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Thursday, March 23, 2023

हमसे क्या छूटा

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩
पढने में समय: 2 मिनट

यह ज्यादा पहले की बात नहीं है, जब लोगों की बातचीत में गाय, बछड़े और भैस आदि का उल्लेख रहता था। तब गाय मात्र दूध देने वाली पशु ही नहीं थी बल्कि उसे परिवार का एक सदस्य भी माना जाता था। तिथि त्यौहार पर गाय को नहला धुला कर सजाया जाता था। सभी के घर में गाय का एक कॉमन नाम ‘लक्ष्मी’ होता था।

गाय का नाम ही क्या खेत के नाम, बाग का नाम और उस बाग के अलग – अलग आम के पेड़ों का नाम – सभी के नाम रखने का प्रचालन था। आषाढ़ मास में सभी लोग अपने बगीचे में पके आम (सीकर) के लिए एकत्रित होते थे, आज हाइब्रिड आम प्रचलन में जरूर है। पहले देशी आम का पना, अमावट लोगों को भरपूर मिलते थे। लोगों का एक समय का भोजन ही आम रहता था। देशी आम के सेवन से हाजमा दुरुस्त हो जाता था। आम का हाल यह था कि जिसके आम के बगीचे या पेड़ नहीं थे उसे दूसरों से भरपूर आम खाने को मिलते थे। गांव के लोग आम खाने का निमंत्रण देते थे, वह भी पेट भर के।

आज यह जो आप 1 किलो आम खरीद कर अकड़ के चल रहे हैं, क्या आपको पता है कि यह घर जो आपने जिस जगह बनाया है, इसी जगह तोतापुरी आम का पेड़ था जिसमें से पूरा गांव आम खाता था। हम क्या खोते जा रहे हैं, किंचित हमें मालूम नहीं है।

कटते पेड़ व जंगल और उनके स्थान पर खड़े होते कंक्रीट के जंगल से हमारा वातावरण दूषित होने के साथ-साथ गर्म हो रहा है। कुछ समय पहले तक लोग गर्मियों के समय बगीचे में या पेड़ के नीचे दोपहर में नींद पूरी कर लेते थे। आज के घर में वे पंखे और कूलर के हवे में भी गर्मी नहीं निकाल पा रहे हैं।

सनातन धर्म 84 लाख योनियों में विश्वास करता है, जिनमें एक वृक्ष भी है। मनुष्य की तुलना में वृक्ष में बुद्धि कम जरूर है, किंतु प्राण इसमें भी है। जितने ज्यादा पेड़ कटेंगे उतने ही अधिक मनुष्यों की जनसंख्या बढ़ेगी। क्योंकि यह पेड़ ही मनुष्य बन रहे हैं। यह मनुष्य एक दूसरे को ही परेशान कर रहे हैं, कोई-कोई तो ह्यूमन बम बन कर मनुष्यों पर ही फूट रहे हैं।

सपने मनुजता से पार न जाये, ध्यान रहे कि हमारे साथ सभी जीवों का सहजीवन है। उसे नष्ट करने से हमारा संतुलन नष्ट होता है। फिर उसे संतुलित करने के लिए एक नई बीमारी, एक नया झंझावात, एक प्राकृतिक आपदा देखने को मिलती है। मांसाहार के कारण पशु में से पशुता निकल कर मानव में आ गयी है।

प्रकृति की विविधता को मनुष्य ही नष्ट करता जा रहा है जिसके पास पहले से ही खाने की बहुत सी चीजें थी लेकिन उसे नष्ट कर नई किस्मों की ओर बढ़ा है। यथा जंक फूड, पिज्जा, बर्गर, मैकरोनी, पास्ता, नूडल्स, मैगी और मांसाहार को पसन्द बना लिया गया है। यह सब हमारे स्वास्थ्य के दुश्मन हैं। आज गैस, कब्ज, पाइल्स, एसिडिटी, अल्सर आदि से लोग इस लिए अधिक परेशान हैं कि उन्होंने गलत खाने को चुना है।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
Disclaimer: The opinions expressed in this article are the author’s own and do not reflect the views of the संभाषण Team. The author also bears the responsibility for the image/images used.

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