कहते हैं जब दुनिया बनी तो पुरूष अकेले आया। परिवार नहीं था तो थोड़े काम और भोजन करके ईश्वर को परेशान करना अपना उद्देश्य बना लिया। इंद्र ने नारद जी से इस पर चर्चा की फिर तय हुआ कि नारद जी पृथ्वी लोक जाएं और मानव से बात करें उसकी क्या समस्या है। हम देवों को क्यों परेशान करता है। उसे कुछ कम लग रहा हो बताये, उसकी व्यवस्था की जाय।
नारद जी ने पृथ्वी लोक पर पहुँच कर मानव से बात करके समस्या का कारण जानना चाहा। पुरुष ने कहा हम लोगों के पास ज्यादा काम नहीं है इसलिए समय नहीं बीतता, मनोरंजन के साधन नहीं है। खाली रहते हैं तो देवों से पेरोडी कर लेते हैं। नारद जी ने कहा चलो देव लोक तुम्हारी मीटिंग देवराज से कराते हैं।
नारद जी मानव को लेकर देव लोक के लिए चल दिये और कहा कि तुम उनसे अपनी समस्या कहना वो कोई न कोई हल अवश्य निकालेंगे। देवराज के यहाँ मीटिंग हुई, पुरुष ने अपनी समस्या बताई सब देव वरुण, सूर्य, अग्नि, वायु, चंद्र और देवगुरु वृहस्पति ने निर्णय लिया कि धरती का पुरुष खाली बैठा है इस लिए वह देवों को परेशान करता है। इसको नारी दे दी जाय जिससें इसको फुर्सत न मिले, न यह परेशान करेगा। वायु देव ने कहा कि हे पुरुष! तुम्हारी समस्या का समाधान यह “नारी” है, इसे ले जाओ। पुरुष नारी को लेकर धरती लोक वापस आ गया। यहाँ पुरुष को नारी का सानिध्य तो बहुत अच्छा लगा किन्तु परिवार में और आपस के सामंजस्य में समस्या उत्पन्न होने लगी।
मनुष्य ने देवों को फिर परेशान करते हुये संदेशा भेजा कि मीटिंग करनी है। पुरुष नारी को लेकर पहुँच गया देव लोक, कहा प्रभु ये नारी आप ही रख लीजिये बहुत झंझट करती है। जीवन से शांति भंग हो गई जब से यह मिली है। देवराज ने कहा कि फिर से सोच लो, पुरुष ने कहा कि सोच कर ही आये हैं। बोले ठीक है छोड़ जाओ।
पुरुष हँसी खुशी लौट आया, आते ही सुना घर उससे बर्दास्त नहीं हो पाया। रात में जैसे ही खटिया पर लेटा उसे बरबस नारी का ही ख्याल आये। सोचा यह क्या कर आये? क्यों छोड़ आये? कितना तो ख्याल रखती थी, कैसे घर को व्यवस्थित कर रौनक ला दी थी। भोजन के तो क्या कहने। अरे थोड़ा किचकिच करती थी लेकिन मजे ज्यादा थे, कल ही देव से मांग लाते हैं। उसके बिना अब न रह पाएंगे। इसी उधेड़बुन में जैसे तैसे नींद लगी और सुबह हो गई।
सुबह ही देव को संदेशा भेजा कि फिर मीटिंग करनी है। देवराज ने कहा कि यह क्या नाटक लगाया है। बुलाओ उसको। पुरुष गया और रोने लगा कहा देवराज बिना नारी के मन नहीं लगता उसे दे दीजिए। देवराज ने कहा नहीं, ऐसे तुम रोज लड़ाई करोगे रोज पहुचाना और ले जाना ठीक नहीं है, तुम जाओ। पुरुष ने कहा एक बार और दे दीजिए, अब गलती नही होगी अंत में देवराज मान गये। बोले. सोच लो ठंडे दिमाग से नहीं तो अब वापसी नहीं होगी। पुरुष कहा ठीक है। और एक बार पुनः नारी को लेकर खुशी – खुशी वापस आ गया।
कुछ दिन आनंद से बीत गये। एक दिन भाई – भाई में लाठी चल गई। कई के सिर फुट गये। पट्टी वट्टी बंध गई। भाई थे इसलिए शाम को मिल बैठ लड़ाई का कारण खोजा गया, क्योकि आज तक जिन भाइयों में बहस भी नहीं हुई थी वहां नारी की बात को लेकर जान पर बन गई। निर्णय हुआ कि नारी को फाइनली देवराज को दे कर मुक्त होते हैं। हम पुरुष ही आपस सही हैं। झगड़े झंझट से दूर रहेंगे।
एक बार पुनः पुरुष ने फाइनल मीटिंग का प्रस्ताव भेजा और कहा अबकी बार निर्णय हो जाये। फिर हम मनुष्य मीटिंग नहीं करेंगे। नारी लेकर पट्टी बांधे देवलोक फिर पहुँचे। सारा वृतांत बताया और कहा तौबा करते हैं, हमारी जान बक्शिये। ये अपनी स्त्री रख लीजिए। देवराज ने कहा ये अब रोज की कहानी है, कभी मन नहीं लगेगा कभी लड़ाई कर आओगे। मैंने पहले ही कहा था कि अब वापसी नहीं होगी नारी को ले जाओ और सामजस्य बिठाओ। समझाया कि वह जीवन रूपी रथ की एक धुरी है, सृष्टि की गति का कारण है।
तब से भैया ! हज़ारों साल बीते लेकिन यह सामजस्य नहीं बैठ पाया। फिर भी साथ चल रहा है। एक बार सब मिलके बोलो- स्त्री देवी की जय।
Bahut achha vrattant ye to manushya ki soch ka fer tha varna nari ke bina parivar ka koi astitva hi nhi .
धन्यवाद सत्येंद्र भैया🙏🙏
स्त्री देवी की जय 🙏