आदमी ने कहा ‘भाई साहब ये किन सिद्ध की कब्र है? मैंने जैसे ही मन्नत मांगी पूरी हो गई, ये लीजिये चढ़ावा और मिस्री भी आ रहे हैं ये कब्र आज ही पक्की होगी और पीर साहब आपको यहाँ रहने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
गधे के मालिक का व्यवसाय में पहले ही नुकसान हो चुका था यहाँ तो जबरदस्ती का खादिम बनाया जा रहा है तो वह बन गया। फिर क्या धीरे वह दरगाह चल निकली देखते देखते मेला भी लगने लगा।
यह बात उस गधे देने वाले खादिम तक पहुँची। एक दिन वह भी उधर से निकला तो सोचा इस नई मजार के खादिम से मिलते चले। जब उन्होंने देखा तो पूछा ये क्या है? तो उसने कहा अरे पीर साहब ये उसी गधे की कब्र है, फिर पूरी बात बताई।
बड़े खादिम ने कहा चिंता बिल्कुल न करो और लगे रहो मेरी वाली जो कब्र है वह भी एक गधे की है लेकिन लोंगो की मन्नते पूरी हो रही है तो चुप रहना ही ठीक है। दमड़ी तो मिल ही रही है।
तो हुजुर एक बार तशरीफ़ लाइये न मजार पे।
मूर्तिपूजा पूजा और अंधविश्वास को कोई नकारे फिर भी बच नहीं सकता है। ईश्वर सभी धर्मों का सगुण है कि साकार और निराकार का मामला फंस जाता है।
व्यक्ति अपनी मान्यताओं के साथ जी सकता है। धर्म विवाद का विषय नहीं है बल्कि स्वयं को जानने का है। अब समस्या आ रही है मैं बड़ा कि तू बड़ा? इसे कुछ देर के लिए शांत कराया जा सकता है विज्ञान की एक बड़ी खोज से लेकिन उसमें भी शिथिलता सी आ गई।
सभी अपनी कमियों पर पर्दा डाल दूसरे पर चिल्लाते हैं। कुछ तो समस्या है जो समय रहते दूर न किया गया तो धर्म को क्या कहा जाय विश्व का जो परिदृश्य बन रहा है उसमें मानवता जरूर हारेगी।
wah wah
Atisunder
Bada hi hasyapurn title rkha h apne manme utskta jagata h kichalo pado esme kya ho skta h vaise bahut hi nice post
शुभाशया:❗हार्दिक अभिनंदन अच्छे शब्दो के लिए🙏
Yah andhvishvas nhi to kya h aj bhi bahut sare log esi hi jaise gadhe ki kabr ko lekr mannte chdava aadi nirathak bato me ulajhkr svyam ko to dhokh dete hi h ye log n apn n to desh ka bhla kr sakte h.
लोग बुद्धि का कम प्रयोग कर लाभ की नदी में गोता लगाने के लिए सब ताक पर रख देते है
Chha gaye guruvar…….bahut achchha batalaya yahi satya hi ajkal
अहो❗मस्त आहे😜