भारत में वामपंथी होने का मतलब अभी कुछ वर्ष तक उच्च बौद्धिकता का परिचायक था। अब का तो न कहिये किसी बामपंथी से बात करिये तो वह गाली-गलौज पर उतर जाता है। तर्क का जबाब कुतर्क करके देता है। शब्दों की मर्यादा ऐसा लांघता है जैसे मार्क्स ने एंजिल की बीबी ले भागी थी। किन्ही बातों में चर्चा परिचर्चा में अब द्वारा रखी बात पर, आप द्वारा ही तथ्यों से पुष्टि कराई जाती है शायद इतनी बात को बामपंथी भूल गया।
भारत का वामपंथी पूरा वामपंथी न होकर सेकुलरपंथी ज्यादा है। जिस जाति, धर्म के परे जाकर वह वामपंथी बना है। वह दिनभर उसी जाति, धर्म पर बात करता है।
“पर उपदेश कुशल बहु तेरे”
भारत का वामपंथी धर्म से घृणा करता है लेकिन उसका भी एक नैरेटिव है कि वह केवल हिन्दू धर्म.. से घृणा करता है इस्लाम और ईसाई से नहीं।
भारत में वामपंथ या सेकुलिरिज्म विचार न होकर राजनीति में चढ़ने की एक सीढ़ी है। सिर्फ हिन्दू धर्म की आलोचना करके वह मुस्लिम और ईसाइयों के वोट बिना किसी मेहनत के पा लेता है।
एक और महत्वपूर्ण चीज वह किसी भी घटना को जाति विशेष और धर्म विशेष देख कर टारगेटेड करता है। हे वामपंथी! तुम्हें जाति और धर्म से मतलब नहीं है फिर धंधा इसी का क्यों कर रहे?
“बदनाम होंगे तो क्या नाम नहीं होगा”
प्रश्न फिर उठता है कि तुम मानव में आस्था रखते हो कि वामपंथ में? नंगे-पुंगे होने से कैसे कोई आधुनिक हो जाता है? विज्ञान और वामपंथ में कोई कनेक्शन है ऐसा? किसी वैज्ञानिक ने नहीं कहा है। यह अलग बात है कि वामपंथी अपने को लगभग वैज्ञानिक ही मानता है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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