हमें क्या दे सकते हो?

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

भारतीय संस्कृति ‘अतिथि देवों भव’ को प्राचीन काल से मानती रही है। किन्तु बीच के संक्रमण काल जिसमें मुस्लिम और खास करके ईसाई जिसमें गिफ्ट लेने का प्रचलन जोरों से है, का अत्यधिक प्रभाव पड़ा। आज लोग पूछते हैं कि जब मैं आपके घर आऊंगा तो क्या दोगे? और जब आप मेरे घर आओगे तो क्या लाओगे? इससे क्या फायदा?  इसमें हमें क्या लाभ?  इससे हमारा क्या?

“जात कुजात भये मंगता” सब इच्छा मुफ्त पाने की है।

गिरते प्रतिमान, विखरते आदर्श, विस्तार लेती उपभोगवादी मानसिकता मानवता को ही बिखरा दे रही है।

हितोपदेश में अतिथि संस्कृति को “चिड़ा और चिड़िया” के कथा से दर्शाया गया है कि एक दिन एक यात्री जंगल मे रास्ता भटक गया अब वह रात्रि बिताते के लिए एक वृक्ष का सहारा लिया जिस पर चिड़ा-चिड़िया का घोसला था।

अतिथि आया देख चिड़ा-चिड़िया बहुत प्रसन्न हुये। ठंडी से ठिठुरते यात्री को देख दोनों पेड़ से लकड़ियां गिराई चिड़ा आग ले आया मानव को ताप की व्यवस्था की। शरीर में जैसे ही गर्मी लगी मनुष्य को भूख लगी चिड़ा ने चिड़िया से इतनी रात्रि को क्या भोजन का प्रबंध हो, देखते-देखते ही चिड़ा चिड़िया से बोला आतिथेय का कर्तव्य बनता है कि वह प्राण देकर भी अतिथि को खुश करे और वह अग्नि में कूद गया।

मानव ने जैसे ही चिड़ा को खाया वैसे ही उसकी जठराग्नि जाग्रत हो गई चिड़िया ने भी आग में छलांग लगा दी। यात्री की भूख मिट गई नये प्रतिमान गढ़े गये अतिथि-आतिथेय के।

यह हमें विचार करना है कि हमारे लालच की सीमा कितनी है। आज का मानव क्या कल के मानव से कुछ सीखेगा? उपभोग और उपभोक्तावादी मानसिकता के चक्कर में सब का मूल्य धन में लगायेगा या मनुष्यता की बूंद पड़ेगी उस पर?

यह समाज हमसे भिन्न नहीं है बल्कि हम आपसे मिलकर ही समाज निर्मित होता है। यदि समाज में किसी प्रकार की गड़बड़ी है तो उसकी जिम्मेदारी किसी एक की न हो कर समूहिक होगी। भारतीय संस्कृति देने में विश्वास करती है लेने में नहीं।

मनुष्य भाग्य और कर्म की दुहाई दे कर बच निकलने का प्रयास करता है लेकिन स्वयं के व्यवहार को नहीं देख पाता है। हम चाहे तो अपने व्यवहार से बहुत कुछ बदल सकते हैं। शिक्षा के मूल उद्देश्य से दूर चले गये हैं, अब तो बस धन इकट्ठा करने की जुगत रह गई है। सही-गलत की लक्ष्मण रेखा से कोई खास मतलब नहीं बस हमें नुकसान न पहुँचने पाये।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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Usha
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5 years ago

Bahut khub kaha h apne bhartiya sanskrati dene ne vishwas krti h lene me nahi pakchhi ho kar bhi jis tarh atithi ki bhukh mitai apne prano ki prvah n krke.👍👌

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