मन्दिर का साधारण अर्थ ‘देवस्थान’ या ‘देवालय’ होता है किन्तु मन्दिर को मात्र देवालय भर कहना सही नहीं होगा। मन्दिर वह स्थान है जहाँ से हिंदुओं को जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। उत्सव, त्यौहार, विवाह, शुभ कार्य आदि का शुभारंभ यहीं से होता रहा है। पूर्व में शैक्षणिक प्रसार के दायित्व का निर्वहन भी मन्दिर ही करते रहे हैं। इस लिए मन्दिरों को भारत की आत्मा कहते हैं।
अब आप का प्रश्न हो सकता है मन्दिर ही क्यू? मस्जिद और चर्च क्यू नहीं!
वास्तव में भारतीय संस्कृति का एक अध्याय ही मन्दिर है। यही कारण था कि आक्रांताओं ने मन्दिरों को ध्वस्त किया। और इस प्रकार से हिन्दू धर्म को कमजोर करने का प्रयास किया।
सोमनाथ का मन्दिर लूटने के समय गजनवी ने देखा कि ब्राह्मण, साधू, संत आदि कड़ी टक्कर दे रहे हैं, एकबार तो गजनवी को लगा कि मुस्लिमों की सेना को मन्दिर की सेवा करने वाले ब्राह्मणों का दल चिमटे और त्रिशूल से हरा देगा। तब गजनवी का गुप्तचर जो कि सोमनाथ मंदिर में एक साधू बनकर रह रहा था, ने बताया कि जब तक मन्दिर का ध्वज नहीं गिरता यह ब्राह्मण हार नहीं मानेंगे। इसी बात से आप मन्दिर के महत्व का अंदाजा लगाइये।
हम विश्व की सबसे प्रचीन सभ्यता के वाहक हैं। हमने समरता, सौहाद्रता, शांति और सहजीवन का पाठ पूरे विश्व को पढ़ाया है। मुस्लिम या सेक्युलर विविधता और शांति की बात कैसे कर सकता है? वह तो औरंगजेब को कोसने करने की जगह उसके बचाव में लगा हुआ है। विवादित स्थल पर इबादत की जगह वह 1991 के ‘उपासना स्थल कानून’ का हवाला बार – बार दे रहा है क्योंकि उसे भलीभाँति पता है कि खुदाई और सर्वे से सत्यता उजागर होगी।
यूँ तो मुस्लिम भाईचारे और मोहब्बत की बात करता है, फिर वही कश्मीरी पंडितों के नरसंहार कराने वाले यासीन मलिक के लिए छाती पीटता है, वही रोहिंग्याओं के लिए रोता है और फ्रांस में बने मोहम्मद के कार्टून पर भारत में विरोध करता है। ISIS, तालिबान का समर्थन करता है। उसे भारत के संविधान पर भी तब तक ही भरोसा है, जब तक कि उसके हितों की बात हो।
उसे पंडितों के भगाया जाना, 370 का रहना, रोहिंग्याओं का भारत में बसना पसन्द है। आतंकवाद, मुजाहिदीन भी अच्छा लगता है। उसे CAA और मन्दिरों से विरोध है तो ‘एक देश एक कानून’ या ‘जनसंख्या नियंत्रण’ पर तो भारी विरोध है। इन कानूनों को वह मजहब पर हमला मानता है।
वह अफजल गुरु और वानी जैसे आतंकवादियों के लिए फतेहा पढ़ता है लेकिन अब्दुल कलाम को अपना नहीं मानता, उसके कायदे आजम जिन्ना सरीखे लोग हैं। उसके आदर्श सऊदी और पाकिस्तान से हैं।
मुस्लिम भारत में मुक्कमल इस्लाम के लिए है, अल्लाह ने चाहा तो भारत तीसरा पाकिस्तान बनेगा!!
अब प्रश्न यह है कि हिन्दू इन जाहिलों को कैसे झेल रहा है? उसका कारण है हमारी पूर्व की पृष्ठभूमि! हम उसे भी हिन्दू मानते हैं जिसे राम, कृष्ण और शक्ति में विश्वास नहीं है। नास्तिक है, ईश्वर और पुराणों में आस्था नहीं है। हिंदुओं की इसी उदारता का लाभ म्लेच्छों ने खूब उठाया है।
स्वयं कि रक्षा की बात आने पर कोई भी कर्म धर्म बन जाता है। भारत में जिस मुस्लिम मजहब के नींव का निर्माण हिंदुओं की भावना और समाज को कुचलकर, मन्दिर पर मस्जिद बना कर की गई हो वह हिन्दू मुस्लिम से भाईचारे और प्रेम के विषय में कैसे सोच सकता है? आज जब हिन्दू समाज जागरूक हुआ और विशेष रूप से जब उसे यह विश्वास हुआ कि वर्तमान सरकार तुष्टिकरण की राजनीति नहीं कर रही है, तब उसने आवाज़ उठानी शुरू कि, उसे उसके सभी मन्दिर वापस चाहिए। अब इतिहास, राजनीति और मजहब की पोल खुल रही है। मुस्लिम स्वयं को औरंगजेब, बाबर, अफरासियाब का वंशज बताता है। कोई मुस्लिम किसी आक्रांता की आलोचना उस तरह से नहीं करता है जैसे इस्लामिक आतंकवाद की आलोचना होती है।
यह जीवन संघर्ष के लिए है। शांति, संघर्ष और ज्ञान से आती है। ज्ञान की बात भी संवेदनशील लोगों के लिए है जबकि जाहिलों के लिए युद्ध अपरिहार्य है। इससे आप भी बच नहीं सकते।
भारत के लिए सबसे मजबूत ‘भारतीय दर्शन’ रहा है इसीके कारण भारत की एक सुदृढ़ संस्कृति रही है जिसकी विशेषता से आज भारत का धर्म बचा रहा। औरंगजेब आदि बर्बरों ने मन्दिरों की ईंट तो निकालली परन्तु संस्कृति की ईंट निकालने में असफल रहे। यद्यपि तलवार के दम पर और छल से मजहब का विस्तार किया गया। बाद के समय में हिंदुओं को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने मुस्लिमों का हथियार की तरह प्रयोग किया। उसी कार्य को कांग्रेस आदि राजनैतिक पार्टियों ने सत्ता में बने रहने के लिए आगे बढाया।
वामपंथी इतिहास लेखन, जिसका आधार उपनिवेशवादी अंग्रेज थे, ने हिंदुओं की पराजय का कारण जातियों को मान कर और कई कुप्रथाओं को ऐसे प्रस्तुत किया कि जैसे यही कुप्रथाएं ही भारत में थीं। और बढ़ – चढ़ कर मुस्लिम, मुगल और अंग्रेजों का महिमामंडन किया।
जिस मजहब में क्रूरता जायज हो वहाँ मनुष्यता की बात नहीं हो सकती है। गलतियों से आपका मन ग्लानि से नहीं भरता, बल्कि जिहाद का मन करता है, लोगों को कत्ल करने, बम से उड़ाने का मन करता है, तो आप गुमराह हैं। यह दीन और इंसान का मसला नहीं है, यह तो शैतान की राह है।
एक तरफ कहा जा रहा है कि लोकतंत्र में 20% की नुमाइंदगी नहीं है, उनका प्रतिनिधित्व करने वालों की संख्या घट रही है। यदि घटाव को जाति और मजहब से जोड़कर देखेंगे तो लोकतंत्र की रक्षा किस प्रकार होगी।
दूसरी तरफ देवबन्द से मदनी कहता है कि जिसे उसका मजहब पसन्द नहीं है वह देश छोड़कर चला जाय, यह देश उनका है। विश्व भर में 57 इस्लामिक देश हैं क्या इनमें कोई ऐसा मुल्क है जो मुसलमानों को अपने यहाँ शरण दे दे?
भारत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंग्लादेश के अल्पसंख्यकों को शरण दे रहा है, कानून बना रहा है। वह नेपाल, भूटान, लंका के लोगों के लिए खड़ा है। लेकिन भारत का मुसलमान बाबर, औरंगजेब से अपनी डिपेडेन्सी बताता है, न कि खुसरो या कलाम से फिर तो 57 मुस्लिम देशों को इनका इस्तकबाल करना चाहिए।
भारत में रहने वाले भारत की संस्कृति, तिरंगे, राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत पर कैसे विवाद कर सकते हैं। विवाद करने का अर्थ है कि उनकी मंशा में खोट है।
भारत में कुछ महत्वपूर्ण मन्दिरों पर विवाद है, उस विवाद को खत्म करने के लिए मुस्लिम हिंदुओं से बात करके उन्हें सौंपने की जगह सत्य को झुठला रहा है, इसका कारण है कि मुस्लिम भारत में 1000 वर्ष रहने के बावजूद भी हिंदुओं के मन में नहीं रह पाया। मुस्लिम द्वारा अतीत में किये गये धार्मिक अत्याचार ने हिंदुओं के ह्रदय के दरवाजों को सदा के लिए बंद कर दिया है। बौद्धिक वामपंथी, सेक्युलर, राजनीतिक पार्टियां और संस्थान चाहें कितने प्रयास करें, प्राचीन घाव को सिर्फ हरा ही कर रहे हैं।