दहेज

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Dhananjay Gangey
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सनातन परंपरा में दायभाग, स्त्रीधन का विधान था किंतु आधुनिक व्यवस्था ने उसे डावरी या दहेज का पर्याय बना दिया है। दहेज समाज का एक ज्वलंत विषय है; फिर भी दहेज का शास्त्रीय पक्ष न लेकर केवल व्यवहारिक पक्ष लिया जाता है।

हमें देखने को मिलेगा कि दहेज में जो धन दिया गया है, वह पिता की सम्पत्ति में कन्या की हिस्सेदारी का बहुत कम भाग है। जीमूतवाहन कृत ‘दायभाग’ और विज्ञानेश्वर की ‘मिताक्षरा’, दोनों में स्त्री धन की चर्चा की गई है।

दहेज स्त्री-धन अर्थात उसका हिस्सा है। यदि दहेज के विभिन्न पहलुओं पर गौर करें तो एक बात स्पष्ट होती है कि जिसे हम दहेज लोभी घोषित किये हुए हैं, वास्तव में किसी अन्य ने कन्या का हिस्सा हड़प लिया है, वह हड़पने वाला है पिता की सम्पत्ति का हिस्सेदार भाई।

दहेज ने कुछ चीजें बहुत सहज कर दी हैं, जैसे पिता की सम्पत्ति में स्त्री को हिस्सा न भी मिले, उसे पत्नी बनने पर पति की सम्पत्ति पर सम्पूर्ण अधिकार मिल जाता है। इससे भाई-बहन का रिश्ता बच जाता है और भाई जीवन भर बहन और बहनोई को सम्मान, दक्षिणा या कपड़े बीच-बीच में देता रहता है।

दहेज के साथ सामाजिक व्यवस्था में कोई परेशानी नहीं है। स्त्री को हिस्सेदारी के लिए अपने पिता और पति के घर मुकदमा भी नहीं लड़ना पड़ता। दहेज के अपने लाभ भी हैं, यदि आप के पास बहुत धन है और आपकी कन्या कैसी भी हो तो उसके लिए सर्वश्रेष्ठ चाकर IAS चुन सकते हैं।

एक बात और कि जिस स्तर का कन्या का पिता है उसी स्तर में लड़की का विवाह करे तब उसे दहेज भी नहीं देना पड़ता है। दहेज की खुलकर मांग सरकारी चाकर वाला वर पक्ष करता है। कन्या का पिता कितना ही गरीब क्यों न हो, उसके लिए सरकारी नौकरी वाला वर प्रथम वरीयता में है।

आज दहेज की बढ़ी-चढ़ी मांग सिर्फ सरकारी नौकरी वालों में है। समाज में इन्हें ही भौतिक युग को देखते हुए सर्वश्रेष्ठ वर की श्रेणी प्राप्त है। अब देखा जाय तो इसके लिए दहेज व्यवस्था कैसे दोषी हो गयी? स्त्री धन परिवारिक प्रतिष्ठा बन गया। सभी को बड़े व्यापारी, अभिनेता, क्रिकेटर, राजनेता, अधिकारी आदि के परिवार जैसी व्यवस्था करनी है। दिखावा आपका तो दोष, दहेज का कैसे हो गया?

जिस घर से कन्या जानी है, उस घर भी तो कन्या आनी है। किसी व्यवस्था की सफलता उसके संचालन कर्ता के हाथों में निर्भर करती है। आप पुरुष हैं तो आपकी माता, अनुजा, तनुजा भी होंगी। यदि स्त्री हैं तो पुत्र, भ्राता आदि होंगे। अब इसके साथ ही निश्चित करें, विचार करें कि दहेज की चाहत किसे ज्यादा है?

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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