पाकिस्तान के लाहौर किले के गेट पर रणजीत सिंह की प्रतिमा लगाई गई है उन्हें पंजाब का वीर राजा के रूप में स्वीकार भी किया गया जिन्होंने स्थानीय समस्या और पंजाब को लेकर अपनों के लिए विदेशियों से जंग किया। अब पाकिस्तानियों के काफी बड़े तबके की मांग है कि इतिहास दुरुस्त हो पाकिस्तान का, अंग्रेजी और फिरका परस्ती नहीं चलेगी।
सिंध के लोग दाहिर और उनके बहादुर वंश से अपनी पहचान चाहते हैं। किसी लुटेरे को धर्म के नाम पर हीरो बनाना और अरबियों से पहचान जोड़ना अपने मूल से कट कर यह समाज में कटुता और झूठ को बढ़ावा देता है जिसका खामियाजा पाकिस्तान का समाज भुगत रहा है।
पाकिस्तान को जो इतिहास पढ़ाया जा रहा है उससे सिर्फ कट्टरता, नफरत भरी है। भारत- पाकिस्तान का साझा इतिहास मुल्तान, सिंध, पंजाब और बलूच का है। कासिम, गजनवी, गोरी, अब्दाली को लुटेरा घोषित किया जाय। वह पाकिस्तान के हीरो कैसे हो सकते हैं? यह उदार मुस्लिम की मांग पाकिस्तान में चल रही है।
यदि भारतीय मुसलमानों पर गौर करें तो वह अभी भी गजनवी, गोरी, तैमूर, अब्दाली की परंपरा को उठाएं चल रहे हैं। इतने साल हिन्दू – मुस्लिम साथ में रहने के बाद भी जुदा – जुदा क्यों हैं? यहाँ सिर्फ अविश्वास ही नहीं है सबसे बड़ी समस्या है, मुस्लिम धार्मिक कट्टरता। उनके लिए देश से भी ऊपर धर्म का स्थान है। गौर करें तो मुस्लिम समुदाय को देश के मामले में धर्म को लाने की जरूरत नहीं है। धर्म वैयक्तिक मामला है, जब उसे सामुदायिक बनाते हैं तो वह मूल स्वभाव को छोड़ सम्प्रदायिक रंग ले लेता है।
भारत में बार – बार हिन्दूओं को उकसाने की वारदातें मुस्लिमों द्वारा की जाती हैं, मुल्ला मौलवियों द्वारा धार्मिक कसीदाकारी करके अपने महत्व को बढ़ाया जाता है। समझौता और शांति की वकालत की जगह धमकी भरे लफ़्ज़ों का इस्तेमाल किया जाता है।
वास्तविक इतिहास की लेखन परम्परा शुरू हो जो सच्चाई के साथ हो क्योंकि सबसे बड़ी सांप्रदायिकता का शिकार भारत का इतिहास लेखन रहा है जो दरबारी परम्परा से आगे नहीं निकल पाया।
कुछ दिन पूर्व इराक में खुदाई में 6000 वर्ष प्राचीन राम और हनुमान की मूर्ति मिली थीं जिसके लिए इराक भारतीय पुरातत्वविदों को निमंत्रण दिया। मध्य अमेरिकी देश ग्वाटेमाला और होंडुरास से भी प्राचीन मूर्तिया मिली थीं किंन्तु भारतीय वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर, इरफान हबीब आदि को कोई साक्ष्य अयोध्या और मथुरा से 5 हजार वर्ष से ज्यादा का नहीं मिलता है। हनुमान जी को देखेंगे तो कोरिया, जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया, मध्य अमेरिका, अमेरिका, मध्य पूर्व में किसी न किसी रूप में स्थानीय स्तर पर जरूर मिलते हैं। हो सकता है कि नाम कुछ बदला या अपभ्रंश हो चुका हो। अंग्रेजी इतिहास लेखन साम्रज्यवादी हितों को संवर्धित करने के लिए था। जिस परम्परा को भारत में काले अंग्रेज़ो ने बढ़ाया। वामपंथी लेखन भी अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों के ‘फूट डालों’ नीति को समर्थन दे कर सामंतवादी और जातिवादी मानसिकता को समाज में पिरोया।
जिसका दूरगामी परिणाम आज भी पड़ रहा है। साझा हीरो की जगह जातीय हीरों को बढ़ाया गया। कमोबेश इसी परम्परा को विश्व के अन्य देशों में भी किसी न किसी रूप में विकसित किया गया। विश्व को एक अंग्रेजी चश्मा पहना दिया गया। लोगों ने अपने लोगों से ही नफरत की, विरोध किया किन्तु अंग्रेज़ो को उद्धारक के रूप में लिया गया।