आज स्वप्न में गांधी जी से मुलाकात हुई, बहुत सी बातें उन्होंने बताई लेकिन कौतूहल का विषय यह हुआ जब उन्होंने कहा कि प्रयागराज के जिला कलक्टर से मेरी बात हुई है, तुम जा कर एक रायफल और एक रिवॉल्वर ला के मुझे दो, जिसके लाइसेंस का आवेदन मैंने पहले ही कर दिया था।
मैंने कहा : गांधी जी और बंदूक?
उन्होंने कहा : आज की दुनिया में सुरक्षा और हनक जरूरी है। वैसे भी मांसाहारी अहिंसक कैसे हो सकते हैं? दूसरे जीव को खाने की भावना ही तो हिंसक बनाती है, दूसरे दुष्परिणाम हैं, कुंठा और अवसाद!
जिस तेजी से भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में अहमकेन्द्रिता बढ़ रही है, वह असहिष्णुता को बढ़ा रही है। कोई किसी को भी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। न पत्नी पति को, न सन्तान माता – पिता को, बाकी अन्य की बातें सिर्फ दूसरों को मूर्ख बनाने के लिए ही हैं।
गांधी जी : मेरा अहिंसा का सिद्धांत तो मेरे ही समय में बहुत सफल नही हो पाया। मैंने हिंदू – मुस्लिम को एक करने की बहुत कोशिशें की किंतु स्वार्थ परवान लिया देश टुकड़ों में बटा। हिंसा सब पर हावी हुई, हिंदू – मुस्लिम एक दूसरे के रक्त के प्यासे हो गये, मेरे ही शिष्य मेरी अवहेलना करने लगे। मैं देखता रहा और लाशों की गंध के बीच सीमायें बन गयी।
अब मैं देखता हूं कि इसमें दोष किसका था? हिंदू – मुस्लिम के बीच की गहरी खाई को गांधी भर नहीं पाया। मुस्लिमों का भारत में रक्त रंजित इतिहास, मंदिर और महिलाओं के साथ किये गये दुर्व्यवहार, जिसके लिए आज भी भारत के मुस्लिम, हिंदुओं से गलती मानना तो दूर, वह उन्ही बर्बरों को आदर्श मानते हैं।
एक समस्या यह भी रही कि मुस्लिमों के लिए व्यक्ति गौण है, उनके लिये धर्म और मौलवी ही सबसे आगे हैं, उन्हें दारुल – हर्ब (गैर इस्लामी भूमि) चाहिए।
गांधी जी : हिंदू – मुस्लिम एकता के लिए मोपला विद्रोह में हिंदुओं के कत्लेआम को भूलकर मैंने खिलाफत का समर्थन किया। हिंदू – मुस्लिम की एकता के लिए श्रद्धानंद जी को नेता बनाया, जिनकी बाद में मजहबी अब्दुल रशीद ने हत्या कर दी।
मोपला मुस्लिमों द्वारा केरल में किये गये हिंदू और ईसाईयों पर अत्याचार और कत्लेआम को भी मैं सहन कर गया, मैंने सोचा शायद मुस्लिम भी मानव बन जायेगा किन्तु मैं गलत था, मुस्लिम मजहबी पहले है, मानव बनने के विषय में बहुत बाद में सोचता है।
खिलाफत आंदोलन जिसकी गर्मी तो भारत में थी किन्तु उसके मूल देश तुर्की में कोई विरोध न हुआ, वहां के नौजवान नेता मुस्तफा कमाल पाशा ने ख़लीफा के पद को ही खत्म कर खिलाफत को ही खत्म कर दिया। वही भारत के मुस्लिम नेता खिलाफत को बचाने के लिए ब्रिटेन में विक्टोरिया से मिलने गये।
इसी आंदोलन के क्षोभ में हेडगेवार जी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा देकर “राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ” की नींव डाली जिससे हिंदू, कांग्रेसी सत्तालोलुप नेताओं के कारण दूसरे दर्जे का नागरिक न बन जायें। हिंदू महासभा के नेता मुंजे आदि ने मेरी आलोचना भी की किन्तु मैं मुस्लिमों को भारतीय बनाने का कोरा स्वप्न देख रहा था।
मेरे मानवतावाद को, मेरी उदारता को मुस्लिम कमजोरी मान लिया गया। कायदे आजम कह कर मैंने जिन्ना को मुख्यधारा में रखने का प्रयास किया तो वह लाशों पर चढ़कर पाकिस्तान का कायदे आज़म बन गया।
गांघी जी : अहिंसा एक स्वप्न है और बंदूक जाग्रत इतिहास! तुम मेरी बंदूक ले आना।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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