भारतीय समुदाय

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

दुनिया में दो तरह के लोग रहते हैं, एक एलीट वर्ग दूसरा सामान्य वर्ग, जिसे मध्यम वर्ग, निम्न-मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग भी कहते हैं। इसमें अपनी – अपनी सुविधा के अनुसार मध्यम और निम्न लगा लिया गया है। एलीट या उच्चवर्ग जिसके पास सब अधिकार हैं, वे साधन संपन्न हैं। उनकी एक अलग रूहानी दुनिया है। जिसमें वे मौज से रहते हैं। उन्हें किसी बात की चिंता नहीं रहती है। यहाँ सब कुछ बिकाऊ है, जिसे जो पसन्द बस बोली लगानी है।

इनका पेज थ्री, रेव पार्टी, पति – पत्नी बदलने, माता – पिता को वृद्धाश्रम छोड़ने का कार्यक्रम आदि चलता रहता है। इनकी संस्कृति लाभ वाली है। किसी का कुछ भी हो, इनका मुनाफा बने रहना चाहिए।

दूसरी ओर मेहनतकश मजदूर, किसान, कामगार आदि हैं, जिन्हें दो व्यक्त के खाने के लिए भी सोचना पड़ता है। गेंहू, चावल, सब्जी के दाम को लेकर फिक्रमंद रहते हैं। यह असंतुष्ट वर्ग है, जिसमें हर चीज के पूरी होने की आशा तो रहती है, वह भले पूरी न हो। सभ्यता, संस्कृति, धर्म, चिंतन आदि की चिंता, बच्चों के भविष्य की चिंता से लेकर बेटी के विवाह तक, ये बस आशाओं के मजबूत कंधों से भविष्य के पहाड़ को उठाये हुए हैं।

उच्च वर्ग के लिए राजनीति, धर्म, चरित्र आदि व्यवसाय है। जबकि असंतुष्ट वर्ग के लिए यही सत्य है जो वह कहता है कि चरित्रहीन व्यक्ति, चारित्रिक पतित समाज निर्मित करता है, जिस कारण समाजिक असुरक्षा जन्म लेती है। ऊपर के निस्यनंदन से नीचे का तबका बहुत प्रभावित होता है। फ़िल्म को एक्चुअल (वास्तविक) मान कर नेता में अभिनेता और अभिनेता में नेता देखता है। अपसंस्कृति सभी ओर छाती जाती है, मानवता बंजर दिखती है। तो कैसे मुस्लिम, मंगोल, पुर्तगाली और अंग्रेज भारत में सफल न हो जाएं?

भारतीय बन्दरों की तरह नकलची बन गए हैं, हिन्दू पश्चिम की नकल कर रहा है और मुस्लिम अरब की। कुछ चुनिंदा लोग ही हैं जिन्हें भारतीय संस्कृति की चिंता है। भारत स्वाभाविक रूप से एक चिंतक, संस्कृतिक, कला और उत्सवप्रेमी, धर्मी देश है किंतु इसके लोग हैं कि बन्दर की तरह गुलाटियाँ मार रहे हैं। वह स्वयं के सामर्थ्य को भी नहीं पहचान रहे हैं। नकल ने अकल पर पर्दा डाल दिया है। सांस्कृतिक जागरण से व्यक्ति स्वयं का आत्मचिंतन करके सुधार करता है।

आप छोटे न हो इसलिए चिन्तन का दायरा विकसित करिये, इससे चिंता मिटेगी, जीवन पशु, पक्षी भी जी लेते हैं लेकिन बिना किसी विचार के। यदि मनुष्य हो, आत्मा हो तो जाग्रत होना होगा और यदि मृत देह हो तो निद्रा और शवदाह ही वास्तविक है।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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