सब कुछ सरकारी चाहिए कम्पनी हो या नौकरी।
किन्तु प्रश्न यह है कि आप जिस जगह कार्यरत हैं या उसकी कोशिश में हैं तो उसके प्रति आप कितने ईमानदार और नैतिक हैं, इस पर कभी विचार किया?
विकास अगर सरकारी की जगह सामुदायिक हो तभी तो स्थितियां बदलेंगी। आप में जिम्मेदारी का बोध हो जिससे राष्ट्र, पर्यावरण और अन्य प्राणियों के शाश्वत निर्वाह की परिस्थितियां बनी रहें। मनुष्य विवेकवान है, वह अपने अलावा अन्य प्राणियों के लिए भी विचार और उन्हें समृद्ध कर सकता है।
हमें यह तो ज्ञात है कि देश का निर्माण भूक्षेत्र, शासन, संप्रभुता और लोगों से होता है, जिसमें लोग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। लोगों का व्यवहार उस देश के व्यवहार का निर्धारण करता है।
लेकिन आज की सोच बन गयी है कि सिर्फ मैं ही रहूं, लोग मरते हैं तो मरे, बस मुझे ही लाभ हो। सिर्फ स्व-लाभ आधारित सोच एक स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं कर सकती है।
राष्ट्र, आपके यज्ञ के बिना पूर्ण नहीं होगा।
19 वीं सदी में जापान में पैरी नामक अमेरिकी का अधिकार हो गया, राजा भी पैरी का बंधन में आ गया। ऐसे में जिम्मेदारी का निर्वहन परंपरागत योद्धा ‘समुराई’ ने किया और देश की कमान संभाली। जापान को पहले विदेशी प्रभाव से मुक्त किया फिर आर्थिक उन्नति के लिए ‘समुराई’ ने सभी जापानियों का आह्वाहन किया।
चौसठ योगिनी माता कौन हैं?
यह भी कहा कि जिस विकास को ब्रिटेन ने 100 साल में अर्जित किया, अमेरिका 50 सालों में उसी विकास को जापान 25 साल में प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है, वह भी स्वदेशी पूंजी से। सभी ने भाग लिया, जापानियों की पूंजी से आधुनिक जापान का निर्माण शुरू हुआ।
1905 में जापान ने रूस को पराजित कर दिखा दिया कि यूरोपीयों को भी पराजित किया जा सकता है। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ध्रुवीराष्ट्र के खेल में जर्मनी की तरफ खड़ा था।
हिरोशिमा और नागाशाकी में 6 और 9 अगस्त 1945 में अमेरिका द्वारा परमाणु बम लिटिल बॉय और फैंटम के परीक्षण के बाद जापान पुनः खड़ा हुआ। क्योंकि जापानियों को लगता है कि यह उनका देश है और अपने देश की प्रगति में जापानियों की प्रगति है।
आज भारत को जापान से ज्यादा जापानियों से शिक्षा लेने की जरूरत है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
***