विचारों का भ्रमजाल

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

जब विचार पर विचार करते हैं तो बहुत से विचार मन में तैरने लगते हैं। कोई कहता है देश महान है, किसी के लिए व्यक्ति बड़ा है, कोई सेकुलरिज्म की बात करता है कोई सोशलिज्म या कम्युनिज्म की, जिसमें पेट अंदर धसा है, फेफड़ा बाहर निकला है। पूँजीपति खाने का सपना दिखाता है और खाने नहीं देता। ये गरीबी की रामायण सुनाकर सत्ता का सुर साधता है। कोई सत्ता के लिए इतिहास को छुपा लेता है, कोई आतंकपरस्ती को लोगों की अन्तरात्मा की आवाज कह रहा है। कोई अपने NGO के लिए पैसे इकट्ठा कर रहा है तो कोई अपने बच्चे के राजनीतिक के लिए भारत की मांग करता है। लालचौक को खूनी चौक बनाने की कवायद है। धर्म कहता है कि “सिर्फ मैं ही मैं हूँ बाकी तुम कहाँ हो”…।

कुछ की आवाज तो नक्कारखाने में तूती बन गई है। किसान और बेरोजगार ऐसे हैं कि देश में इनके मन का कुछ नहीं होता है बस लीपापोती के बीच इनको किनारे – किनारे चलाया जाता है।

चमड़ी किसी की मोटी, किसी की पतली, किसी की सफेद तो किसी की काली है पर स्याह चमड़ी किसी की नहीं है, सब दौड़ रहे हैं केवल दमड़ी बनाने और बचाने के लिए।

सत्ता तुम्हारी हो या शासन मेरा चले अदलिया क्या कहें मंदिर बने की न बने? लोग जानवरों को मारकर खाने की प्रोटीन बनाये या न बनाये, मनुष्य को जीवित रखने की कीमत जीव – जंतु बने तो किसको बुरा लग रहा है?

नैतिकता और मानवता हो न हो ये सेक्युलिरिज्म, फेडरलिज्म, सोशलिज्म, लिबरलिज्म, कम्युनिज्म, फासिज्म, कैप्टिलिज्म और इम्प्रलिज्म को थोपा ही जायेगा। आपको जोर ज़बर करके घसीटा ही जायेगा। आप न चाहते हुये भी पूछेंगे कि कटप्पा ने बाहुबली क्यों मारा?

दूर खड़ी नारी अपनी आंखें तरेरते हुये कहती है कि वाह भाई! सबकी बात हुई, अभी आधी आबादी की सुध नहीं है। मेरी मर्जी, मेरा फेमिनिज्म भी तो नजर डालो तो मैं रहू, नहीं तो जय राम जी की। हो सकता है कि मेरी भी इच्छा सनी लियोनी बनने की हो, मुझे भी आसमान में उड़ना हो किन्तु यह पुरुष मेरा गार्जियन क्यों बना फिरता है? जोर आजमाइश करता है कि मेरे मां बाप की सेवा क्यों नहीं करोगी।

कोने से आती आवाजें मानवाधिकार की, लैस्बियन, गे, ट्रांसजेंडर की कि लिव – इन – रिलेशनशिप में सरोगेट मदर अडॉप्टेशन या पार्टनर चुनने की उन्हें भी स्वछंदतापूर्वक अधिकार हो क्योंकि उनके साथ बनाने वाले ने न्याय नहीं किया है। यह पढ़ा लिखा विश्व समुदाय है जो ग्लोबलाइजेशन की दुनिया मुट्ठी में करने और ग्लोबलवार्मिंग की बात करने के साथ चांद, सूरज, वृहस्पति, मंगल और शनि पर खोज का दावा करता है।

एक समुदाय अभी छूट रहा है जो विश्व का हाइयेस्ट टैक्स पेयर है, जो धर्म अपने शौक को मानता है। आप पूछेगे कौन है? अरे वही नशेबाज जिनको हीन, तुच्छ, नीच और सामाजिक वायरस कहा जाता है। इनकी पीड़ा है कि हम नशा अपनी मर्जी और अपने पैसे से करते हैं तब भी लोग गाली देते हैं। टैक्स पर छूट की बात कौन करे, सरकार जब मन करता है दाम बढ़ा देती है जंतर – मंतर तक बातें न पहुँच पाने का बहुत टीस है। यदि नशा इतना बुरा है तो पूर्ण प्रतिबंध क्यों नहीं? रोज की किचकिच से फुरसत मिल जाये।

सिसकती आवाजें खुलेपन की आती हैं। कहना तो यहाँ तक है कि हम तंग कपड़े पहने या नंगे एकांत में दौड़े, इसमें परेशान आत्माएं क्यों हायतौबा करने लगती हैं? दो लोग अधनंगे होकर समुद्र के किनारे धूप सेकते हैं या एक दूसरे की देह निहारते हैं तो इसमें असभ्य लोगों का क्या जाता है?

सबकों परेशानी है एक दूसरे से है फिर भी साथ रहना और चलना पड़ता है।

राज्य, व्यक्ति, कानून और तरह – तरह की विचारधारा पर वक्र दृष्टि डालें तो लगता है कि सब अपनी बात दूसरे से मनवाने और स्वयं की पूजा करवाने के मैराथन का हिस्सा भर हैं, जिसका विजेता भी पहले ही गोल्ड मेडल गले में डालकर आयोजक बना हुआ है, करो कितनी भी मेहनत मेडल मेरा ही है।

यह विचारों का कुचक्र है जिसके चक्रव्यूह में डाल कर आपको अभिमन्यु बना कर इंटरनेट पर लाइव देखेंगे। मरने में कितना मजा आता है।

यदि आप सोचते हैं कि आपकी किसी को चिंता है तो गफलत में हैं, यह विचार दुरुस्त करिए। आप खुद ही अपने माता  – पिता, भाई और रिश्तों पर ऊंची छलांग लगाकर बेहतर की खोज कर रहे हैं।

झोपडी में बैठा बाबा कहता जो अपना घर फूंक आया है वह दूसरे घर की आशा करता है, जो राम राज्य छोड़ आया वह बकरी और शेर को एक घाट पर पानी पीते देखने की सुनहरी आकांक्षा को पूरे होते देखना चाहता है। काश कोई सही को सही कहने का साहस रखता …।


नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।

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अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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