मांसाहार की निंदा क्यूँ न करें? यहाँ बात जंगल, बीहड़ या अफ्रीका के दुर्गम स्थल की न होकर सामान्य स्थिति की है जहाँ खाने के लिए अन्नफल भरपूर उपलब्ध है तब भी जानवरों को निवाला बनाया जा रहा है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलोर, अहमदाबाद जैसे शहरों की हालत यही है। लोग जिह्वा के स्वाद और फैशन परस्ती में भी ज्यादा मांस खा रहे हैं।
प्रकृति के सिद्धांत को देखेंगे तो क्या हर बड़ा जीव छोटे को भोजन की शृंखला बना देगा? यदि बूढ़े शेर को लकड़बग्घा खा जाता है तो बुढ़े मां – बाप का जवान संतान क्या करें? क्या इन्हें भी भोजन के शृंखला में शामिल कर लेगा? झटका, हलाल और भोजन? अरे यह प्रकृति सभी 84 लाख योनियों के लिए बराबर है, धरती अकेले मानव की नहीं है।
भोजन की शृंखला जानवर है लेकिन विवेकवान मनुष्य जानवर की शृंखला न बने। भवनात्मक होने जैसा कुछ नहीं, जितना मनुष्य के माता – पिता या जोड़े हैं उतना न सही लेकिन जानवरों और पक्षियों में भी थोड़ा कम ही सही लेकिन होते तो होंगे? यदि मानव हैं तो मनुष्यता धारण करें, अन्य जीवों पर दया करें, उन्हें ग्रास न बनाएं, उन्हें जीने दें। आपके खाने के लिए तो बहुत चीजें हैं।
यदि मनुष्य के लिए मांस बना होता तो उसे उबालने और जायकेदार बनाने की जरूरत न होती। वह भी जानवरों की भांति चीर फाड़ के खा जाता। बाकी लोग अपने समर्थन में तर्क तो जुटा ही लेते हैं।
दुर्भाग्य है कि हम जानवरों की भाषा नहीं समझते हैं। हमारे घर की गाय, रोज आने वाली गौरैया,
कौआ, कुत्ता, चींटी भी जब हमारा घर बन के तैयार हो जाता है तो अपने प्रियजन से कहते होंगे कि यह घर बनवा के मानव को रहने को दे दिया है बस इतनी ही इच्छा है वह थोड़ा सा भोजन हमें भी दे दे।
पैसे का मोल 84 लाख योनियों में केवल मनुष्य के लिए ही है क्योंकि वह अपनों को ठगता है और अपना का स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है। इसी लिए मुद्रा है क्यों कि आदमी पल – पल बदलता है।
प्रकृति में असुंतलन और टिड्डी दल
तुम चिड़िया, गिद्ध को मारते गये, प्राकृतिक फौज जो टिड्डियों से तुम्हारे खेत की रखवाली करती थी अब टिड्डी के दल का मुकाबला कौन करें? वे तुम्हारे अन्न साफ करेंगे फिर तुम क्या करोगे? कितना बाड़ लगाओगे ?
कौआ, गौरैया, बया, चरखी, किलहटी, गिलहरी, केचुआ यह सभी तुम्हारे मित्र हैं जो प्राकृतिक सेना है कीट-पतंगों जैसे टिड्डों आदि से लड़ने की। तुम्हे लगता है कि कीटनाशक से कीट को रोकोगे तो भ्रम में हो। यही कीटनाशक खाने में मिलकर तुम्हें बीमार कर रहा है। तुम देखो न किसी बीमारी/महामारी आने के अंतराल में भी कमी आती जा रही है। मधुमेह, हड्डी, कैंसर, ह्रदय की बीमारियाँ तो अब आम बात होती जा रही हैं।
टिड्डी अफ्रीका में पैदा होती है लगातार प्रजनन करके उनकी संख्या बढ़ाती है, पाकिस्तान के रास्ते भारत में प्रवेश करती है। तुम प्रकृति और अपने आस – पास के जीवों पर विचार करो तुम्हारे विकास ने कितना विनाश किया है।
हे मानव! तुम प्रकृति के संतुलन को नष्ट करो, प्रकृति तुम्हें नष्ट कर देगी। तरह – तरह की बीमारियाँ ले आयेगी।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
***