सनातन का अर्थ है शाश्वत, चिरन्तन, निरन्तर आदि। शाश्वत वही हो सकता है जो नैसर्गिक न होकर प्राकृतिक हो, जिसमें प्रकृति से करताल की शैली हो। वह प्रकृति का मित्र हो।
वृक्ष, नदी, पोखर, जलाशय, कुएं आदि में हम देवत्व मानते हैं। देवत्व का कारण है कोई भी जीव, जंतु, पौधा, वृक्ष अकारण नहीं है बल्कि सकारण है। छोटी चींटी भी प्रकृति में संतुलन स्थापित करती है।
सनातन धर्म की गहराई देखिये, हम चींटी को आटा, पक्षियों को दाना, मछली को आटे की टिक्की डालते हैं। वृक्ष में तुलसी, नीम, पीपल आदि को जल चढ़ाते हैं। पहाड़, पर्वत, नदी और समुद्र का पूजन करते हैं। गाय, धरती, नदी, विद्या को माता कहते हैं। इसके पीछे का कारण यह सभी हमारा हमारी माता की तरह ही पोषण करती हैं।
सनातन धर्म की अच्छाई है, जिससे कुछ लिए हों उसके कृतज्ञ बनिये, कृतघ्न नहीं। यदि आप ने प्रकृति को सम्मान देना सीख लिया, समझिए आप में प्रेम का जन्म हो गया है। जीव पर दया करनी आ गयी, तभी मनुष्य पर दया करना सीख पायेंगे। इसीलिए सनातनी जिसका लेता है, उसे धन्यवाद देना नहीं भूलता।
हमारे पूर्वजों ने जल को वरुण देवता कहा है। जब विश्व में जनसंख्या बहुत कम थी तब भी हम जल के संरक्षण को लेकर जागरूक थे, व्यर्थ जल नहीं बहाते थे, एक बाल्टी में नहा कर बचे पानी से कपड़े धो लेते थे। यह मूर्खता नहीं मीठे जल का संरक्षण था। जिससे आगे की पीढ़ी जल के लिए युद्ध न करें, जल पर टैक्स न लगे अथवा जल का व्यापार न हो।
प्रकृति से प्रेम आपको मूर्खता लगता है? जीवन जीने की जो कला हमारे पूर्वज जानते थे, आज हम भोजन से लेकर रहने तक को विकास के नाम पर बिगाड़ रहे हैं।
भोजन की थाली पर गौर करियेगा, जिस मांस का आप सेवन कर रहे हैं क्या आप जानते हैं कि एक किलो मांस बनने के लिए आठ किलो अन्न की जरूरत होती है। जानवर मनुष्य की तुलना में तीन गुना अधिक जल पीते हैं। विश्व में जितना राशन पैदा होता है, दो तिहाई जानवरों के लिए उपयोग होता है। स्वाद के लिए मनुष्य अपने मूल स्रोत खत्म कर रहा है।
विश्व भर में मांस के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठती है। मांस खाना मनुष्य का नैसर्गिक अधिकार समझते हैं। शाकाहार का मूल है मनुष्य का स्वास्थ्य और जीवों को जीने की स्वतंत्रता।
सुकर, गिद्ध, चूहे, सांप, कुत्ते, गधे, गाय, बकरी, भैंस, चिड़िया, चींटी, चींटे, कछुआ, मछली आदि मानव के खाद्य नहीं हो सकते हैं, बल्कि यह तो दानव के लिए भी भोज्य नहीं हैं। जल में तैरती मछली या आकाश में उड़ती चिड़िया या घास चरती बकरी को देख आप के मुंह में पानी आता है, जठराग्नि जाग्रत होती है? तब आप को आध्यात्मिक चिकित्सा की आवश्यकता है। जिससे ‘मनुर्भव’ – मनुष्य बन सकेंगे।
सनातन धर्म की आवश्यकता क्यों है? किंचित आपकी समझ में आ गया हो।
नोट: जीव जंतु खाने के लिए यदि जीभ लपलपा रही है तो आप के मन को आध्यात्मिक चिकित्सा की आवश्यकता है आप चाहे तो हमसे मिल सकते हैं।