भारत में कई तरह के एजेंडे सेट किये गये। पहले बौद्ध, यूनानी, चीनी, मुस्लिम फिर अंग्रेजों द्वारा। स्वतंत्रता पश्चात लोकतंत्र में सेकुलिरिज्म और जातिवाद की खेती काटी गयी। आज जिसे संस्कृति का भान नहीं वह सेकुलिरिज्म का प्रवक्ता बना बैठा है।
लोकतंत्र में सत्ता के एजेंडे को सेट करने में स्कूली पुस्तकों, अध्यापकों से लेकर सिनेमा, मीडिया और साहित्यकारों ने अपनी – अपनी भूमिका को अंजाम दिया।
भारत के गद्दार राजा, राय की उपाधि विदेशियों से लेकर अपने अरमानों के लिए भारत की बलि चढ़ा दी। गद्दार सत्ता सुख पाने लगे उनके बच्चें विदेशों में पढ़कर समाज सेवा वंशवाद का सहारा लेकर लोकतंत्र को वंशानुगत और जातिवादी बना दिया।
इतिहास की पुस्तक में कभी आप को यह पढ़ने को नहीं मिलेगा कि भारत में असभ्य मुस्लिमों का आक्रमण हिंदु संस्कृति को छिन्न – भिन्न करके मंदिरों का विध्वंस किया। इस्लाम के नाम पर जिहाद का नारा देकर कितने हिन्दूओं का कत्ल कर दिया गया फिर भी इल्तुतमिश और अल्लाउद्दीन खिलजी ने भारत को मंगोलों से बचाया, मुहम्मद तुगलक हिंदु मुस्लिम एकता का पैरोकार था। मुहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक अन्वेषक थे। मुगलों ने भारत की लक्ष्मी का उद्धार किया, यही सब पढाया जाता है।
बाबर भारत में आक्रमण नहीं करना चाहता था वह तो भारत के राजाओं के कहने पर आया था। हुमायूँ एक ईमानदार मुस्लिम था। अकबर ने गंगाजमुनी संस्कृति का बीज लगाया। जंहागीर कलाप्रेमी, शाहजहां निर्माण कला का स्वर्णयुग लेकर आया। सबसे बढ़कर हास्यास्पद है कि इनके अनुसार औरंगजेब भी सेकुलर था, उसने राज्य के कुछ मंदिर मजबूरी में तोड़े थे नहीं तो हिन्दू प्रजा के लिए मथुरा, काशी आदि में मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था।
मुस्लिम का सेकुलिरिज्म यही नहीं रुका वह बढ़ कर बंगाल पहुँच गया, सिराजुदौला के रूप नया हिन्दू – मुस्लिम एकता वाले इंसान ने जन्म लिया। दक्षिण भारत में गंगा जमुनी संस्कृति की एक बड़ी पैदाईश मैसूर के हैदरअली के घर में टीपू सुल्तान के रूप में हुई जो इस्लामिक देश बनाने के सपने की जगह भारत की उन्नति के स्वप्न देखा करता था। उसने भी मंदिरों को बहुत मजबूरी में तोड़े साथ ही कुछ हिंदुओं को मुस्लिम बनाया। नहीं तो वह हिन्दू और मुस्लिम को समान समझता था। यह स्कूली पुस्तक में आज भी जारी है।
जबकि वास्तविकता इसके बिल्कुल उलट थी भारत के वास्तविक योद्धाओं वीरांगनाओं के इतिहास गायब हैं। जिसने देश बर्बाद किया वह गंगा जमुनी संस्कृति का प्रणेता बन गया। जिन अंग्रेजों ने भारत को 200 वर्षों तक लूटा वह भारत के उद्घारक बन गये, उन्होंने ने भारत को अंधकार युग से निकाल कर आधुनिक युग में लाया। भारत के लोगों को कुप्रथा से निकाल कर उन्हें आधुनिक शिक्षा से रूबरू करवाया।
यह सब हकीकत गद्दारों के पुत्रों ने ब्रिटेन में पढ़ई कर खोज की। उन्होंने अंग्रेजों की नकल करके भारतीयों को परतंत्रता की जगह उपनिवेशवाद से मुक्ति दिला कर आधुनिक भारत में प्रवेश दिया। जिन्होंने अंग्रेज़ों के साथ मिलकर जातिवाद का जहर घोला वह अब बड़े नेता बन चुके थे अंग्रेजों ने सभी समझौते अपनी सुविधानुसार उन्ही से कर लिया। ये अंग्रेजों का नमक खाये थे उनके गुलाम आज भी बने हैं भले ही पीढियां बदल गयी हैं।
इतिहास में पन्ने दर पन्ने लीपापोती की गयी। भारत का औपनिवेशिक इतिहास अंग्रेजों द्वारा लिखा गया था उसे कमेटियां बना कर मुहर लगावाना था। जिसे सीधा स्कूलों के माध्यम से बच्चों के दिमांग में बिठाना था। यह सिद्ध किया गया समस्या की जड़ सनातन व्यवस्था है। देश को सेकुलर रंग में रंगा जाए। इतिहास के माध्यम से लोगों के दिमाग में डाला गया कि बर्बर, लुटेरे, आतंकी, गद्दार उतने ही समान है जिस तरह चप्पल चोरी में जेल गया व्यक्ति भी फ्रीडम फाइटर बन गया और जिस तरह स्वतंत्रता के समय और इमरजेंसी में जेल में बंद कैदी हो गये।
अब आप कहेंगे कि धनंजय आप सही नहीं कह रहे हो, आपको सिंधिया परिवार, जयपुर नरेश और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के वंशजों को देखना चाहिए। दो बड़े परिवार जो हाईब्रिड होकर एक हो गये वह सत्ता पर जोंक की तरह चिपक गये हैं। लोकतंत्र को परिवारिक राजतंत्र बना दिया है।
हम अपने वीर, वीरांगनाओं को भूल गये जो अपनी मातृभूमि के लिए हँसते हुये रणभेरी में स्वाहा हो गये। ऐसे ही वीर असम के अहोम राजा लाचित बारपुखन थे जिन्होंने मुगलों को 17 बार हराया। राजा सुहलदेव बर्बर महमूद के भतीजे सैयद सालार गाजी की 20 हजार की सेना को बहराइच की भूमि पर काट डाला जो अयोध्या को निमित्त बना कर आया था। दुर्गावती, कर्णावती, अहिल्याबाई, सोलंकी रानी नायका देवी, सिसोदिया रानी, हांडी रानी, हरियाणा के राव तुलाराम, जाट राजा राजाराम, दुर्गादास राठौर, बन्दा बहादुर और महाराष्ट्र के पेशवा आदि जो देश को सबसे ऊपर रख मर-कट गये, ये हमें स्मरण नहीं है?
आज क्या हो रहा है? जिसने अंग्रेजों की वकालत की वह देश में पूजे जा रहे हैं जिसने देश, धर्म को गाली दी उनके स्टैच्यू बन रहे हैं क्योंकि इससे वोट बैंक बढ़ता है। जब तक देश अपने नायकों और गद्दारों की पहचान नहीं कर लेता तब तक उसे कोई मुगल गंगा – जमुनी और कोई अंग्रेज आधुनिक बनाता रहेगा।
इतिहास का आलम यह है कि देसी विदेशी हो गया, विदेशियों की सेवा करने वाले अपने को मूलनिवासी कहते हैं। मुस्लिम और गद्दार के बोल है – यह किसी के बाप का देश नहीं है। मैकाले से लेकर के स्टुवर्ट मिल, विसेंट स्मिथ और मैक्समूलर के नैरेटिव ने भारत में वृक्ष का आकार ले लिया। अंग्रेजों को अपने शासन के स्थायित्व के लिए सिकन्दर महान, अकबर महान की जरूरत थी उसी तरह भारत के नेताओं को औरंगजेब और टीपू सेकुलर नजर आये।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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सहमत हूँ🙏👍
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बहुत विचारोतेजक और सामयिक सत्य । साधु साधु।
धन्यवाद जी!