सांस्कृतिक स्कंधावार और खोया भारत

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Dhananjay Gangey
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एक समय पूरी धरती भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत थी। जब तक शासन और नीतियां सनातनी परम्परा से चलती और बनती रहीं तब तक विश्व के कोने – कोने में भारतीय संस्कृति फली फूली। संस्कृति के विकास में स्थानीयता और परम्परा के निर्वहन करने वाले लोगों का होना अनिवार्य है।

किसी धर्म के विकास में राज्याश्रय का बहुत महत्व रहता है। विश्वभर में सनातनी राजाओं के राज्याश्रय में राजनैतिक के साथ सांस्कृतिक विकास हुआ। महाभारत, विष्णुपुराण आदि ग्रंथों में सप्त महाद्वीप का वर्णन है जहाँ का शासन भारतीयों के हाथों में था। आज भी यत्र तत्र खुदाइयों में भारतीय देवी – देवताओं मूर्तिया और शिलालेख तुर्की, इराक, जापान, कोरिया, होंडुरास यहाँ तक मैक्सिको की “माया सभ्यता” जो कि संस्कृत नाम है “माया”।

जब भारत के लोग मध्य अमेरिका नहीं गये तो माया शब्द कैसे अमेरिका पहुँचा? यह हमें बताता है कि भारत का इतिहास और विश्व का इतिहास लिखने वाले साम्राज्यवादी अंग्रेज थे जिन्होंने इतिहास को अपने हित के अनुकूल लिखा और उसे लोगों पर रोप दिया। इसी क्रम में लिख दिया गया कि भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अर्जेंटीना आदि देशों की खोज यूरोपीय लोगों ने की थी। जिसे आज भी हमें बेशर्मी से पढ़ाया जा रहा है।

प्राचीनकाल में विश्व का केंद्र भारत रहा है। लेकिन आधुनिक काल में आचनक से वास्कोडिगामा ने भारत की खोज कर दी। जिस भारत का व्यापार प्राचीन काल से यूरोपीय देशों के साथ था। जिसका वर्णन मेगस्थनीज, स्ट्रोबो, प्लिनी आदि ने किया था उस इतिहास को लुप्त कर दिया गया।

आज का भारत बहुत सीमित है उसे सांस्कृतिक रूप में छिन्न – भिन्न करने की परंपरा जिसे अंग्रेजों ने शुरू किया उसे भारत के सेकुलर शासन और वामपंथी गप्पकारों ने जारी रखा। आज यदि भारत के विषय में शास्त्रों से इतिहास बतायेंगे तो यही सरकारी इतिहासकार अंग्रेजों की थियरी के साथ खड़े होते हैं।

आज के इतिहासकार जितनी दूर तक सभ्यता की खोज के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं उससे कहीं पुराने प्रमाण खुदाई में प्राप्त हुई हिन्दू प्रतिमायें ही प्रस्तुत कर देती हैं। अंकोरवाट, बोरोबुदुर, वियतनाम और मलेशिया के मंदिर के वास्तविक इतिहास अभी गायब हैं। कितने प्राचीन हिंदू मंदिर विश्वभर में नष्ट कर दिये गये। विश्व के अन्य देशों में रहने वाले हिन्दु कहाँ चले गये? यूरोप में भारतीय मूल के रोमा समुदाय जिन्हें अभी भी मान्यता नहीं है, तो विश्व के अन्य देशों में प्राचीन हिंदुओं की खैर खबर कौन ले?

प्रथम सदी में गौतमीपुत्र शातकर्णी, वशिष्ठी पुत्र पुलमालि के सिक्कों पर जहाज का चित्रांकन जो विदेशी व्यापार का प्रमाण दे रहा है। वृहदकथामंजरी के आधार पर लिखित “कथासरित्सागर” में कहा गया है कि भारत पहली सदी में विकसित समुद्री व्यापार करता था। व्यापार करने के लिए बड़े – बड़े व्यापारिक जहाज भारत में बनते थे।

भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं, राजाओं और उनके विस्तार पर चर्चा करने वाले को असभ्य, संकीर्ण के रूप वामपंथियों द्वारा दिखाया जाता है। स्मरण रहे बगैर स्वयं को स्वीकारे कोई विकास सम्पन्न नहीं होता।


नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।

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