शरणार्थी, एक समस्या

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Dhananjay Gangey
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भारत की भूमि शरणार्थियों, विदेशियों को कब तक आश्रय देती रहेगी?

अत्यधिक सहिष्णुता स्वयं के राष्ट्र के लिए खतरनाक होती है। ईसाई, मुस्लिम, यहूदी आदि में अधिकांश भारत की भूमि को कभी अपना राष्ट्र नहीं मानते हैं और न मानेंगे। भारत को एक बाजार के रूप में देखता है तो दूसरा माले गनीमत के रूप में। कारण स्पष्ट है, इनकी श्रद्धा और आदर्श का केंद्र भारत में न होकर भारत से बाहर है।

पश्चिमी और मुस्लिम देश हिन्दू के क्रिया-कलापों पर मजे लेते हैं या ऐसी ही प्रतिक्रिया देते हैं। मुस्लिम देशों से लेकर ईसाई देशों का कभी भारत में विदेशियों से हुए प्रदूषण और लूट पर मौन नहीं टूटा। इसपर उनकी प्रतिक्रिया नहीं आई। वजह है उनके धर्म का गरीब हिंदुओं में प्रसार। अब जबकि वही लोग घर वापसी कर रहे हैं तब भारत में एजेंडे की दुकान चला रहे देशों को तकलीफ होनी लाजमी है।

भारत के हिंदुओं को अपने तरीके से चलने और लूट के माल को वापस लेने का अधिकार नहीं है? जिन्हें आप शरणार्थी समझ कर आश्रय दिए और दे रहे हैं उसका भविष्य में दुष्प्रभाव ही पड़ेगा। कुछ ही दिनों में इनकी मांग होती है – जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी।

बटवारे के बाद भारत में किस लिए मुस्लिम रोके गये? भारत का पुनः बंटवारा करवाने के लिए? वह अपनी पैदावार से कई राज्यों में अपने अनुकूल सरकार बना रहा है। हिन्दू शोभायात्रा को रोकने के लिए कोर्ट जा रहा है। यह स्थिति तब है जब उसका नेतृत्व केंद्र सत्ता में नहीं है वैसे ओवैसी जैसे मुस्लिम नेता धमकी दे ही रहे हैं कि जब मोदी नहीं होंगे, तब आप की रक्षा कौन करेगा?

मध्यकाल में मुस्लिमों द्वारा जिस तरह से धर्म के नाम पर हिंदुओं का संहार हुआ है, आधुनिक काल में ब्रिटेन ने जिस तरह भारत की लूट की है उसकी भरपाई यहाँ तक कि उस पर चर्चा करने को कोई तैयार नहीं है।

भारत पुनः अपने घरौंदे में लौट रहा है। बहुत हो चुकी तालीम और एजुकेशन, अब समय है शिक्षा और संस्कार का। आप हिन्दू नहीं हैं तो आप को अपने पुराने रवैये में सुधार लाना ही होगा। अन्यथा समस्या होगी और पीड़ा भी।

हिन्दू कितना सहिष्णु हो इसकी शिक्षा वह दे रहे हैं जिनका इतिहास दूसरे धर्म के लोगों के रक्त से सना है। हम उस संस्कृति के लोग हैं जहाँ पहला निवाला गाय के लिए बनता है, अंतर यही है कि तुम गाय को ही निवाला बना लेते हो। भारत जिसका है उसी का रहेगा। आतंकी मन्सूबे पालने से जमीनी हकीकत नहीं बदल जाती है।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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