आपने सोचा कि विश्व में २०० के लगभग देश हैं फिर कैसे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मात्र भारत ही पहुँचा?
भारत को स्वतंत्रता मिले ७६ वर्ष हुए किंतु अभी भी बहुतायत में लोग मानसिक गुलामी को प्रश्रय देते आ रहे हैं। जो भारत के ऋषि-मुनियों के ज्ञान को काल्पनिक बता रहे थे जबकि कालगणना, समुद्र पर सेतु, अंतरिक्ष का विस्तार, पृथ्वी का आकार, पृथ्वी की सूर्य और चंद्रमा से दूरी, सबसे बढ़कर मानवीय संरचना, भ्रूण निर्माण, दशमलव, शून्य, ज्यामिति, संख्या का ऋणात्मक गणना जिससे अंतरिक्ष विज्ञान (स्पेस साइंस) विकसित हुआ। यह भारत ने सबसे पहले दिया था। ८०० वर्षों की परतंत्रता ने हमारे ज्ञान-विज्ञान पर धूल जमा कर दिया था।
यदि मुख्य कारण देखेंगे तब ज्ञात होगा – ‘मल्टीकल्चर’ (बहु-संस्कृति)। यह रहने और मौज करने के लिए अच्छा हो सकता है किंतु ज्ञान-विज्ञान के लिए नहीं। विज्ञान मौलिक होता है, भारत की सनातन संस्कृति विकसित रही है। हम लोग मल्टीकल्चर के चक्कर में अपनी ही विधा से कट गए। इस्लाम, ईसाई आदि कोई भी सभ्यता हो, सब का अपना पैकेज है। यह पैकेज देखने के लिए आप अमेरिका या सऊदी अरब का रुख कर सकते हैं।
हम अपना रुख भारत की तरफ ही रखते हैं, अपने अतीत को और अधिक जानने का प्रयास करते हैं। भारद्वाज और कर्दम ऋषि विमान शास्त्र के विशेषज्ञ, जीवक, सुश्रुत, चरक आदि आयुर्विज्ञान (मेडिकल साइंस) के ज्ञाता, रसायन शास्त्र के ज्ञाता नागार्जुन, अंतरिक्ष विज्ञान के जनक बाणभट्ट, वराहमिहिर। ज्यामिति, त्रिकोणमिति के जनक ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य या कात्यायन का शुल्बसूत्र आदि – इन्हें जानने का प्रयास हम क्यों नहीं करते? कैसे माधव ने १५वीं सदी में गणित की गणना में ० और १ के मध्य अनंत की संकल्पना दी थी जिसके कारण आज पृथ्वी की कक्षा से आकाश में जाना संभव हो सका है।
शून्य का प्रयोग भारत के ऋषियों की देन रही है, पाई का मान जिससे वह धरती से अंतरिक्ष की गणना करने लगे, इसी का छोटा रूप है आज के पत्रांक। १ से लेकर ९ तक की संख्या का दहाई अंक क्या होगा, यह शून्य के स्वतंत्र होने पर निर्भर हुआ। संख्या का स्थान ब्रह्मगुप्त ने छठी सदी में ही बताया था। यह शून्य का विचार भारतीय दर्शन में पूर्व से ही रहा है। जैसे सृष्टि की उत्पत्ति शून्य से होती है और शून्य में वह विलीन हो जाती है।
पुष्पक विमान, आशुमालि नामक सौर विमान या कर्दम ऋषि का मन विमान काल्पनिक मात्र नहीं हो सकते हैं। ज्ञान का मजाक नहीं उड़ाया जा सकता है, वह अपने काल के अनुसार रहता है। स्वयं के ज्ञान पर अविश्वास पाश्चात्य ज्ञान पर अंध श्रद्धा का फल है।
आज पश्चिम के दर्शन का प्रभाव है जिसके कारण जाति, वर्ग, क्षेत्र और मजहब की भावना बलवती हुई है। उसी का परिणाम है शोषण, भ्रष्टाचार तथा विश्व का बारूद के ढेर पर बैठा होना। मानवता कराहे तो कराहे किंतु व्यापार चलता रहे।