आज भारत का समाज ब्राह्मणों का विरोध कर रहा है और वही बनना भी चाहता है। आज भी ब्राह्मण क्यों इतनी चर्चा में रहता है? ब्राह्मण क्या है? गुरु, चतुर, निपुण, नीतिज्ञ, धर्मज्ञ, मर्मज्ञ या उच्च पदस्थ या सत्ता भोगी? कई लोग तो गलत व्याख्या कर लिये कि वह सुविधा भोगी रहा है।
क्या भूल कर रहे हैं? जिस देश में 800 वर्ष से हिन्दू राजा या हिन्दू शासनतंत्र ही नहीं था फिर भी अपने समाज, अपने लोगों को ब्राह्मणों ने अक्षुण्य रखा, जब आवश्कता पड़ी उसने प्राणों की आहुति दी। भारतीय संस्कृति अमर रहे उसके लिए ब्राह्मणों ने उसे अपने रक्त से सींचा। उसके जैसा त्याग, तप, आत्मबल की मिसाल विश्व के किसी अन्य देश में नहीं मिलती है।
इतिहास के पन्ने पलटते हैं, क्या सच में ब्राह्मणों ने जब देश और धर्म पर संकट आया तो अपने प्राणों से रक्षा की?
जब सोमनाथ का मंदिर गजनवी ने तोड़ा उस समय मंदिर की रक्षा हेतु 50 हजार ब्राह्मण मारे गये। महमूद गजनवी जब हरिद्वार पहुँच कुंभ के मेले को नष्ट करने की कोशिश की तब ब्राह्मणों ने मोर्चा संभाला। यहाँ इतने ब्राह्मण मारे गए कि गणना के लिए इकठ्ठा किये गए केवल उपनयन (जनेऊ) का ही वजन 10 मन (400 kg) था जिसे बाद में जलाया गया।
थोड़ा पूर्व में अशोक और उनके वंशजो के समय में जब भारत में बौद्ध धर्म, राज्य धर्म होने की वजह से तेजी से विस्तार ले रहा था। अंतिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ एक बार जंगल शिकार खेलने गये उनके पास से मगध के भावी ब्राह्मण सम्राट पुष्यमित्र शुंग गुजर रहे थे। वृहद्रथ के ऊपर शेर ने आक्रमण कर दिया। पुष्यमित्र शुंग ने उसके जबड़े तोड़ दिये।
इसके उपलक्ष्य में उन्हें वृहद्रथ ने सेनापति नियुक्त किया। पुष्यमित्र शुंग सनातनी थे। अयोग्य बौद्ध वृहद्रथ को सेना का निरीक्षण करते समय वध कर मगध के सम्राट बने। उन्होंने कई अश्वमेध और बाजपेय यज्ञ कर एक बार पुनः सनातन धर्म की पताका लहराई।
भ्रष्ट हो चुके बौद्ध मठों को खाली करवाया, कई बौद्ध स्तूप को ध्वंस किया। सनातन परम्परा की पुनर्स्थापना की। यही वह समय था जब बौद्ध अन्य देशों की ओर जाने को विवश हुये।
दूसरी शताब्दी में ही पुष्यमित्र शुंग के समकालीन महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में ब्राह्मण वंश सातवाहन का शासन हुआ। जिसमें प्रतापी राजा गौतमी पुत्र शातकर्णी थे। जिन्हें नासिक अभिलेख में अद्वितीय ब्राह्मण कहा गया। विदेशी शक शासक नहपान को हरा कर शातकर्णी ने मार डाला।
तीसरी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में नंदिवर्धन (नागपुर) में ब्राह्मण वंश वाकाटक की स्थापना हुई। वर्णाश्रम उद्धारक की उपाधि इस वंश के कई राजाओं ने ली। इसी वंश में चंद्रगुप्त की पुत्री प्रभावती का विवाह हुआ था।
319 ई० में प्रयाग से शुरू हुए गुप्तवंश ने मगध की यश और कीर्ति में काफी विस्तार क्या। यह वंश भी ब्राह्मणों का था किन्तु अंग्रेज या अंग्रेजी मानसिकता वाले इतिहासकारों ने जब इतिहास लिखा तो इसे संदिग्ध कर दिया। महान शासकों की शृंखला वाला वंश जिसमें चंद्रगुप्त, समुद्रगुप्त, कुमारगुप्त और स्कन्दगुप्त हुए जिनके संमय को भारत का स्वर्णयुग कहा जाता था। कला, संस्कृति, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, साहित्य, स्थापत्य कला में चहुमुखी विकास हुआ। शिक्षा में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना महाराज कुमारगुप्त के समय मे हुई। विदेशी यात्री फाह्यान ने इस समय का विशद वर्णन किया है।
अयोध्या में श्रीराम मंदिर के लिए 490 वर्षो में हुए 76 युद्ध में सवा तीन लाख हिन्दुओं ने अपने प्राणों की आहुति दी जिसमें अकेले 1.75 लाख ब्राह्मण मारे गये। काशी विश्वनाथ मंदिर, औरंगजेब से पूर्व तीन बार मुसलमानों ने तोड़ा वहाँ भी कुल एक लाख ब्राह्मण मारे गये। यही हाल मथुरा और महाकालेश्वर मन्दिर, कन्नौज के मंदिर, जगन्नाथपुरी के मंदिर और प्रयाग के मंदिर को बचाने के लिये अनगिनत ब्राह्मण धर्म की वेदी पर चढ़ गये।
मुगलों के शासक को नाचीज़ बनाने वाले पूना के पेशवा जो चितपावन ब्राह्मण थे, उन्होंने अपने तलवार से मनोहर गाथा लिखी। “खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी” यह पेशवा वंश की कन्या, ब्राह्मणी थीं जिन्होंने अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिए।
मंगल पांडेय, बालगंगाधर तिलक, बालकृष्ण गोखले या चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु या रामप्रसाद बिस्मिल ये सभी ब्राह्मण थे जिन्होंने देश के आन – बान – शान से समझौता नहीं किया।
इंदिरा गाँधी के शासन में भी जब धर्म सम्राट परम पूजनीय ब्राह्मण शिरोमणि करपात्री जी महाराज ने गौ माता के रक्षार्थ दिल्ली में गाय माता के साथ प्रदर्शन किया तब इंदिरा गाँधी ने गोली चलवा दी उसमें 25000 ब्राह्मण मारे गये। मांग थी स्लाटर हाउस बंद किये जाय।
अब इन सबके बाद भी कोई भारत में धर्म की सीख ब्राह्मणों को देता है तब खून का तापमान इतना बढ़ जाता है कि “देयहु श्राप की मरहू जाई” तलवार से इस विधर्मी की गर्दन काट ले। कोई ईश्वर, अल्लाह, धर्म निरपेक्षता की बात मेरी पवित्र भूमि पर करता है तो मुझे शिव के त्रिशूल या कृष्ण के सुदर्शन चक्र स्मरण आता है कि हे प्रभु कुछ देर के लिए हमें दे देते तो इसका जय श्री राम कर देते।
हम ब्राह्मण हैं जो सम्मान चाहते हैं। इस देश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता का सहारा लेकर वेद, भगवान, ब्राह्मण का तिरस्कार किया जा रहा है। जन, जल, जंगल, जमीन के लिए अचार, विचार, संस्कार और आहार सब कच्छ- मच्छ हो गये हैं।
याद रखिये बिना गुरु, गोविंद और ग्रंथ के समाज कितनी ही तरक्की कर ले, फिर भी सुख, शांति, सामंजस्य, नैतिकता, प्रेम और गरिमा की स्थापना नहीं हो पायेगी। क्योंकि व्यक्ति कभी धर्म से विमुख नहीं हो सकता है।
ब्राह्मण जातिवादी या स्वार्थवादी कभी नहीं रहा है। वह देशवादी, धर्मवादी, लोगों के सकल कल्याण की कामना को लेकर चला है।
एक बार एक अंग्रेज गवर्नर से हाउस ऑफ कॉमन्स में पूछा गया कि भारत मे ईसाई धर्म के प्रसार में क्या दिक्कत हो रही है जबकि शासन और संसाधन हमारे पास हैं तब उसने कहा था कि ब्राह्मण अपने धर्म की रक्षा के लिए खड़ा है। अब आपको विचार करना है कि ब्रह्मण देश को किसी ऐसे के हाथ मे नहीं छोड़ सकता जो देश के विरुद्ध हो। आवश्कता पड़ने शस्त्र और शास्त्र दोनों की कुशलता दिखाई है।
Parmpujyniy h jin Bramhno ne apne desh ke liye srvasv nichavar kr diya.