भारत ने विश्व के तमाम देशों के धर्मों को शरण और संरक्षण दिया है। इतिहास कहता है जिन अतिथियों को हमने शरण दी, वही जनसंख्या बढ़ा कर अपने को मालिक मानने की भूल कर बैठा है।
इस्लामिक इतिहास कहता है कि मुस्लिम जिस भी देश मे गये वहाँ की संस्कृति, धर्म और धर्मालयों को नष्ट करने की पुरजोर कोशिश की।
भारत में मुल्तान के सूर्य मंदिर से ध्वंस करने का सिलसिला शुरू हुआ वह ढाका, कश्मीर, केरल और गुजरात तक चलता रहा।
1947 में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात अंग्रेज जाते – जाते कांग्रेस को गुरुमंत्र दे गये कि हिंदुओं को बाँटो, इनके बटने में सत्ता का स्थायित्व छुपा हुआ है। क्योंकि जिस दिन हिंदुत्व जाग गया कांग्रेस रद्दी हो जायेगी।
कांग्रेस को सबसे बड़ा खतरा हिंदुत्व में दिखाई दिया। हिंदुत्व को रोकने के लिए पूरे इतिहास को इस तरह से प्रस्तुत किया कि गजनवी, गोरी, अफगानी, तुर्क, मुगल आदि बर्बर लुटेरे न होकर उद्धारक थे, कुछ इसी तरह अंग्रेजों के लिए उनकी श्रद्धा थी। भारत के पतन के लिए हिंदुओं को जिम्मेदार ठहराया। हिंदुओं की सभी चीजों को साम्प्रदायिक कहा गया, यहाँ तक कि सनातन धर्म के जनक वेद को भी।
कोई भी देश जिसे स्वतंत्रता मिलती है वह अपनी जड़ों की तलाश करता है। लेकिन कांग्रेस की मंशा अलग थी क्योंकि यदि वह जड़ों को ओर जाती तो उसे हिंदुत्व की संस्कृति मिलती। ऐसे में लुटेरे, क्रूर आक्रांताओं को कैसे छुपाता क्योंकि उनके तथाकथित वंशजों की तादाद भी तो 20% फीसदी थी जिनसे सत्ता का गणित सुलझता है।
मुस्लिम समुदाय औरत, सत्ता और धन के लिए इकट्ठा हुए लोगों का समूह है, इसका मजहब और अल्लाह से कोई वास्ता नहीं।
भारत में 1800 मन्दिर टूटने के साक्ष्य अरुण शौरी ने अपनी किताब में 1989 में दिया है। औरंगजेब ने अकेले 1000 मन्दिर का विध्वंश कर, मन्दिर की सामग्री से मस्जिद बनवायी। टीपू सुल्तान जिसे एक हीरो के रूप कांग्रेसी इतिहासकार प्रस्तुत करते हैं, उसने अकेले ही दक्षिण भारत में 3000 मन्दिरों को मस्जिद में बदल दिया।
पुस्तक कहती है कैसे महाराष्ट्र के 143, राजस्थान के 170, बंगाल के 102, बिहार के 72 और उत्तरप्रदेश के 299 मंदिरों को मस्जिद, किले और बागों में परिवर्तित कर दिया। भारत के लगभग 60000 मंदिरों को मस्जिद में बदला गया है।
मुस्लिम के मन्दिर पर आक्रमण करने, गैर मुस्लिमों को धर्म परिवर्तन कराने के पीछे का कारण नमाज है जिसे आप रोज सुनते हैं जिसका अर्थ है सिर्फ एक अल्लाह महान है काफिरों को जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। रेगिस्तान के कबीले से चला मजहब कभी रेगिस्तान और कबीले से नहीं निकल पाया। पत्थरबाजी, गले काटना बदस्तूर जारी है।
आप को मुस्लिम कहता हुआ मिलेगा कि विवादित जगह इबादत नहीं की जा सकती है, वह सरासर झूठ बोलता है। पूरे विश्व में काबा से लेकर काशी तक सिर्फ विवादित स्थल पर ही इबादत करता है। अभी हाल ही में तुर्की में हागिया सोफिया चर्च को मस्जिद में बदला गया है।
मन्दिर, गिरजाघर पर बनाई गई मस्जिद पर वह नमाज अता करता है, उसे सत्य नहीं पता? यह संभव नहीं है फिर भी वह दूसरे के धर्म स्थल को अपना बताता है जबकि इस्लाम की पैदाइश के पूर्व ही काशी के साक्ष्य धर्मग्रंथों में मौजूद है। पद्मपुराण, स्कंदपुराण (काशीखंड) आदि विश्वेश्वर महादेव की महिमा का वर्णन करते हैं।
भारत के महत्वपूर्ण मंदिरों पर हमले करने का एक कारण यह भी था कि मुसलमानों को यह बताना था कि सिर्फ अल्लाह ताकतवर है। यह देखो हमने मन्दिर तोड़ कर मस्जिद बना ली, कोई कुछ नहीं कर पाया। एक अल्लाह ही महान है।
मलेशिया के मंत्री ने अभी हाल ही में एक सेमिनार में मुसलानों से अपील की कि वह जिस देश में रहते हैं, उसका सम्मान करें।
झूठ पर आधारित मजहब और उसके लोगों का ध्यान देश पर कब्जा कर शरिया लागू करना है। जिससे कट्टरपंथी मौज कर सके।
हजारों मन्दिर पाकिस्तान, बंग्लादेश और अफगानिस्तान में तोड़े गये, बामियान में बुद्ध की मूर्तियां तोप से उड़ा दी गईं जिसका शोर विश्व भर में मचा था। कम से कम अब कोई यह न कहे मुस्लिम विवादित स्थल पर इबादतगाह नहीं बनाता।
जिस गजनी के लिए उसका दरबारी और प्रसिद्ध किताब ‘किताबुल हिन्द’ का रचयिता “अलबरूनी” लिखता है कि ‘अल्लाह गजनवी को रहमत बख्से जिसने भारत की हँसती खेलती संस्कृति को तबाह कर डाला।’ उसे भी भारत का कन्वर्टेड मुसलमान नायक मानता है। औरंगजेब की मजार पर जाता है और भाई चारे, सहिष्णुता, उदारता की चादर चढ़ाता है।
गोरी, ऐबक, इल्तुतमिश, अलाउद्दीन के समय के इतिहासकार बरनी, इसमी, इब्न-बतूता आदि ने कितनी ही मंदिरों को तोड़े जाने का जिक्र अपनी पुस्तकों में किया है। सिकन्दर लोदी, इब्राहिम लोदी, शर्की, महमूद बेगड़ा आदि के द्वारा तोड़े गए मंदिरों का जिक्र उनके समय के इतिहासकारों ने किया है। लेकिन आधुनिक भारतीय इतिहासकारों ने जातिप्रथा और सतीप्रथा में भारत के पतन का कारण खोज निकाला।
एक तरफ पाकिस्तान में लोग अपने पूर्वज मानने की शुरुआत दाहिर, आदि से कर रहे हैं। यदि भारत के मुसलमानों की बात की जाय, जिनके पूर्वज हिन्दू रहे हैं, वह अपना बाप गजनवी, बाबर और औरंगजेब को मान रहा है।
मुस्लिम जानबूझकर भारत में फसाद क्यों करना चाहता है? हिंदुओं के मन्दिर उन्हें वापस करके गलती स्वीकार कर ले, जिससे हिंदुओं को उनपर दया आ सके। मौलवी मौलाना या विपक्ष की मुस्लिम परस्त पार्टियां इनका हाल म्यामांर वाला कराने वाली हैं।
मेरी बात कोई चेतावनी नहीं है बल्कि हिन्दू का 712 इस्वी में आये बिन कासिम के समय से शुरू हुआ संघर्ष खत्म हो सके। इंसानियत और संविधान की बात स्वयं के हक में करना और जब वह विरोध में दिखे तो झट से सरकार को आरोपित करना।
मुस्लिम सिर्फ हिन्दुओं से संघर्ष नहीं कर रहा है चीन, म्यामार, लंका, नेपाल, अमेरिका, ब्रिटेन, इजरायल आदि में भी यही कर रहा है। यहाँ तक सही है किंतु पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, यमन, नाइजीरिया आदि में अपने ही फिरकों से लड़ रहा है।
आपने क्या समझा यह लड़ने, झगड़ने वाली कौम है? बाबर, हुमायूं, अकबर, जहाँगीर, शाहजहां, औरंगजेब आदि के बाद पूजास्थल अधिनियम 1991 को कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार ने लाकर एक बात एकदम स्पष्ट कर दी कि उसने जिस प्रकार से इतिहास से हिंदुओं की संस्कृति और उसके महानायकों की जगह मुस्लिम आक्रांताओं का महिमामंडन किया है उसी तरह से आक्रांताओं द्वारा मन्दिर को तोड़कर बनाएं गये मस्जिद को संरक्षण देगी।
इसी संसदीय अधिनियम का सहारा मुस्लिम समुदाय ले रहा है जबकि यह संसदीय अधिनियम कहता है कि उसके मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं होना चाहिये। मूल में वह मन्दिर है जिसके प्रमाण उसी में हैं। औरंगजेब के मन्दिर ध्वंस करने का आदेश भी नहीं दिख रहा है भले ही औरंगजेब के समकालीन इतिहासकारों द्वारा इसका वर्णन हो। मुस्लिमों द्वारा केवल मन्दिर पर आघात नहीं हुआ बल्कि प्रयाग, काशी, मथुरा के नाम भी मुस्लिमों के कर दिये गये। इस्लामाबाद,अल्लाहाबाद आदि।
औरंगजेब कट्टर मजहबी था, यह मुस्लिम मानता है लेकिन भारत की सेकुलर कौम हो या कांग्रेसी जमात उसे सेकुलर दरवेश मान कर उसके नाम पर सड़को के नाम रखे हैं। मुस्लिमों ने तलवार के दम पर भारतीय संस्कृति को नष्ट करना चाहा। 1669 ई. में औरंगजेब ने फरमान जारी किया जिसे साकी मुस्तैद खान ने औरंगजेब की जीवनी “मशरफे आलमगीरी” में लिखा है।
यहाँ दो तीन चीजें समझने योग्य हैं, 57 मुस्लिम देशों में आखिर कौन से मुल्क में शांति है? वहाँ कौन से दूसरे धर्म के लोग हैं। पाकिस्तान हो या अफगानिस्तान, मुस्लिम किसे मार रहा है और क्यों?
मुसलमान इसी तरह हिन्दू भावनाओं और आस्था पर चोट कर रहे हैं, गजनी, गोरी, इल्तुतमिश, लोदी, शर्की, बाबर, औरंगजेब के कुकर्मों पर खेद प्रकट करने के कौन कहे, मुस्लिम इन्हें ही अपना ऑइकन मानते हैं।
ऐसे ही चलता रहा तो मुस्लिमों के लिए भारत बहुत कम समय में ही रहने योग्य नहीं रह जायेगा। मुस्लिम अपनी धार्मिक पहचान के लिए भारत की धार्मिकता का अतिक्रमण, समाज का अतिक्रमण, जनसंख्या का अतिक्रमण कर रहा है।
आक्रांता मुसलमानों ने भारत के नगरों का ही अतिक्रमण नहीं किया बल्कि गांवों तक पहुँच गये। भारत के गांवों में भी बहुत से प्रसिद्ध मन्दिर थे जहाँ हिन्दू धार्मिक कृत्य के साथ परिवारिक उत्सव मनाते थे जिसमें विवाह संस्कार मन्दिर प्रांगण में ही सम्पन्न होते थे, वह भी दिन में। मुस्लिमों द्वारा मन्दिर को लक्षित करके होने वाले हमले से बचने के लिए घर – घर में भगवान की स्थापना हुई और विवाह संस्कार रात्रि में होने लगा।
यह कौन से लोग हैं जो गंगा – जमुनी तहजीब और भाई चारे की बात कर रहे हैं? जिसने हिन्दू मन और आत्मा को आहत कर दिया? यह अयोध्या, काशी, मथुरा भारत के धार्मिक स्थल मात्र नहीं हैं बल्कि यह शक्ति पुंज और प्राण हैं। कोई आक्रांता कौम भारत में हक़ इसलिए नहीं जता सकती क्योंकि हिन्दू उसे भी जीव मानता है, उसके उद्घोष ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की विशाल धाती में सबके लिए जगह है।
हिंदुओं की समस्या ‘उनका सुरक्षात्मक रवैया’ जिसने उसे घायल किया, अब हिन्दू पिछले 800 सालों की मानसिक गुलामी से मुक्त होना चाहता है, अपने सत्य की पहचान कर उस पर जोर देना प्रारम्भ किया है। भारत का घायल मन अभी भी म्लेच्छों को क्षमा कर सकता है यदि वह अपने कुकर्मों की क्षमा मांग लें। किन्तु मजहबी हैं, यह कुरान में नहीं कहा गया है वह रक्त देख कर शांत होता है।
काशी, मथुरा, अयोध्या एक धर्म स्थल ही नहीं है बल्कि यह भारत की आत्मा है। बर्बर गजनवी, तैमूर और बाबर आदि के आक्रमण को झेल कर अंग्रेजों के दौर को झेला फिर भी अपना मूलस्वरूप बनाये रखा। जो लोग अयोध्या, काशी और मथुरा को मजाक बना रहे हैं उन आक्रांताओं के वंशजों को भारत में कोई जगह नहीं होनी चाहिए।