किसका नववर्ष

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
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यह किसका नववर्ष है, कौन सेलिब्रेट कर रहा है?

सनातन परंपरा में मृत्यु भी एक बड़ा महोत्सव होता है उसका कारण यह है कि लोगों का मानना है जीव को जरामरण चक्र से छुटकारा मिल गया है।

मनुष्य को देखें तो उसके जीवन से एक महत्वपूर्ण वर्ष और 31564512 सांसे कम हो गईं जिसमें मनुष्य जीवन का उद्देश्य सदकर्म किया ही नहीं। फैशन और देहवाद में हम ऐसे फंसते गये हैं कि बिना उद्देश्य के उत्सव माना रहे हैं। अरे, इस उत्सव के पीछे क्या विज्ञान है, उस पर शायद कभी विचार नहीं किया गया।

शराब और न्यू ईयर की पार्टी उसके बाद जोर – जोर से बोलना ‘हैप्पी न्यू ईयर..’। लोग इसके लिए बड़ी तैयारी करके रखते हैं। प्रेमी – प्रेमिका का मिलन हो या दोस्त – यार का, नये वर्ष का उद्देश्य नये प्लान बना कर उसपर काम करने का होता है। लेकिन भारत में दारू, पार्टी, गोवा टूर आदि जैसे बुरे कार्य करके ही नया साल मुबारक हो रहा है। नई पीढ़ी प्रचार में फँस कर नये साल को जोर – शोर से मनाने के लिए बेताब है। शिक्षा प्रणाली, मीडिया, टीवी पर प्रेरित कर रहे हैं कि सेलिब्रेट करो नया साल, साली ये जिंदगी न मिलेगी दुबारा..।

सिनेमा ऐसा शसक्त माध्यम है कि इमोशन डाल कर बुरी से बुरी चीज के लिए सैम्पेथी ले जाते हैं। सिनेमा पर मन, आंख, कान के साथ शरीर भी एकाग्र रहता है। इस बुरे चलचित्र का प्रभाव हमारे युवा पीढ़ी पर सर्वाधिक है। आज का सिनेमा, सीरियल अच्छे से ज्यादा बुरे की पैरोकारी करता दिख रहा है। “बिगबॉस” कार्यक्रम का उद्देश्य बनाने वाला और देखने वाला दोनों नहीं जानते फिर भी इसके दर्शकों की संख्या बहुत अधिक है।

सनातन धर्म में नववर्ष की शुरुआत चैत्र प्रतिपदा से होती है। यह चैत्र प्रतिपदा हर वर्ष मार्च – अप्रैल के बीच पड़ती है। जिसकी शुरुआत देवी – देवताओं के पूजन से होती है। शराब या पार्टी की नौबत नहीं आती बल्कि नवरात्र का व्रत रखना होता है।

बड़ा आसान है कुछ बुरा करना, नशा करना, पार्टी करना या नंगे – पुंगे को देखने की अभिलाषा लेकर गोवा जाना या लवर बन कर किसी होटल में रूम खोजना। अंग्रेजी शिक्षा आपको क्या से क्या बना रही है, आपके पास इस पर विचार करने का टाइम नहीं है, न ही अपने बच्चों के लिये ही है कि वह न्यू ईयर के नाम पर क्या कर रहा/रही है। आपका बच्चा बड़े का सम्मान भूल गया, आपसे बात – बात झगड़ पड़ता है लेकिन समय ऐसा है कि जब माता – पिता ही अपने लाडले/लाडली का जीवन पंगु और नष्ट कर रहे हैं।

बच्चे को नौकरी की शिक्षा देने से बेहतर है कि उसे भला इंसान बनने की शिक्षा दें। जिससें उसका रह – रह कर मूड न ऑफ हो। जीवन को कैसे आगे बढ़ाना है, यह उसका विषय है। जिस तरह गाड़ी सीख लेने के बाद आप कही भी लेकर उसे जा सकते हैं उसी प्रकार बच्चे में संस्कार डाल देने से वह अपने जीवन को कहीं भी लेकर जा सकता है।

दोष अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था से ज्यादा हमारा स्वयं का है जो अपने सनातनी संस्कार, सनातन धर्म को भूल कर खिचड़ी सेकुलिरिज्म में फँस गया है। कैलेंडर की जगह कब संस्कृति बदल दी पता ही नहीं चला। हमें अपने मूल को जानना होगा जिसके जानने में ही विश्व का कल्याण छुपा है।


नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।

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Gaurav
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3 years ago

Why sambhashan twitter got deleted

Prabhakar Mishra
Prabhakar Mishra
3 years ago

मार्मिक वचन। यथार्थ चित्रण।

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