आओ सोचें भारत

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

भारत में कुछ ऐसे लोग हैं जो इतिहास में उपनिवेशवादी और मार्क्सवादी, दोनों को मानते हैं। कहा जाता है कि किसी देश के इतिहास को बदल दीजिये बस फिर क्या है वह अपने पूर्व रास्ते पर कभी आ ही नहीं पायेगा। खिचड़ी व्यवस्था और खिचड़ी सोच बना देने से व्यक्ति भी अस्थिर चित्त का होता गया है। पूँजीवाद, उपनिवेशवाद, उदारवाद, समाजवाद, मार्क्सवाद, व्यक्तिवाद, व्यवहारवाद और सुखवाद इन सभी के जाले में फस कर रह गया है। वाद में परिवाद हो गया। सत्य, वास्तविकता और अक्ल से दूर वह भ्रम के घोड़े पर बैठ गया। इसने सामाजिक राजनीतिक और शैक्षिक गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित किया।

विश्व के उदारवादी देश कट्टरपंथी बन चुके हैं। मार्क्सवादी और समाजवादी अब पूंजीवाद पर चलने लगे। भारत में कई तरह के विचार हैं समस्या रायचन्दी टाइप के लोगों का है, कहते हैं ऐसे नहीं ऐसे चलो।

भारत में इतिहास के स्तर पर उपनिवेशवाद और साम्यवाद को स्वीकार किया। अर्थव्यवस्था पर समाजवाद को, समाजिक धरातल पर उदारवाद वहीं राजनीतिक स्तर पर लोकतंत्र और सेकुलरिज्म को। यदि व्यक्तिगत स्तर पर बात करें तो सुखवाद में आस्था व्यक्त करायी गयी है।

लक्ष्य एक था व्यक्ति और राष्ट्र का सर्वांगीण विकास लेकिन हुआ इसके विपरीत। बिना आर्थिक प्रकल्प के कोई भी व्यवस्था दम तोड़ देगी। भारत की 135 करोड़ जनसंख्या जिसे रोजगार की आवश्कता है। भारत के परम्परागत व्यवसायिक उद्योग को अंग्रेजों ने अपने शासन काल में नष्ट कर किसान और मजदूर बनाया।

कई तरह के “वाद” के बीच कृषि घाटे का सौदा बना, किसान आत्महत्या को विवश हुये। अब बचे मजदूर जिन्हें मनरेगा, सड़क, उद्योग पर निर्भर होना पड़ा। लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं है। बिना विकसित आर्थिक तंत्र के भारत को स्थिर रखना बहुत कठिन होगा।


नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।

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अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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