आज का युवा नशेड़ी बन रहा है, बिगबॉस जैसे सीरियल उसके आइडिल हैं। वह बॉलीबुड का बहुत अंदर तक दीवाना है। बहका और भटका युवा डेटिंग, गर्लफ्रैंड के महाचक्कर में है। दूसरी ओर वह नेता है, जो चुनाव आयोग की पहली लाइन ‘चुनावी खर्च की सीमा’ को तोड़ कर, जाति का जहर घोलकर सत्ता की सीढ़ी चढ़ जाता है। आकंठ भ्रष्टाचार की सांप सीढ़ी चल रहा है, धर्म का मठाधीश हो, आईएएस अधिकारी, बड़ा बिजनेसमैन, अभिनेता, प्रोफेसर या साइंटिस्ट भारत में सब नेता बनना चाहते हैं।
जनता परिवार और पड़ोस के ही प्रपंच में मस्त है। ज्यादा हुआ तब टेलिविजन और न्यूजपेपर तक। किसान की हालत खराब है किन्तु उनके नेता मौज में हैं। वह किसी न किसी पार्टी के फंड से उत्पात मचाये हैं। दिल्ली हो या लखीमपुर खीरी। किसान हिंसा कैसे कर सकता है, यह विचारणीय विषय है। पहले लाल किले की प्राचीर से तिरंगे का अपमान फिर यह लखीमपुर खीरी में निरपराध चार ब्राह्मण युवक को तथाकथित किसान डंडे से पीट-पीट कर मार देते हैं।
क्या लगता है, किसान की वास्तविक चिंता है? यदि किसान नेता को होती तो सीधी सी बात है वह मंडियों तक राशन, सब्जी और फल कुछ दिन पहुँचने ही न देता। उसकी मांग सरकार से होनी चाहिए थी, जिसप्रकार मार्केट की वस्तुओं की मूल्य वृद्धि हुई, जिसतरह से नौकरी वालों की तनख्वाह में इजाफा हुआ है उसीके बनिस्पत किसान की फसलों का मूल्य भी होना चाहिए था।
सबसे बढ़कर किसान की फसलों के मूल्य का निर्धारण किसान आयोग या सरकारी MSP कैसे घोषित कर सकती है? किसान के फ़सलों के मूल्य का निर्धारण किसान स्वयं करें, राजनीति नहीं। एयर कंडीशन कमरे में बैठ कर करोबार किया गया वह भी वायदा तरीके से किया गया।
किसान के नेता अब तक मौन थे, अचानक अब मुखर इतने कैसे हो गये? किसान आर्थिक उदारीकरण के बाद निरन्तर अपने को खोता जा रहा है। 5 बीघे खेती करने वाला, जिसके भूमि का मूल्य ही लगभग 1 करोड़ है, वह अपनी बिटिया का विवाह खेती से क्यों नहीं कर पाता?
नेता राजनीति चमकायेगा, तुम मौत के खेल में मारे जाओगे। वह आग बुझाने के लिए मुआवजा देगा। जांच कमेटी बनेगी फिर वही पन्ने दर पन्ने लीपापोती फिर किसी नए हिंसा का इंतजार गिद्ध करेगा, गिद्ध तो अब विलुप्त हो गये लेकिन यह काम अब गिद्ध रूपी नेता कर रहा है।
कृषि घाटे का सौदा बन कर निर्वाहमूलक बन गयी है। सरकारें WTO का हवाला देती रही, कृषि में निवेश को हतोत्साहित कर व्यापार में निवेश बढ़ाया गया। किसान मरे, लोग मरे यह लोकतंत्र के मजबूत होने की निशानी है। चलो एक बार पुनः चुनाव में चले। गूंज आ रही है, तुम्हें मुर्ख बना रही है “सिंहासन खाली करो जनता अभी आती होगी”।