शुद्ध अचार-विचार की जगह मात्र कुर्सी विचार।
नेता प्रतिपक्ष हो, मुख्यमंत्री हो, मंत्री या प्रवक्ता हो, आज जिसके पक्ष में हैं कल उसी की आलोचना करते हैं, थाली के बैगन हो गये हैं। नाम के ही नेता हैं बाकी तो वह राजनीति के व्यापारियों से भी आगे निकाल गए हैं। एक मात्र लक्ष्य है, सिर्फ स्वयं का हित। इसके लिए देश और जनता को टोपी पहनाते रहते हैं। डेमोक्रेसी के नाम पर गलत भी सही है। सही का सिद्धांत स्वयं पर और गलत का दूसरे पर। भारतीय विचार की जगह सोफिस्ट विचार हावी है, आओ मिलकर लूटते हैं।
शुद्ध जातिवाद और परिवारवाद की खेती लहलहा रही है बस कहने को भारत निरपेक्ष राष्ट्र रह गया है। न तुम गलत न मैं, जिसमें है लाभ वही है सही। नेता को नीति की जगह कुर्सी की लत है। मेरे अलावा कोई और न बैठ जाए। कुर्सी से उतारने के लिए पूरा विपक्ष आमादा है लेकिन यह पूछो कुर्सी पर आखिर किसे बिठाओगे? तब एक नाम की जगह, सब अपने नाम का प्रस्ताव लिए घूम रहे हैं। ‘नीच बनोगे तो नेता बन जाओगे, कीच बनोगे तो कमल खिलाओगे।‘
सबसे बड़ी कॉमेडी है डेमोक्रेसी, किसी सिनेमा से भी अधिक ड्रामेटिक! यही कारण है कि आज सिनेमा कम और न्यूज ज्यादा देखी जा रही है। जय हो इस डेमोक्रेसी के नेताओं की। बदनाम होने पर नाम होगा फिर टिकट मिलने से नेता राजनीति की सांप-सीढ़ी चढ़ेगा। गांव की प्रधानी में भी ५० उम्मीदवार हैं, सभी को उनके समर्थक प्रधानजी कहते हैं, भले ही कुल वोट ५ मिले।
Accha vyang hai.