नेहरू इंदिरा राजीव

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Dhananjay Gangey
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1947 में भारत स्वतंत्र हुआ, जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधनमंत्री बने और उन्ही पर पूरा दामोदार था कि देश को किस रास्ते पर ले जाया जाय।

एक चीज जिसका सबसे अधिक व्यक्ति के जीवन में प्रभाव पड़ता है वह है कि उसका पालन पोषण, शिक्षा, दीक्षा किस प्रकार हुई है। नेहरू जी का शुरुआती जीवन देखें तो उनके पिता का नाम उस समय भारत के सबसे बड़े वकीलों में शुमार था, जो राजाओं – महाराजाओं की वकालत किया करते थे।

शुरुआत से नेहरू की शिक्षा अंग्रेजों द्वारा कराई गई। मोतीलाल नेहरू को भारतीय होने में शर्म आती थी। कहने को वह वह ब्राह्मण थे किंतु बगैर शराब रात में सोते नहीं थे। इसके लिए उन्हें गांधी जी ने भी कई बार मना किया था लेकिन उनका हर बार एक ही जबाब होता कि बिना शराब के उन्हें नीद नहीं आती है।

नेहरू की शुरुआती शिक्षा भारत में होने के बाद आगे की पढ़ाई इंग्लैंड में हुई। हिन्दु धर्म में जहाँ पिता को हीन भावना होती थी तो पुत्र को जेंटलमैन बनने का शौक था इस कारण वह मानवतावादी बन गये, उनका कहना था कि मैं धर्म नहीं मानता मैं मनुष्य को केंद्र में रखता हूं। वो राजनीति की मजबूरी थी जो न चाहते हुये भी हिंदु बना रहना पड़ा।

हिन्दू कोड बिल के विरोध के बीच 1951-52 में पहला आम चुनाव हुआ। नेहरू जी प्रयागराज के फूलपुर से चुनाव लड़ रहे थे जो उनके गृहनगर क्षेत्र में आता था इनके विपक्ष में हिन्दु महासभा ने संत प्रभुदत्त ब्रम्हचारी को मैदान में उतारा था जो वोट नहीं मांगते थे मंच से राम कीर्तन करते थे।

नेहरू जब प्रचार में उतरे तो लोगों ने कहा कि आप किरीस्तान (क्रिश्चियन) हो गये हैं इस पर नेहरू ने आज राहुल गांधी जैसे ही जनेऊ दिखाया और कहा ‘नहीं, मैं अभी भी ब्राह्मण हूँ।’ जिसपर प्रश्न उठता है कि कहाँ चला गया मनुष्य केंद्रित मानवतावाद? चुनाव जीतने के लिये विचारधारा तक को ताक पर रखा गया, या धर्म को ठेंगा दिखाया? इंदिरा ने जब फिरोज से विवाह करने का निर्णय किया और गांघी जी से सहमति लेने सेवाग्राम आश्रम महाराष्ट्र गईं तो नेहरू भी पीछे से पहुँचे उन्होंने गांधी जी से कहा इंदिरा मेरी राजनीति ही खत्म कर देगी। जबकि नेहरू ने इंदिरा का विवाह मित्र गोविंद वल्लभ पंत के पुत्र से तय किया था।

नेहरू ने गांधी जी से कहा ब्राह्मण की पुत्री हो कर विधर्मी से विवाह जिसे भारत का समाज स्वीकार नहीं करेगा। फिर गांधी जी ने दत्तक पुत्र का ट्रम्प चला यहीं से नेहरू वंश गांधी हो गया। भारतीय राजनीति में स्वतंत्रता से पूर्व ही वर्ण संकरता स्थापित कर दी गई। फिरोज जिनका चरित्र संदिग्ध था, जिसके लिए नेहरू ने इंदिरा से गहरा रोष जताया, इंदिरा को भी गलती का एहसास बाद में हुआ। 1957 में भारत का पहला घोटाला फ़िरोज गांधी ने “जीप घोटाला” किया।

इंदिरा ने 1976 में 42वां संविधान संशोधन के माध्यम से पंथनिरपेक्षता को धर्मनिरपेक्षता कर दिया समाजवाद को प्रस्तावना में शामिल किया गया।

अब समझते हैं हिन्दू धर्म को कमजोर कैसे और कब-कब किया गया।

जब भारत आजाद हुआ तब भारत की अर्थव्यवस्था और समाज को चलाने के लिये एक नीति की जरूरत थी। नेहरू ठहरे मानवतावादी, वह भारत की किसी व्यवस्था को कैसे प्रोत्साहन देते? वह कैसे अयोध्या, मथुरा, काशी में मंदिर को बनाने का प्रस्ताव लाते? नेहरू स्वयं प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से सोमनाथ के मंदिर के लिये विरोध दर्ज करा चुके थे उन्हें वल्लभभाई पटेल द्वारा मंदिर निर्माण की प्रकिया सही नहीं लगी। यद्यपि उन्होंने पंथनिरपेक्षता की बात की।

एक बात तो समझने वाली है गांधी नेहरू की विचारधारा (जिसमें हिंदू मुस्लिम समान हैं) उसी समय असफल हो गई जब देश धर्म के नाम पर बट गया, लाखों बेघर हुये हजारों मारे गये और बलात्कार का शिकार हुये। फिर भी देश को अंग्रेजों के चाबुक से चलाने का कुचक्र क्यों चला गया? उसी पंचशील की तरह जिसके बनते ही चीन ने बलात्कार कर दिया और भारत 1999 तक गुणगान करता रहा। नेहरू ने समाजवादी विचारधारा को प्रश्रय दिया, पहला प्रहार भारत के वणिक (बनिया) समुदाय पर किया गया। यह शुरुआत थी चरणबद्ध तरीके से हिन्दू धर्म को कमजोर करने की। इसी के आगोश में दिल्ली में जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। यह विश्वविद्यालय अर्थशास्त्री, वैज्ञानिक तो नहीं दे पाया समाजशास्त्री जरूर दिया कारण नेहरू का मानवतावाद। इंदिरागांधी की सरकार प्रिवीपर्स (राजाओं की पेंशन) बैकों का राष्ट्रीयकरण, गरीबी हटाओ में लोकतंत्र को हटाकर फासीवादी शासन लागू कर दी।

शैक्षिक स्तर पर महत्वपूर्ण बदलाव आया, कॉम्युनिस्ट की शिक्षा व्यवस्था को केंद्रीय स्तर पर लागू किया है। शब्द दिया गया “सामंतवाद” (क्षत्रिय के लिए) जिसे फ़िल्म, मीडिया, पुस्तकों और इतिहास लेखन में जोर शोर से चलाया गया। राजीव गांधी के समय में सिखों का दिल्ली में नरसंघार, शाहबानों प्रकरण, भोपाल गैस त्रासदी, बोफोर्स दलाली, राम मंदिर का ताला खुलवाना और टेरेसा को भारत रत्न देकर धर्म के तुष्टिकरण का जबरदस्त प्रयास किया गया।

1992 में मनमोहन सिंह उदारवाद लेकर आये अर्थव्यवस्था के स्तर पर चमक दमन दिखी किन्तु असमानता की खाई भी गहरी होती गई।

अब एक शब्द निर्मित किया गया “ब्राह्मणवाद” और हमला किया गया भारतीय संस्कृति पर, खूब माखौल उड़ाया गया। फ़िल्म, मीडिया में आधुनिकता के नाम शराब का प्रचलन बढ़ा, नारी तेजी से वस्तु और नुमाइश की चीज बनी।

यही वह समय था जब नाबालिगों के रेप की घटनाएं गाहे बघाये सुनाई पड़ने लगी। आधुनिकता और उदारवाद की बात हुई दूसरी तरफ जातिवाद और भ्रष्टाचार को पोषित किया गया।

कांग्रेस की पकड़ राम मंदिर का ताला और आडवाणी की रथ यात्रा के पूर्व ब्राह्मण, दलित और मुसलमानों पर जो बनी थी वह नई पार्टियों के उभार और जातीय अस्मिता के बीच खोती चली गई।

राजनीति में चाल, चरित्र, चेहरा, नैतिकता और सुचिता की सदा आवश्कता पड़ती है। इतिहास को छिपाया जा सकता है नष्ट नहीं किया जा सकता।

अभी तो भारत के कई ऐतिहासिक दस्तावेज अंग्रेजों ने दबा लिए हैं जो समय के साथ जल्द प्रकट होंगे। तब सारे कृत्य भी उजागर होंगे आखिर भारत में किसकी भूमिका क्या थी।

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C M Pandey
C M Pandey
4 years ago

जनाब – वी.के कृष्ण मेनन पर सन् 1949 में जीप घोटाले का गंभीर आरोप लगा था. आप ने यहाँ ये आरोप फिरोज गांधी पर दिखाया है, और इस लेख मे कई तथ्यात्म त्रुटिया नजर आती है,,जिसमे नेहरू के बचाव की बू आती है,,
मेरी आप से कोई ईर्ष्या नही है,–बस मात्र इतना कहना है कि लेखन स्त्य आधारित होना चाहिये धन्यवाद,

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