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संस्कृति की खोज

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

भारत अपनी परम्परा को भूल बैठा और वर्णसंकरता और कर्मसंकरता को रोकने में विफल रहा है। प्राचीन गौरवमयी सभ्यता कुछ छलछंदियों के हाथ पड़ गयी फिर भी वह संधर्ष करती रही। सबसे बुरा समय स्वतंत्रता के बाद आया जब सत्ता कम्युनिस्टों के हाथ लग गयी।

वह अंग्रेजी संस्कृति के महत्व को स्थापित करने और भारतीय संस्कृति को कमजोर करते गये। हमारे युवा अपनी संस्कृति को न जान दूसरों की पीठ थपथपाने लगे क्योंकि किसी परम्परा को गति उसकी संस्कृति ही देती है। भारत स्वतंत्र हुआ, लोग स्वतंत्र हुये किन्तु हिन्दू धर्म स्वतंत्रता के बाद संविधान का गुलाम बना दिया गया।

लोगों में मानसिक गुलामी की आदत डाली जाती रही है। महानता का दम्भ अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली ने विकास और विज्ञान को दिया और अंग्रेज उद्धारक बन गया। भारत के वास्तविक गुरु घृणा के पात्र बना दिये गये। पूरी पीढ़ी अंधेरे में जीने लगी और उनके आदर्श रंगमंच के नचनिये बनते गये।

अन्य देश वस्तुओं का आयात करते हैं वहीं हम संस्कृति के साथ बुद्धि के आयातक बन गये। हमारे भित्ति में भारत नष्ट होकर इंडिया का आकार लेता गया। हम अबोध की भांति सेकुलर जामा पहनते गये। भारत के अभाव में विश्व में शांति, प्रेम का पाठ कौन पढ़ाये? अपाहिज इंडिया अपनी आत्मा को इंग्लैंड में तो कभी रूस में तो कभी अमेरिका में देखने की भरपूर नकल करता गया।

कौन कहे वेद, शास्त्र, गीता, रामायण पढ़ने को? कौन गीत गुनगुनाये महान भारत के जिसने विश्व को मानवता की पहचान करवायी? काले अंग्रेजों ने हमें पढ़ा दिया कि “भारत की खोज” वास्कोडिगामा ने की थी।

अब जब तक हम भारत को अपने में नहीं खोज लेते तब तक भारत विश्व गुरु कैसे बन सकता है…?

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
Disclaimer: The opinions expressed in this article are the author’s own and do not reflect the views of the संभाषण Team. The author also bears the responsibility for the image/images used.

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Mithlesh Kumar Mishra
Mithlesh Kumar Mishra
2 years ago

अंग्रेजों की अंग्रेजियत, हमारे संस्कृति का सत्यानाश कर करके रखा हैं, जबकि अंग्रेज़ी मात्र कुछ देशों में ही लागू था! जो हमारी मातृभाषा हैं ही नहीं! फिर हम उसका स्मरण क्यों करें! कुछ मूर्खो द्वारा इससे कुछ लोगों को लगाव हो गया है और वही लोग आज इसे बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं! यह घोर अनर्थ हैं! वो लोग शायद ये नहीं जानते कि वो अपने बच्चों को किस अंधकार की ओर लें… Read more »

लता राय
लता राय
3 years ago

बहुत ही समसामयिक पोस्ट

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