सभी लोग श्रेय और श्रेष्ठता चाहते हैं संघर्ष से दूर भी रहते हैं एकता का सर्वथा अभाव रहा है। धार्मिक मान्यताओं पर एक स्वर न दे कर विद्वता दिखाने का प्रयास किया जाता है। जो गुरु है वह सोये हैं स्कूल में टीचर तो हैं लेकिन योग्यता विहीन। कॉपी रंगी जा रही बुद्धि अभी भी कोरी की कोरी है।
जो कभी ब्राह्मण का अस्त्र था, ‘विद्या’, उससे कोसों दूर हो चले है। हम सही मार्ग पर नहीं हैं तो हमारा समाज कैसे मार्ग पर रह सकता है? यहां मंदिर का विषय ब्राह्मण का माना जाता है, जो वर्गीकरण का आधार वैज्ञानिक था वह राजनीति सुरंग में फस गया। सब एक दूसरे की गिरा कर दौड़ जीतने की जुगत में हैं।
भारत में उदारवाद और राजनीतिक जातिवाद एक साथ आये, उदारवाद ने अपने हथौड़े से राजनीति को पंगु कर दिया। राजनीति ने वोट के खातिर समाज को जाति, वर्ग में बाट कर उनके बीच भ्रम भर दिया।
सबरीमाला मंदिर के मामले की बात की जाय वहां भी जागरूकता का अभाव है, सब कुछ समान कैसे किया जा सकता है? अब समानता परिभाषा से ज्यादा राजनीति का रंग चढ़ा लिया है। लोकतंत्र सेकुलरिज्म का आवरण चढ़ा के बार बार धार्मिक मान्यताओं से खेल खेलना चाहता है।
ब्राह्मण जो मार्ग दर्शक था, यति से चाकर हो गया अब चाकर चाकरी करे की खिलाफत?
सब अपने बच्चे को शिक्षा उदर भरने वाली देगें, आधुनिकता के नाम पर अंग्रेजी संस्कार देंगे और सुरक्षा भारतीय संस्कृति से कराना चाहेगे।
धीरे ही सही केरल को छोड़ पूरे भारत का पश्चिमीकरण हो गया, वहीं केरल का अरबीकरण, अरबी पैसे से बहुत तेजी से हुआ। अश्लीलता तेजी से फैल रही है, नारी का अमानवीयकरण और वस्तु बनने की ओर प्रसार हो रहा है। नैतिकता विहीन समाज कितनी दूर चलेगा कुछ कहा नहीं जा सकता है।
बाजारवाद और उदारवाद सब कुछ अपनी ही तरह चलता है। बाजारवाद जहाँ सब को वस्तु के रूप में देख रहा है वही उदारवाद कानून, बंधन, अनुशासन की मुखालफ़त करता है।
भारत की शिक्षा व्यवस्था भारत के अनुकूल नहीं है। एक सबसे बड़ी बात विचारों की जन्मदात्री धरती पर विचारों का टोटा है। हम पहले तो वस्तुओं का आयात करते थे किंतु अब तो विचारों को ही आयात करने लगें है। ये आज वेद भूमि का हाल है।
एक छोटा सा देश ब्रिटेन जो कमोबेश उत्तरप्रदेश के जितना क्षेत्रफल और राजस्थान जितनी आबादी लेकिन उसके विचार विश्व भर में छाए कारण था शिक्षा व्यवस्था। जब तेरहवीं सदी के पूर्वाद्ध में जब नालंदा विश्व विद्यालय का ध्वंस हुआ तो उसी समय ब्रिटेन में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की नींव पड़ी।
यही वह समय था जब पूर्व की विद्या पश्चिम को चली गयी जो अभी तक नहीं लौटी। नालंदा के युग तक विश्वभर से लोग भारत पढ़ने आते थे, अब तो भारत से विश्वभर में पढ़ने जाते है। जिससे “भारतीयों को ठग सकें” और “ब्लडी इण्डियन डॉग” और धूल वाला देश कह सकें।
इसी समय अमेरिका को देखते है जो रेड इंडियन का देश था जहाँ ब्रिटेन अपराधियों को काले पानी की सजा देता था। 1773 की “बोस्टन टी पार्टी” की घटना ने जार्ज वाशिंगटन को नेता अमेरिका को महान देश और कार्नवालिस के रूप में ब्रिटेन पराजित करके नई इबादत लिखी। इस अमेरिका को महान यहाँ के लोगों ने ही बनाया था, जो आज भी चमक रहा है।
संस्कृति की रक्षा करने वाला समुदाय सिर्फ मूक दर्शक बना है दोषारोपण करके वह बच नहीं सकता है। आज की परिस्थितियों में जिस भारतीय संस्कृति की बात करते हैं वह कहाँ जीवित है? देखेगे तो पता चलेगा संख्या बहुत कम है। भाग्य सुधारने के लिये ही ईश्वर मानते हैं बाकी पश्चिमी व्यवस्था ही हम पसंद करते हैं यही वास्तविकता है।
Dusare desh hi seekh rhe hai aur nakal kar rhe hai